बिहार राज्य के मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र की मौत के बाद उन की लाश को सरकारी सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के लिए गंगा किनारे लाया गया. मुख्यमंत्री समेत कई मंत्री और अफसर वहां मौजूद थे. 21 राइफलों से हवाई फायरिंग कर उन्हें सलामी देने के लिए पुलिस वाले कतार लगा कर खड़े थे.

कई सरकारी ताम झाम के बाद हवाई फायरिंग करने का इशारा किया गया. इशारा मिलते ही पुलिस के जवानों ने एकसाथ अपनीअपनी राइफल का ट्रिगर दबा दिया. पर यह क्या, राइफलों की गरज के बजाय सन्नाटा पसर गया. पुलिस के जवानों की राइफलों से गोली ही नहीं चल सकी. राइफलों के फुस होने के साथ ही बिहार पुलिस के सुरक्षा के दावों की हवा भी निकल गई.

मौके पर मौजूद सरकार और उस के  झंडाबरदारों को मानो सांप सूंघ गया. पुलिस के आला अफसर एकदूसरे का मुंह ताकते हुए बगलें  झांकने लगे.

आननफानन पुलिस मकहमा हरकत में आ गया और जांच का ऐलान कर दिया गया. पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि सभी राइफल में बेकार कारतूस भरे थे. ऐसे हथियारों से अगर पुलिस का अपराधियों से मुकाबला हो जाए, तो पुलिस वालों की जान जाने का पूरा डर है.

जांच में यह भी पता चला कि कारतूसों की जांच पिछले कई सालों से नहीं हुई है. कारतूस एक तय समय के बाद बेकार हो जाते हैं.

एसएसपी ने पुलिस हैडर्क्वाटर को लिखी चिट्ठी में कहा है कि पुलिस लाइन का शस्त्रागार जर्जर हालत में है. बारिश होने पर उस में पानी भी भर जाता है.

पटना जिले में ही तैनात 7,000 जवानों, 1,000 एसआई और 150 इंस्पैक्टरों को पिछले 10 सालों में एक बार भी फायरिंग रेंज में प्रैक्टिस नहीं कराई गई है, जबकि नियम के मुताबिक हर साल फायरिंग प्रैक्टिस की जानी है.

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साल 2010 से साल 2019 के बीच 5,000 सिपाहियों की बहाली हुई, पर टे्रनिंग के बाद कभी भी उन्हें फायरिंग प्रैक्टिस के लिए नहीं भेजा गया.

बिहार में प्रति एक लाख की आबादी की सुरक्षा के लिए महज 70 पुलिस वाले तैनात हैं. राज्य में कुल 70 लाख पुलिस वाले हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य में कुल 3,600 वीआईपी हैं और उन की हिफाजत के लिए 13,000 पुलिस के जवान लगाए गए हैं.

नैशनल लैवल पर प्रति एक लाख की आबादी पर 147 पुलिस के जवानों की तैनाती होनी चाहिए. बिहार में हर मंत्री की हिफाजत के लिए 2-8 का ऐस्कौर्ट दस्ता लगाया गया है. इन में से 1 से 4 पुलिस वाले हर समय मंत्री के साथ रहते हैं और उतने ही उन के बंगले की हिफाजत में तैनात रहते हैं.

इस के अलावा 3 बौडीगार्ड और स्पैशल ब्रांच के 3 सिपाही भी मंत्री के इर्दगिर्द लगे रहते हैं. हर विधायक और विधान पार्षद को 3-3 बौडीगार्ड दिए गए हैं.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बिहार के 11 बड़े नेताओं को केंद्रीय जैड और वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है. इस में 5 नेताओं को वाई प्लस की सुरक्षा दी गई है. केवल मुख्यमंत्री को जैड प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी गई है. जैड प्लस श्रेणी में 36 सुरक्षाकर्मी होते हैं, जिस में 10 एनएसजी के जवान होते हैं, वहीं जैड श्रेणी में 22 सुरक्षाकर्मी और 5 एनएसजी के जवान होते हैं. वाई श्रेणी में 11 सुरक्षाकर्मी रहते हैं, जिस में 1-2 कमांडो होते हैं. ऐक्स कैटीगरी में 2 से 5 पुलिस वाले लगाए जाते हैं.

वहीं आम आदमी की हिफाजत को ले कर सरकार का रवैया भी पूरी तरह लापरवाही का है. हालत यह है कि बिहार पुलिस में सिपाही के 22,655 पद, सबइंस्पैक्टर के 4,546 पद और ड्राइवर (सिपाही) के 2,039 पद खाली हैं. इस से कानून व्यवस्था को कायम रखने में काफी परेशानी हो रही है.

अगस्त, 2019 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने सरकार की इस लापरवाही पर खरीखरी सुनाई. कोर्ट ने कहा कि इस से साफ लगता है कि सरकार को आम नागरिकों की हिफाजत का जरा भी खयाल नहीं है.

राज्य सरकार के वकील ने कहा कि इन खाली पदों को भरने में 4 साल लग जाएंगे. इस से नाराज हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव और गृह सचिव से पूछा है कि इन खाली पदों को कम से कम कितने  समय में भरा जा सकता है.

गौरतलब है कि अप्रैल, 2017 में बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि साल 2020 तक सभी पद भर लिए जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मौनिटरिंग का जिम्मा पटना हाईकोर्ट को सौंपा था. अब वह हाईकोर्ट में कह रही है कि इसे भरने में साल 2023 तक का समय लग जाएगा.

