भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर आखिर सारी अटकलबाजियों पर न सिर्फ विराम लगा दिया, बल्कि विपक्ष को शायद अपनी रणनीति फिर से बनाने के लिए बाध्य कर दिया. सच तो यही है कि जिस नाम की अब तक कहीं चर्चा तक न थी, उस नाम को सामने लाकर भाजपा नेतृत्व ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है. मूलत: कानपुर के ग्रामीण इलाके से आने वाले रामनाथ कोविंद पिछले करीब दो साल से बिहार के राज्यपाल हैं.
उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में एक तहसील है डेरापुर. इसी के झींझक कस्बे के छोटे से गांव परौख के दलित परिवार में एक अक्तूबर, 1945 को रामनाथ कोविंद का जन्म हुआ. बाद में 1977 से 1979 तक वह दिल्ली हाईकोर्ट और 1980 से 1993 तक सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के स्टैंडिंग काउंसिलर रहे. जनता पार्टी के शासनकाल में वह प्रधानमंत्री मोराजी देसाई के निजी सचिव भी रहे. कोविंद बीजेपी के टिकट पर दो बार विधानसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. 1994 और 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए सांसद चुने गए और 12 साल तक सदन के सदस्य रहे. उनकी पहचान गरीबों और हाशिये के समाज के हक के लिए काम करने वाले नेता की रही है, जिसकी तस्दीक राज्यसभा के उनके कार्यकाल के दौरान अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला हित के मुद्दों पर उनकी आवाज उठाने में भी हुई. इस समाज के लिए तमाम कानूनी लड़ाइयां भी उन्होंने नि:शुल्क लड़ीं. यह भी उनका कौशल रहा कि संघ का पुराना कार्यकर्ता होने के बावजूद बहुत संतुलन के साथ उन्होंने अपनी छवि कभी कट्टरवादी की नहीं बनने दी. राज्यपाल के रूप में दो साल की बिना विवाद की संतुलित पारी खेलकर उन्होंने अपनी सांविधानिक योग्यता भी साबित कर दी है.
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