डाक्टर प्रकाश कोठारी को ‘फादर औफ सैक्सोलौजी स्टडी इन इंडिया’ कहते हैं. वे सेठ जीएस मैडिकल कालेज और केईएम हौस्पिटल, मुंबई में शुरू किए गए देश के पहले ‘सैक्सुअल मैडिसिन डिपार्टमैंट’ के संस्थापक प्रोफैसर रहे हैं.

साल 1981 में पीएचडी हासिल करने वाले डाक्टर प्रकाश कोठारी सातवीं वर्ल्ड कांग्रेस औफ सैक्सोलौजी (1985) और इंटरनैशनल कौंफ्रैंस औफ और्गज्म (1991) के अध्यक्ष रहे हैं और वर्ल्ड एसोसिएशन फोर सैक्सुअल हैल्थ (डब्ल्यूएएस) की सलाहकार समिति के संस्थापक सदस्य हैं.

वे पिछले 40 साल से सैक्सुअल मैडिसिन में प्रैक्टिस कर रहे हैं यानी सैक्स संबंधी समस्याओं का आधुनिक दवाओं से इलाज कर रहे हैं. अब तक उन्होंने तकरीबन 60,000 मरीजों का इलाज किया है.

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पिछले दिनों उन के मुंबई में चर्नी रोड पर बने क्लिनिक सुख सागर में सैक्स संबंधी कई विषयों पर बात की गई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट और हर तरह की मीडिया में आने वाली खबरों से लगता है जैसे देश में सैक्स अपराधों का खौफनाक तूफान आया हुआ है. हर 29 मिनट में देश में एक रेप हो रहा है. आखिर इस सब की वजह क्या है?

देखिए, वजह सोशल मीडिया हो या कुछ और, इन दिनों हर तरफ सैक्स की बातें हो रही हैं. इस सब के चलते माहौल में कामेच्छा का उभार आ गया है. लेकिन यह कामेच्छा चैनेलाइज कैसे हो, यह सिर्फ सैक्स ऐजूकेशन सिखा सकती है, जो है नहीं या सही से लागू नहीं है. दूसरी बात यह है कि उभरी हुई इस कामेच्छा को रिलीज करने के लिए वैकल्पिक उपाय नहीं हैं, इसलिए लोग उन्माद में कामेच्छा को रिलीज करने के लिए सैक्स अपराध कर रहे हैं.

तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि उभरी हुई कामेच्छा को रिलीज करने के लिए वैकल्पिक उपाय होने चाहिए, नहीं तो सैक्स अपराध होते रहेंगे?

जी, हां. देखिए, कामेच्छा को दबाने के हमारे पास 2 ही उपाय हैं, पहला ब्रह्मचर्य, जो आमतौर पर मुमकिन नहीं होता. वैसे, ब्रह्मचर्य गलत शब्द है, कहना चाहिए सैक्स में अलिप्त रहना. दूसरा है अल्टरनेटिव सैक्सुअल बिहेवियर यानी हस्तमैथुन को अपनाना. लेकिन अफसोस की बात यह है कि हस्तमैथुन के बारे में समाज में गलतफहमी बहुत है. यह गलतफहमी तब तक बनी रहेगी जब तक सही तरीके से लोगों को सैक्स ऐजूकेशन नहीं दी जाएगी.

लोग हस्तमैथुन को ले कर गलतफहमी का शिकार क्यों रहते हैं?

क्योंकि लोगों को लगता है कि हस्तमैथुन से उन में कमजोरी आ जाती है. यह समझने की बात है कि जब सहवास से शरीर में कमजोरी नहीं आती, बल्कि ताजगी आती है, तो भला हस्तमैथुन से कैसे आ जाएगी? आखिर सहवास भी मैथुन है और हस्तमैथुन कृत्रिम मैथुन है. अगर लोगों को यह बात सही तरीके से समझा दी जाए तो वे सैक्स के लिए क्राइम करने के बजाय हस्तमैथुन या दूसरे कृत्रिम उपायों को अपना कर संतुष्ट हो जाएंगे.

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हस्तमैथुन पार्टनर रहित शख्स के लिए सैक्स का एक अच्छा औप्शन है. सैक्स ऐजूकेशन सही ढंग से दी जाए तो समाज में रेप की संख्या कम हो सकती है. दुनिया के जिन भी देशों में सैक्स ऐजूकेशन सही ढंग से दी गई है, वहां एचआईवी एड्स, बढ़ती हुई आबादी और रेप की संख्या में काफी कमी आई है. उदाहरण के लिए स्वीडन.

इस समय, जबकि सैक्स अपराध बहुत ज्यादा बढ़े हुए हैं, इन्हें कम करने के लिए आप सरकार को तात्कालिक उपाय क्या सुझा सकते हैं?

