उत्तर प्रदेश की कामयाबी का भाजपा का नशा अगर पंजाब में उतरता दिखाई दिया तो इससे ये तथ्य तो स्थापित होते हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कोई राष्ट्रीय या दूसरी लहर नहीं थी और राज्यों में सिर्फ सत्ता विरोधी लहर चली है. आम तौर पर लोग अपने अपने राज्यों की सरकारों के कामकाज से संतुष्ट नहीं रहते, भाजपा ने इसका फायदा अगर खासतौर से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में उठाया तो पंजाब में इसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा. शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन खारिज कर दिया गया है और वोटर ने कांग्रेस पर भरोसा जताया है तो बात हैरत की इस लिहाज से भी है कि वहां सत्ता की प्रबल दावेदार आम आदमी पार्टी एक बेहतर विकल्प के रूप में थी, पर धाकड़ कांग्रेसी नेता केप्टन अमरिंदर सिंह की जमीनी पकड़ कांग्रेस के काम आई.
नशा पंजाब चुनाव में एक बड़ा मुद्दा था जिसे लेकर काफी बवंडर पिछले एक साल से मच रहा था. राज्य सरकार का उम्मीदों पर खरा न उतरना और बादल परिवार की बदनामी भी हार की वजह बने, इसीलिए भाजपा अब बड़ी मासूमियत से कह रही है कि हम तो पंजाब में अतिथि और सहयोगी थे. प्रचार का जिम्मा तो एसएडी का था यानि मीठा मीठा गप्प और कड़वा कड़वा थू वाली बात की जा रही है, जो राजनीति का शगल भी है.
नरेंद्र मोदी प्रचार के दौरान सिर्फ पंजाब की शान और खेतीबाड़ी की बातें करते बादल साहब बादल साहब करते रहे ,थे लेकिन राहुल गांधी ने नशे पर रोक की बात प्रमुखता से कही थी और सारे फैसले अपने हाथ में रखने का एक पुराना कांग्रेसी रिवाज भी पहली दफा तोड़ते अमरिंदर सिंह को अपने हिसाब से फैसले लेने की छूट दी थी, जिससे मतदाता में यह संदेश गया था कि अब कांग्रेस बदल रही है और सब कुछ दस जनपथ से तय नहीं होगा.
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