पैनिक डिसऔर्डर एक ऐसा मनोरोग है जिस में किसी बाहरी खतरे के बावजूद विभिन्न शारीरिक लक्षणों, मसलन, दिल की धड़कन का असामान्य हो जाना तथा चक्कर आना आदि के साथ लगातार और आकस्मिक रूप से रोगी आतंकित हो जाता है. ये आतंकित कर देने वाले दौरे, जो कि पैनिक डिसऔर्डर की पहचान हैं, तब आते हैं जब किसी खतरे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की सामान्य मानसिक प्रक्रिया तथा कथित संघर्ष अनुपयुक्त रूप से जाग जाता है.
पैनिक डिसऔर्डर से ग्रस्त अधिकतर लोग अगले अटैक की संभावना को ले कर चिंतित रहते हैं और उन स्थितियों से बचने की कोशिश करते हैं जिन में उन के अनुसार यह भय का दौरा पड़ सकता है.
शुरुआती पैनिक अटैक
आमतौर पर पहला पैनिक अटैक कभी भी हो सकता है, जैसे कार चलाते हुए या काम के लिए जाते हुए. सामान्य गतिविधियों के दौरान एकाएक व्यक्ति डराने वाले तथा तकलीफदेह लक्षणों से ग्रस्त हो जाता है. ये लक्षण कुछ सैकंड तक जारी रहते हैं लेकिन कई मिनट तक भी यह स्थिति बनी रह सकती है. ये लक्षण लगभग एक घंटे के भीतर सामान्य हो जाते हैं. जिन लोगों पर यह दौरा पड़ चुका है वे बता सकते हैं कि उन्होंने किस तरह की बेचैनी के साथ यह डर महसूस किया था कि उन्हें कोई बहुत खतरनाक जानलेवा बीमारी हो गई है या फिर वे पागल हो रहे हैं.
ऐसे कुछ लोग जिन्हें एक पैनिक अटैक या फिर कभीकभार जिन का सामना इस दौरे से हुआ हो, उन में ऐसी किसी समस्या का विकास नहीं होता जो उन के जीवन को प्रभावित करे लेकिन दूसरों के लिए इस स्थिति का जारी रहना असहनीय हो जाता है. पैनिक डिसऔर्डर में आतंकित कर देने वाले दौरे जारी रहते हैं और व्यक्ति के मन में यह डर समा जाता है कि उसे अगले दौरे का सामना कभी भी करना पड़ सकता है.
यह भय जिसे अग्रिम बेचैनी या डर का खौफ कहते हैं, अधिकतर समय मौजूद रहता है और व्यक्ति के जीवन को गंभीर रूप से तब भी प्रभावित कर सकता है जब उस पर दौरा नहीं पड़ा हो. इस के साथसाथ उस के मन में उन स्थितियों को ले कर भयंकर फोबिया का जन्म हो जाता है जिन में उस पर दौरा पड़ा था.
उदाहरण के लिए अगर किसी को गाड़ी चलाते वक्त पैनिक अटैक हुआ हो तो वह आसपास जाने के लिए भी गाड़ी चलाने में डरता है. जिन लोगों में आतंक से जुड़े इस फोबिया का विकास हो गया हो वे उन स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं जिन के बारे में उन्हें आशंका रहती है कि उन को दौरा पड़ सकता है. परिणामस्वरूप वे अपनेआप को लगातार सीमित करते चले जाते हैं. उन का काम प्रभावित होता है क्योंकि वे बाहर निकलना नहीं चाहते और न ही समय पर अपने काम पर पहुंचते हैं.
इन दौरों की वजह से व्यक्ति के संबंध भी प्रभावित होते हैं. नींद पर असर पड़ता है और रात में दौरा पड़ने की स्थिति में व्यक्ति आतंकित हो कर जाग जाता है. यह अनुभव इतना हिला देने वाला होता है कि कई लोग सोने से भी डरने लगते हैं और थकेथके से रहते हैं. दौरा न पड़े, तब भी डर की वजह से नींद प्रभावित होती है.