जब ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा कार्यक्रम सुपरडुपर हिट हो सकता है. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक लोग उसे चाव से देख सकते हैं तो सैक्स तो और भी दिल के करीब का विषय है. अगर मर्यादित भाषा और सही तौरतरीके से सैक्स के बारे में लोगों को जानकारियां दी जाएं तो निश्चित रूप से लोगों में जागरूकता आएगी. लेकिन यह काम सरकार को करना होगा, क्योंकि जब कोई काम सरकार करती है तो उस में एक खास किस्म की ग्रैविटी होती है.

एक बात मैं जोर दे कर कहना चाहूंगा कि यह काम होगा टैलीविजन के माध्यम से ही, क्योंकि आज टैलीविजन खासकर सरकारी टैलीविजन की गांवगांव, घरघर तक पकड़ है. मैं तो यह भी कहूंगा कि यह कई तरह से फायदे वाला काम होगा.

क्या आप ने कभी ऐसा कोई सुझाव भारत सरकार को दिया है?

मुझ से किसी ने संपर्क नहीं किया. हां, जब शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति थे, उस समय मैं ने जरूर सुझाव दिया था और तब की सरकार ने उस पर अमल करने की बात भी कही थी, लेकिन सरकार बदली और सब बदल गया.

आप को क्या लगता है, रेप के खिलाफ कठोर कानून होने के बावजूद सैक्स अपराधों में कोई कमी क्यों नहीं आती है?

देखो, कानून चाहे जितना सख्त बना लीजिए मुझे नहीं लगता कानून से कभी सैक्स अपराधों में कोई कमी आएगी. अगर वास्तव में सही तरीके से फर्क हासिल करना है तो वास्तविक सैक्स ऐजूकेशन का प्रचारप्रसार करना ही होगा यानी दिल के तारों को टटोलना होगा.

देखिए, अज्ञान से विकृत कौतूहल में इजाफा होता है और ज्ञान से विकृत कौतूहल कम होता है. मतलब यह कि अगर आप लोगों को सही ज्ञान दें तो उन के अंदर का विकृत कौतूहल कम हो जाएगा.

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हस्तमैथुन के अलावा और कौन से कृत्रिम सैक्स के उपाय हो सकते हैं, जिन को बढ़ावा दे कर सैक्स अपराधों को कम किया जा सकता है?

सैक्सुअल टौयज भी ऐसे उपायों में शामिल हो सकते हैं. वे विदेशों में सैक्स की जरूरत को पूरा करने का बहुत बड़ा जरीया हैं.

भारत में भी सैक्स टौयज मिलते हैं लेकिन चोरीछिपे. सरकार को इन्हें न केवल खुलेआम बिकने देना चाहिए, बल्कि इन को बढ़ावा देना चाहिए। याद रखिए, सैक्स की ऊर्जा को कोई कम नहीं कर सकता. हम सब लोग एक ऐसी उम्र से गुजरे हैं या गुजरते हैं जब सैक्स की ऊर्जा अपने नैतिक मूल्यों के दबाव में और ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसे समय में कोई कितना ही पढ़ालिखा क्यों न हो, फिसल जाएगा.

आज तो ‘लाइफ साइज डौल’ मुहैया हैं. सरकार को बाकायदा इन के लिए खास इमारतें बनानी चाहिए और ऐसे संभोग को बढ़ावा देना चाहिए जिस से रेप और एचआईवी जैसी बीमारी पर रोक लग सके.

सैक्स जैसे विषय में लोगों की बहुत कम जानकारी या अज्ञानता के पीछे कहीं न कहीं सांस्कृतिक वजह भी शामिल नहीं है? मसलन बंद संस्कृति वाले देशों, क्षेत्रें में सैक्सुअल कट्टरता कहीं ज्यादा है खासकर कौमार्यता और पवित्रता को ले कर?

सही कहा. भारत, भारतीय उपमहाद्वीप और तमाम एशियाई देशों में कौमार्यता आज भी एक बड़ी नासमझी है. यह पूरी तरह से गलतफहमी है कि पहली बार हमबिस्तरी करोगे तो खून निकलेगा ही. मैं ने तो इस धारणा के चलते तमाम शादियों को टूटते देखा है. निश्चित रूप से यह सांस्कृतिक कट्टरता है, लेकिन मैं फिर कहूंगा कि यह कट्टरता गलतफहमी और नासमझी की देन है. ऐसी सांस्कृतिक कट्टरताओं या धारणागत जड़ताओं का निदान भी सैक्स ऐजूकेशन ही है.

वैसे, इस सब के बीच में मैं एक बात अपने अनुभव से कहूंगा कि भारत ऐसा देश है, जहां मुहब्बत की आखिरी मंजिल तो हमबिस्तरी हो सकती है, लेकिन हमबिस्तरी की आखिरी मंजिल मुहब्बत नहीं है.

मैं ने ऐसे जोड़े देखे हैं जिन में सुहागरात से ले कर 25-25, 30-30 साल तक कोई शारीरिक संबंध नहीं बने, लेकिन शादियां बनी रही हैं, टूटी नहीं हैं. विदेशी इसे सच के रूप में स्वीकार ही नहीं कर पाते.

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