सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक नए फैसले में दिल्ली के जंतरमंतर के पास और राजपथ पर वोट क्लब पर जलसे करने और सरकार का ध्यान खींचने के लिए प्रदर्शन करने के हक को बहाल किया है. कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने इन प्रदर्शनों और धरनों को कानून व व्यवस्था के नाम पर बंद करा दिया था.

सरकार व शासन ही नहीं, कंपनियों, मंदिरमठों, मसजिदों, स्कूलों, कालेजों, व्यापारियों के खिलाफ भी बोलने की न सिर्फ आजादी चाहिए, वह सुविधा भी होनी चाहिए जिस से आजादी का इस्तेमाल किया जा सके. आप को बोलने की आजादी हो पर लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत न हो तो यह बोलने की आजादी बेकार है. आप अपनी बात लोगों को कहना चाहते हैं पर जगह ही नहीं हो जहां लोगों को जमा करा जा सके तो क्या फायदा होगा. यह तो बंद कमरे में भड़ास निकालना होगा.

भाजपा सरकार ने तो बोलने की आजादी पर बहुत सी रोकें लगा दी हैं. टीवी लाइसैंसों पर चलते हैं और उन के कान मरोड़ना बहुत आसान हो गया है. समाचारपत्रों को सरकारी विज्ञापन दे कर अपने खिलाफ बोलने से रोका जा सकता है. खरीखरी कहने वाले के खिलाफ देशभर में जगहजगह मुकदमे कर के मुंह बंद करा जा सकता है. आजकल तो सरेआम पिटाई भी हथियार बन गया है जैसा स्वामी अग्निवेश के साथ किया गया.

जंतरमंतर और वोट क्लब पर धरनों और प्रदर्शनों की इजाजत दे कर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि लोकतंत्र सिर्फ वोटतंत्र नहीं कि वोट दिए और मामला खत्म. यह आजादी तो हमारे जीवन के तारतार में होनी चाहिए.

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