इस सिलसिले में डाक्टर से मिलने के बाद जब यह पता चल जाता है कि जीवन पर खतरे की कोई स्थिति नहीं है तब भी इस दौरे से प्रभावित बहुत से लोग आतंक में डूबे रहते हैं. वे बहुत से चिकित्सकों के पास दिल की बीमारी या सांस की समस्या के इलाज के लिए भी जाया करते हैं. इस बीमारी के लक्षणों की वजह से बहुत से मरीज यह समझते हैं कि उन्हें कोई न्यूरोलौजिकल बीमारी या फिर कोई गंभीर गैस्ट्रौइनटैस्टाइनल समस्या हो गई है. कुछ मरीज कई चिकित्सकों से मिल कर महंगी और अनावश्यक जांच करवाते हैं ताकि यह मालूम किया जा सके कि इन लक्षणों की वजह क्या है.
चिकित्सकीय सहायता की यह खोज लंबे समय तक भी जारी रह सकती है क्योंकि इन मरीजों की जांच करने वाले बहुत से चिकित्सक पैनिक डिसऔर्डर की पहचान करने में असफल रहते हैं. जब चिकित्सक बीमारी की थाह पा भी लेते हैं तब भी कभीकभी वे इस की व्याख्या करते हुए यह सलाह दे देते हैं कि खतरे की कोई बात नहीं है और इलाज की कोई जरूरत नहीं है.
उदाहरण के लिए, चिकित्सक यह कह सकते हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है. आप को सिर्फ पैनिक डिसऔर्डर अटैक हुआ था. हालांकि इस का उद्देश्य सिर्फ हौसलाअफजाई होता है, फिर भी ये शब्द उस चिंतित मरीज के लिए बेहद निराशाजनक होते हैं जोकि बारबार इस तरह के आतंकित करने वाले दौरों की चपेट में रहता है. मरीज को यह बताया जाना जरूरी है कि चिकित्सक अशक्त बना देने वाले पैनिक डिसऔर्डर से होने वाली परेशानी को समझते हैं और उन का मानना है कि इस का इलाज प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.
क्या है इलाज
चिकित्सीय इलाज पैनिक डिसऔर्डर से पीडि़त मरीजों में 70 से 80 प्रतिशत को राहत पहुंचा सकता है और शुरुआती इलाज इस रोग को एगोराफोबिया की स्थिति तक नहीं पहुंचने देता. किसी भी इलाज की शुरुआत से पूर्व मरीज की पूरी चिकित्सकीय जांच की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हताशा के इन लक्षणों की और कोई वजह तो नहीं है.
ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि थायराइड हार्मोन से खास तरह की ऐपिलैप्सी और हृदय संबंधी समस्या बढ़ जाती है और पैनिक डिसऔर्डर से मिलतेजुलते लक्षण पैदा हो सकते हैं.
कौगनिटिव बिहेवियरल थैरेपी कही जाने वाली साइकोथैरेपी के प्रयोग और दवाओं के सेवन द्वारा पैनिक डिसऔर्डर का इलाज किया जा सकता है. इलाज का चयन व्यक्तिगत जरूरतों तथा प्राथमिकताओं के मुताबिक किया जाता है.
