पंजाब जो देश की एक तरह की अनाज फैक्ट्री रहा है और आज भी उत्तर भारत के अमीर राज्यों में से एक है, एक बार फिर अलगाववादी ताकतों की वजह से सुलगने लगा है. अमृतपाल ङ्क्षसह ही वारिस पंजाब दे के समर्थक पूरे पंजाब में फैले हुए है और हजारों को बंद करने के बावजूद हर कोने में खुले आम दिख रहे हैं. हालांकि पंजाब में इंटरनैट पर पाबंदी है और हथियार ले कर घूमना मना है, ये लोग अमृतपाल ङ्क्षसह को दूसरा ङ्क्षमडरावाला मानते हुए कमजोर आम आदमी पार्टीकी सरकार का पूरा फायदा उठा रहे हैं.
पंजाब की खुशहाली पंजाबी सिखों के लिए ही जरूरी नहीं है, वह उन लाखों मजदूरों के लिए भी जरूरी है जो दूसरे राज्यों से यहां काम करने आए हैं और अपने गौयूजक राज्य की पोल खोलते हुए क्याक्या कर अपने गांवों में भेज रहे हैं. पंजाब में कोई भी गड़बड होगी तो इन लाखों बिहारी, राजस्थानी, उत्तर प्रदेश के उडिय़ां,
मध्यप्रदेश मजदूरों के लिए आफत हो जाएगी. इन सब राज्यों में तो पूजापाठ का काम ही पहला धंधा है पर पंजाब में किसानी का काम बड़ा है और इसीलिए किसान कानूनों का जबरदस्त मुकाबला पंजाबी किसानों ने किया था. अब ये ही किसान अमृतपाल ङ्क्षसह जैसे जबरन आधे अधूरे जने को नेता मान कर चल रहे है और पीलीे झंडों के नीचे इकट्ठा हो रहे हैं तो गलती कहीं केंद्र की
राजनीति की है जो ङ्क्षहदूङ्क्षहदू राग आलाप रही है और मुलसमानों को डराते हुए यह नहीं सोच पा रही थी कि यह शोर पंजाब के सोए खालिस्तानियों को भी जगा देगा. भारत दूसरे कई देशों के मुकाबले अच्छी शक्ल में है तो इसलिए कि यहां लोकतंत्र ने जड़े जमाई हुई हैं और आजादी के 75 साल में से ज्यादा ऐसी सरकारें रहीं जो धर्म से परे रहीं. भारतीय जनता पार्टी ने धाॢमक धंधों का फायदा उठा कर मंदिरों के इर्दगिर्द राजनीति तो चला ली और सत्ता पर कब्जा तो कर लिया पर भूल गर्ई कि मंदिर राजनीति दूसरे धर्मों को भी यही दोहराने के उकसाती है.
अब पंजाब के गुरूद्वारे फिर से राजनीति का गढ़ बनने लगे हैं और धीरेधीरे अमृतपाल ङ्क्षसह के पिछलग्गू गुरूद्वारों पर कब्जा करने लगे हैं या यूं कहिए कि गुरूद्वारों को चलाने वाले अमृतपाल ङ्क्षसह का खुल कर नही तो छिप कर साथ दे रहे हैं.
यह पंजाब के मजदूरों को दहशत में डालने वाली बात है क्योंकि ये मजदूर पूरी तरह ङ्क्षहदू अंधविश्वासों से भरे हैं. गरीब, अधपढ़े, अपने गांवों से, घरों से दूर रहने वाले मजदूर समझ नहीं पाते कि जिस मंदिर के पास वे अपनी मन्नते पूरी कराने जाते हैं उस के पास के गुरूद्वारों में दूसरे धर्म के लोग कुछ और कह रहे हैं. मंदिरों में होने वाली आमदनी पर सब की निगाहें रहती हैं और जब लगता है किमंदिर के सहारे पूरी सत्ता पर कब्जा किया जा सकता है तो जैसे रणजीत ङ्क्षसह के जमाने में इच्छा, गुरूद्वारों के सहारे वैसा क्यों नहीं हो सकता.
देश को आज अलगाव नहीं चाहिए आज कंधे और हाथ चाहिए जो अमेरिका, यूरोप, चीन, जापान का मुकाबला कर सकें और अपना रहनसहन इन देशों की तरह का बना सकें. अगर हम अपनी ताकत धर्म के नाम खर्च करते रहेंगे तो हमारी हालत पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसी हो सकती है. हम ने बीज तो उस के बो रखे हैं पर लोकतंत्र का पेस्टीसाइड इन को फूटने नहीं दे रहा. जब भी लोकतंत्र कमजोर हुआ, क्या होगा कह नहीं सकते. यह पक्का है कि पंजाब में काम कर रहे दूसरे राज्यों के मजदूरों के लिए आफत हो सकती है.