भारत में लोकसभा चुनाव का प्रचार जब अपनी हद पर था तो 6 मई, 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में कहा था, “मैं भ्रष्टाचार से लूटे गए गरीबों के धन को वापस करने के बारे में कानूनी सलाह ले रहा हूं. मेरा ध्यान मेरे लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अपशब्दों पर नहीं, बल्कि उन गरीब लोगों पर है, जिन का धन लूटा गया है. इस के लिए कानूनी सलाह ली जा रही है कि वह धन गरीबों को वापस कैसे किया जा सकता है.”

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए सीधेसीधे यह बात मान ली है कि दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भी देश में इफरात से गरीब और गरीबी है. दूसरी बात यह कि 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के फैसले के समय नरेंद्र मोदी की ही की गई यह घोषणा भी खोखली निकली कि इस से देश में काला धन खत्म हो जाएगा. इसी से जुड़ी तीसरी अहम बात यह कि 10 साल में काले धन को बंद करने के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं, उलटे, यह दिनोंदिन बढ़ ही रहा है. इस के लिए उन्होंने जो कुछ कर रखा है वह अभी किसी को नजर नहीं आएगा. हां, जिस दिन जनता उखाड़ फेंकेगी, उस दिन जोजो सामने आएगा, उस की भी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता. चौथी और असल बात यह थी कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और दूसरी योजनाओं के जरीए इमदाद देने के बाद भी भाजपा को उम्मीद के मुताबिक वोट और सीटें नहीं मिल रही हैं, इसलिए वोटों के लिए वही लालच दिया जा रहा है जो आज से 10 साल पहले दिया गया था कि देश में इतना काला धन है कि उसे पकड़ कर हरेक के खाते में 15-15 लाख डाल दूंगा.

नरेंद्र मोदी के इस झांसे से लोगों को कोई खास खुशी नहीं हुई, क्योंकि वे एक बार नहीं, बल्कि कई बार ऐसे धोखे पिछले 10 साल में खा चुके हैं.

इत्तिफाक से इसी दिन झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर के पीएस संजीव लाल के नौकर जहांगीर आलम के यहां से तकरीबन 35 करोड़ रुपए की नकदी बरामद हुई थी, जिसे चारा बना कर जनता के सामने उन्होंने पेश किया कि इस पैसे पर पहला हक तुम्हारा है, जो तुम्हें दिया भी जा सकता है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि मुझे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाओ.

अब इस इत्तिफाक में लोग भाजपा सरकार का यह रोल भी देख रहे हैं कि कहीं यह उस का ही कियाधरा तो नहीं. वजह, आजकल सबकुछ मुमकिन है और चुनाव जीतने के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं. यह पैसा ईमान का था या बेईमानी का, इस बारे में भी कोई दावे से कुछ नहीं कह सकता. इस में हैरानी की एकलौती बात यह है कि इसे संभाल कर कमरे में रखा गया था यानी इसे कभी न कभी खर्च किया जाता, जिस से यह बाजार में आता.

मंदिरों में तो जाम है पैसा

जो नकदी झारखंड से बरामद हुई, वह उन पैसों के आगे कुछ नहीं है जो मंदिरों में जाम पड़ा है. तथाकथित भ्रष्टाचार का पैसा अगर गरीबों का है तो मंदिरों में सड़ रहा खरबों रुपया किस का है, प्रधानमंत्री कभी इस पर क्यों नही बोलते? क्या यह पैसा भी लूट का नहीं जो लोकपरलोक सुधारने व मोक्षमुक्ति वगैरह के नाम पर पंडेपुजारियों द्वारा झटका जाता है? यह पैसा क्यों गरीबों में नहीं बांट दिया जाता, जिस के लिए किसी कानूनी सलाह की भी जरूरत नहीं?