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गरीबों से घूस

देशभर में पुलिस वालों के घूस लेने के हजारों अजबगजब किस्से मशहूर हैं, लेकिन इस मामले में भी बिहार पुलिस की अदा ही निराली है. बिहार पुलिस को घूस में कुछ भी चलेगा. पैसे नहीं हैं, तो जूता ही खरीद कर भिजवा दो. सब्जी ही दे दो. चिकन या बकरे का मांस ही पहुंचा दो. मोमोज भी चलेंगे यानी भागते भूत की लंगोटी ही सही.

पिछले दिनों पटना के दीघा थाना के दारोगा पंकज कुमार ने केस डायरी हलका करने के बदले पीडि़त से 7,000 रुपए की मांग की. जब पीडि़त ने अपनी गरीबी का हवाला देते हुए पैसा देने में आनाकानी की, तो दारोगा का मन पसीज गया और उन्होंने एक ब्रांडेड जूते की डिमांड कर डाली. पीडि़त ने 2,500 रुपए का जूता ला कर दारोगाजी को भेंट किया, तब जा कर उस का काम बना. उस के बाद इस पूरे मामले का वीडियो वायरल हो गया और दारोगाजी सस्पैंड हो गए यानी मियां की जूती मियां के सिर वाली कहावत सच साबित हो गई.

मार्च, 2019 में पटना कोतवाली पुलिस ने रात को पैट्रोलिंग के दौरान एक पिकअप वैन को रोका. वैन में बकरे पाए गए. साथ ही, बकरे का कारोबारी शराब के नशे में चूर था. पुलिस वालों की बांछें खिल गईं.

शराबबंदी वाले राज्य में शराबी के पकड़े जाने पर पुलिस वालों को मानो लौटरी लग जाती है. पिकअप वैन समेत कारोबारी को पकड़ कर थाने लाया गया.

कारोबारी को तो जेल भेज दिया गया, पर पिकअप वैन वाले ने जब पुलिस वालों से छोड़ देने की गुहार लगाई तो पुलिस वालों ने आजादी के बदले मटन पार्टी का इंतजाम करने को कहा.

पटना के मौर्यलोक कमर्शियल कौंप्लैक्स में एक दारोगा ने सड़क के किनारे गाड़ी लगा कर मोमोज बेचने वालों को गाड़ी हटाने की धौंस दिखा कर मुफ्त के मोमोज पर हाथ साफ कर डाला.

दारोगा के चटोरेपन की रामकहानी एसएसपी तक पहुंच गई. एसएसपी ने दारोगा को इस कदर फटकार लगाई कि मोमोज का स्वाद ही किरकिरा हो गया.

राज्य में साइबर अपराध तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और ठग आम आदमी को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बिहार पुलिस के लिए साइबर ठगी के मामले काला अक्षर भैंस बराबर हैं. साइबर फ्रौड के मामले सामने आने पर पुलिस भी प्राइवेट जानकारों की मदद लेने को मजबूर है.

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अब सरकार इस मामले में संजीदा होती नजर आ रही है. बिहार के थानों में तैनात इंस्पैक्टर और दारोगा को साइबर ऐक्सपर्ट बनाने की कवायद शुरू की गई है. पटना पुलिस कार्यालय में इस के लिए वर्कशौप का आयोजन किया जाएगा.

सिटी एसपी (मध्य) विनय तिवारी ने बताया कि आजकल आम लोगों को साइबर क्राइम की वजह से सब से ज्यादा परेशानी और नुकसान हो रहा है. शिकायतों के जल्द निबटारे के लिए जरूरी है कि इंस्पैक्टर और दारोगा साइबर ऐक्सपर्ट हों. थानों के चुने गए एसआई और एएसआई को साइबर मामलों में ऐक्सपर्ट बनाया जाएगा. उन्हें बताया जाएगा कि क्राइम के सीन और सुबूत को कैसे सुरक्षित रखा जाएगा.

इस के अलावा सोशल साइट, सीडीआर, एनालिसिस, एटीएम और बैंकों के बारे में जानकारी दी जाएगी.

आईएएस अफसरों का भी टोटा

बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था आईएएस अफसरों की कमी से जू झ रही है. बिहार में आईएएस अफसरों की तादाद तय कोटे से 25 फीसदी कम है. राज्य में आईएएस अफसरों के कुल 342 पद हैं, लेकिन फिलहाल 248 अफसर ही तैनात हैं. 94 पद खाली हैं. इस का असर बिहार से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए तय कोटे पर भी पड़ रहा है. राज्य से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए 74 आईएएस का कोटा तय है, जबकि अभी 34 अफसर ही केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं.

आईएएस अफसरों की कमी की वजह से कई अफसरों के कंधे पर एक से ज्यादा महकमे का बो झ है. राज्य में मुख्य सचिव लैवल के 10, प्रधान सचिव लैवल के 18 और सचिव, विशेष सचिव, अपर सचिव और संयुक्त सचिव लैवल के 159 पद हैं.

केंद्र सरकार हर 5 साल में आईएएस अफसरों का कोटा बढ़ाती है. पिछली बार साल 2014 में रिविजन हुआ था. राज्य सरकार ने 14 पद को बढ़ाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. राज्य में आईएएस के कुल 342 पद में से 104 पद राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को प्रमोशन दे कर भरा जाता है. फिलहाल साल 2016 बैच के 15, साल 2017 बैच के 17 और साल 2018 बैच के 15 पदों को प्रमोशन के जरीए भरा जाना है.

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