पैनिक अटैक समस्या नहीं
35 वर्षीय रोहण बैंक एग्जीक्यूटिव है. वह काम के लिए रोज दादर स्टेशन से मुंबई सीएसटी जाता था. एक दिन जब वह काम पर जा रहा था तो सीएसटी से पहले के ही स्टेशन पर उतर गया. जब वह वापस उस ट्रेन में नहीं चढ़ पाया तो दूसरी ट्रेन का सहारा ले कर औफिस लेट पहुंचा. बौस ने उसे डांटा तो वह वहीं बेहोश हो कर गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद सबकुछ सामान्य हो गया. पर इस के बाद से जब भी बारिश होती या ट्रेन लेट आती, भले औफिस में कोई कुछ नहीं कहता, पर वह पैनिक हो जाता. उसे बेहोशी छाने लगती. दिनप्रतिदिन उस का परफौर्मेंस बिगड़ने लगा. धीरेधीरे नौबत ऐसी आ गई कि वह ट्रेन में भीड़ देख कर घबराने लगता. बैठने की जगह न हो तो परेशान हो जाता. ठंड में भी पसीने छूटने लगते. उस का खानापीना कम होने लगा. वह बीमार दिखने लगा. उस की पत्नी सीमा ने कई डाक्टरों से सलाह ली. सभी ने जांच की पर कोई समस्या नहीं दिखी. किसी दोस्त ने मनोचिकित्सक के पास ले जाने की सलाह दी. सीमा, रोहण को डा. पारुल टौक के पास ले गई. डाक्टर ने करीब 1 महीने की काउंसलिंग और दवा के जरिए रोहण को ठीक किया.
ऐसी ही एक और घटना है. 45 वर्षीय अनुराधा को हमेशा छाती में दर्द की शिकायत रहती थी. घबराहट में उसे चक्कर आने लगते थे और वह कई बार बेहोश हो कर गिर पड़ती थी. उस के पति धीरेन को अपनी पत्नी को ले कर काफी चिंता सताने लगी. उन्होंने सब से पहले कार्डियोलौजिस्ट से संपर्क किया. जांच के बाद डाक्टर को कोई भी समस्या नहीं दिखी. धीरेन पेट के डाक्टर के पास भी गए क्योंकि उन की पत्नी को पेटदर्द, बारबार दस्त का लगना आदि समस्या थी. वहां भी जांच में कुछ नहीं निकला. फिर फैमिली फिजीशियन की सलाह पर वे मनोचिकित्सक के पास गए. वहां पता चला कि अनुराधा पैनिक अटैक की शिकार है.
पैनिक अटैक के बारे में मुंबई के फोर्टिस अस्पताल और निमय हैल्थकेयर की मनोचिकित्सक डा. पारुल टौक कहती हैं, ‘‘इस तरह की समस्या किसी भी उम्र की महिला, पुरुष या युवा को हो सकती है. यही अटैक आगे चल कर फोबिया या डिप्रैशन का कारण बनता है. यह कोई बड़ी बीमारी नहीं है. इसे आसानी से और बिना अधिक खर्च किए मरीज को ठीक किया जा सकता है. लक्षणों का पता चलते ही तुरंत किसी मनोचिकित्सक से मिल कर इलाज करवाएं.’’
पैनिक अटैक आने पर क्या करें
अगर आप के परिवार में या आप के आसपास किसी व्यक्ति को पैनिक अटैक आए तो घबराएं नहीं, बल्कि उस कठिन परिस्थिति में आप उस व्यक्ति की सहायता कर सकते हैं
– शांत रहें और पीडि़त व्यक्ति की शांत रहने में सहायता करें.
– अगर वह व्यक्ति एंग्जाइटी की दवा लेता है तो उसे यह दवा तुरंत दें.
– उस की समस्या को तुरंत और संक्षेप में समझने का प्रयास करें.
– उस व्यक्ति को दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे उठाने में सहायता करें.
– पैनिक होने की स्थिति में व्यक्ति को टहलाने ले जाएं, स्ट्रैचिंग या कूदने को कहें.
– पीडि़त को धीरेधीरे सांस लेने को कहें और इस में उस की सहायता करें. नाक से लंबी सांस लें और मुंह से छोड़ें.
– तुरंत किसी पास के अस्पताल में ले जाएं.
– व्यक्ति को पैनिक अटैक से बचाए रखने के लिए उस को प्रोत्साहित करते रहें.
– यदि स्थिति बिगड़ जाए तो उसे विश्वास दिलाएं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है.
– मातापिता हमेशा बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते रहें. जैसे कुछ भी अच्छा काम करने पर तारीफ करें या कहें, हमें तुम पर नाज है.
– नियमित तौर पर हैड मसाज देते रहें.
– व्यक्ति से हमेशा अपने दिल की बात खुल कर बताने को कहें.