गरीबों के लिए दुबलाए जा रहे प्रधानमंत्री चाहें तो एक झटके में देश से गरीबी दूर हो सकती है, उन्हें बस मंदिरों का पैसा गरीबों में बांटे जाने का हुक्म देना भर है, लेकिन वे ऐसा करेंगे नहीं, क्योंकि सत्ता गरीबों के वोट से ही मिलती है. एक दफा लोकतंत्र खत्म हो जाए, संविधान मिट जाए लेकिन गरीबी पर आंच नहीं आनी चाहिए. जवाहरलाल नेहरू से ले कर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से ले कर मनमोहन सिंह की सरकारों ने भी गरीबी दूर करने की सिर्फ बातें की थीं, गरीबी हटाओ के लुभावने नारे दिए थे, लेकिन इसे दूर करने को कुछ ठोस नहीं किया था. यही नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. फंडा बहुत सीधा है कि जब तक धर्म और धर्मस्थल हैं तब तक गरीबी दूर नहीं हो सकती. इन के चलते गरीब निक्कमा, निठल्ला और भाग्यवादी बना रहता है. वह मेहनत भी कामचलाऊ करता है और जब पेट पीठ से चिपकने लगता है तो सरकार अपने गोदामों के शटर उठा देती है जिस से वह भूखा न मरे.

देश के लिए तो वह किसी काम का नहीं, लेकिन धर्म के लिए उसे जिंदा रखा जाता है. वैसे भी मंदिरों के पैसों पर हक भाजपा का ही है, जिसे सलामत रखने की बाबत वह पंडेपुजारियों को पगार और कमीशन देती है, एवज में भगवान के ये एजेंट भाजपा के लिए वोटों की दलाली करते हैं. इन के कोई उसूल नहीं होते. एक वक्त में यही काम ये लोग कांग्रेस के लिए भी करते थे. इन का भगवान सिर्फ बिना मेहनत से आया पैसा होता है जो इन दिनों मोदी सरकार उन्हें दरियादिली से दिला रही है.

जब पैसे वालों को तसल्ली हो जाती है कि गरीब हैं और गरीबी किसी सरकार की देन नहीं, बल्कि इन के पिछले जन्मों के पापों का फल है, तो वह दान की, पूजापाठ की तादाद बढ़ा देता है, ताकि अगले जन्म में वह गरीबी में पैदा न हो.

ऐसे में छापों के पैसों से गरीबी दूर करने का झांसा देना एक बड़ी चालाकी है. बात तो तभी बन सकती है जब मंदिरों के खजानों का मुंह गरीबों के लिए खोल दिया जाए.
देश के मंदिरों के पैसे की थाह लेना आसान नहीं है, लेकिन यह हर कोई जानता है कि उन में अथाह धन है. हाल तो यह है कि एक अकेले तिरुपति के मंदिर की जायदाद से ही गरीबी दूर हो सकती है. कुबेर के इस रईस मंदिर के ट्रस्ट के मुताबिक बैंकों में 16,000 करोड़ रुपए की एफडी हैं, जिन का ब्याज ही करोड़ों में होता है. देशभर में मंदिर ट्रस्ट की 960 प्रापर्टी हैं, जिन की कीमत भी अरबों रुपए में है. मंदिर के पास 11 टन सोना है और तकरीबन ढाई टन सोने के गहने हैं. साल 2022-23 में ही जमा पैसे पर 3,100 करोड़ रुपए ब्याज में मिले थे और रोज करोड़ों का चढ़ावा बदस्तूर आ ही रहा है.

गरीबी तो अकेले तिरुपति के पैसे से ही दूर हो सकती है लेकिन अगर इस में अयोध्या, काशी, शिर्डी, वैष्णो देवी, उज्जैन सहित चारों धामों का भी पैसा मिला दिया जाए तो देश में अमीरों की भरमार हो जाएगी. लेकिन फिर वे भाजपा को वोट नहीं देने वाले, क्योंकि फिर उन्हें धर्म की जरूरत नहीं रह जाएगी और भाजपा को इस के सिवा कुछ और आता नहीं जो पूरे चुनाव प्रचार में मुसलिमों का डर दिखाते रामश्याम और राधेराधे करती रही. उस का मकसद पंडेपुजारियों की आमदनी पक्की करना है.

पब्लिक मीटिंगों में विपक्षियों को कोसते रहना नरेंद्र मोदी की कोई सियासी मजबूरी नहीं, बल्कि चालाकी है कि ये अगर सत्ता में आए तो मुफ्त की तगड़ी कमाई वाला धर्म और मंदिर खत्म कर देंगे, फिर सब बैठ कर चिमटा हिलाते रहना. अगर इस पैसे की इस सनातनी सिस्टम की हिफाजत चाहते हो तो मुझे वोट दो, मैं गरीबी बनाए रखूंगा, यह मेरी गारंटी है.

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