साल 2017 में एक हिंदी फिल्म आई थी ‘पोस्टर बौयज’. यह फिल्म ज्यादा तो नहीं चली थी, पर इस फिल्म में उठाया गया मुद्दा बड़ा ही दिलचस्प था.

इस फिल्म में 3 नौजवान सनी देओल, बौबी देओल और श्रेयस तलपड़े तब मुश्किल हालात में फंस जाते हैं, जब उन की तसवीरें मर्दों की नसबंदी के लिए दिए गए एक सरकारी इश्तिहार में छप जाती हैं, जबकि उन की नसबंदी हुई ही नहीं होती है.

जैसेजैसे कहानी आगे बढ़ती है, तो अपने दोस्तों और रिश्तेदारों द्वारा बेइज्जत होने के बाद वे तीनों दोस्त व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हैं. हालांकि यह फिल्म कौमेडी से भरपूर थी, पर इस में दिखाया गया था कि नसबंदी को ले कर समाज में किस तरह का डर और भरम फैला हुआ है. इतना ज्यादा कि इसे मर्दानगी की कमी से जोड़ दिया जाता है, तभी तो आज भी भारत में मर्दों के अनुपात में औरतें ज्यादा नसबंदी कराती हैं.

मध्य प्रदेश में नसबंदी के आंकड़ों से यह बात समझते हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से चलाए गए स्क्रीनिंग प्रोग्राम और आंकड़ों में खुलासा हुआ कि साल 2017 में सिर्फ 200 मर्दों ने नसबंदी कराई थी, जबकि 18,000 औरतों की नसबंदी की गई थी.

इस का मतलब साफ है कि जब भी ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की बात पर अमल करना होता है, तब पति अपनी पत्नी को आगे कर देता है. उसे शुक्रवाहिका नामक अपनी 2 ट्यूब कटवाने में आफत आती है, जबकि ऐसा करना एक आसान और महफूज तरीके से मुमकिन है. इस के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत भी नहीं पड़ती है.

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