उत्तर प्रदेश के जनपद संत कबीर नगर के खलीलाबाद कोतवाली इलाके की रहने वाली चंचल की हत्या उस के ही बाप विजय कुमार ने इसलिए कर दी, क्योंकि वह अपने बाप से स्कूल की 800 रुपए फीस जमा करने की जिद कर बैठी. पिता को बेटी की यह बात नागवार लगी और उस ने गुस्से में आ कर बेटी का गला दबा दिया.

चंचल मौके पर बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद विजय कुमार ने बस्ती जनपद में अपनी ससुराल चित्राखोर में अपने साले अमरनाथ पांडेय को फोन कर के इस वारदात की जानकारी दी.

अमरनाथ अपने ड्राइवर गोपाल और बहनोई रविचंद्र को ले कर विजय के घर पहुंचा और वहां बेहोश पड़ी चंचल उर्फ कालिंदी को 30 नवंबर, 2018 की रात तकरीबन 10 बजे बोरे में भर कर उसे बस्ती जिले के लालगंज थाना क्षेत्र में ले गया और कुआनों नदी पर बने बानपुर पुल से नीचे फेंक दिया.

इस वारदात के दूसरे दिन 1 दिसंबर, 2018 की सुबह जब गांव वालों ने एक लड़की की लाश को नदी में तैरते देखा तो उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने लाश को नदी से निकलवा कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी.

लालगंज के थाना प्रभारी राजेश मिश्र ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर जब तफतीश शुरू की तो चित्राखोर से चंचल की शिनाख्त हो गई.

पुलिस के लिए केस कुछ आसान होता दिखा और उस ने तफतीश की सूई चंचल के परिवार पर फोकस कर के जांच शुरू की तो बाप विजय कुमार पर शक हुआ.

जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो विजय कुमार ने चंचल की हत्या किए जाने की बात कबूल ली. इस के बाद इस हत्या में शामिल उस के साले अमरनाथ पांडेय और लाश को ठिकाने लगाने में इस्तेमाल की गई कार को बरामद कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से एक बात और सामने आई कि चंचल को जब नदी में फेंका गया था तब वह जिंदा थी.

इस वारदात से एक बात साफ हो गई है कि कई बार मांबाप अपने बच्चों की जिद के चलते अपना आपा खो बैठते हैं, फिर इस का गुस्सा बच्चों पर उतारने लगते हैं. इस गुस्से के चलते बच्चों को जिस्मानी और दिमागी जोरजुल्म का शिकार होना पड़ता है.

कई बार तो मांबाप के गुस्से का शिकार हो कर बच्चे या तो अपंग हो जाते हैं या फिर उन की मौत भी हो जाती है. इस के बाद मांबाप के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं रहता है.

नाजायज रिश्तों का गुस्सा

मांबाप द्वारा अपने मासूम बच्चों के ऊपर जुर्म करने की एक बड़ी वजह है नाजायज रिश्ता, क्योंकि बच्चों के चलते कई बार नाजायज रिश्तों का राज खुल जाने का डर मांबाप को होता है.

बस्ती के जिले के कप्तानगंज थाना क्षेत्र के गांव दयलापुर में नाजायज रिश्तों में रोड़ा बन रही 3 साल की मासूम सृष्टि को उस की ही मां सीमा ने गला दबा कर मार डाला था. बेटी की हत्या करने के बाद वह लाश को आंचल में छिपा कर गांव के सिवान में ले गई और भूसे के ढेर में छिपा दिया.

कप्तानगंज के तबके थानाध्यक्ष रोहित प्रसाद ने इस कांड को उजागर किया था और बताया था कि सृष्टि की मां सीमा ने ही उस की हत्या की थी.

सीमा ने पुलिस को बताया कि बैसोलिया के रहने वाले मंजीत पाठक से उस का नाजायज रिश्ता था. सृष्टि ने उन्हें संबंध बनाते हुए देख लिया था.

3 साल की मासूम सृष्टि अपने पिता को घर में दिन के वक्त किसी के आने की बात बताया करती थी इसलिए सीमा भड़क गई और डंडे से उसे पीटने लगी.

मंजीत पाठक मौके से खिसक गया था. लेकिन गुस्से से भरी सीमा अब सृष्टि को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने की ठान चुकी थी. लिहाजा, उस ने मासूम सृष्टि का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

अगर मांबाप में से कोई भी अपनी सैक्स की भूख नाजायज रिश्तों से मिटा रहा है तो इस का असर बच्चों पर न आने दें. अगर कभी ऐसा हो जाता है कि बच्चा अपने मांबाप के नाजायज रिश्तों के बारे में जान जाए तो कोशिश करें कि जिस के साथ ऐसा रिश्ता है, उस से दूरी बना लें.

अगर बच्चा आप के रिश्ते की बात किसी को बता भी दे तो भी आप बच्चे के ऊपर जुर्म करने से बचें, क्योंकि इस बदनामी को तो शायद आप भूल भी जाएंगे, लेकिन अपने नाजायज रिश्तों को छुपाने के चलते बच्चे से किए गए अपराध में न केवल उस से हाथ धो बैठेंगे, बल्कि जिंदगीभर के लिए सलाखों के पीछे भी पहुंच जाएंगे.

झल्लाहट पर रखें काबू

कई बार तो मांबाप काम के बोझ, नाकामी, औफिस की टैंशन वगैरह के चलते परेशान होते हैं. ऐसी हालत में बच्चे जब मांबाप से प्यार से भी बात करते हैं तो उन्हें अनायास ही मांबाप के गुस्से का शिकार होना पड़ता है. कभीकभी यह गुस्सा बच्चे को पीटने तक पहुंच जाता है. इस गुस्से के चलते ही अकसर मासूमों की जान तक चली जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता विशाल पांडेय का कहना है, ‘‘हर मांबाप की यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों के पालनपोषण को ले कर सजग रहें. ऐसा देखा गया है कि कई बार लोगों का खुद पर काबू नहीं रहता है जिस के चलते वे अपनी नाकामी और झल्लाहट अपने बच्चों के ऊपर उतारने लगते हैं.

‘‘बच्चे अपने मांबाप का विरोध करने की हालत में नहीं होते हैं और उन पर आसानी से जुर्म किया जा सकता है. इस से बचाव के लिए हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम अपने घर और काम करने की जगह की चिंता को एकदूसरे से अलग रखें. हम अपने काम की या दूसरी चिंता घर में न लाएं. अगर परेशान भी हैं तो भी बच्चों से प्यार से बात करें, उन की बातें सुनें और जरूरी होने पर उन की मदद करें.’’

खर्च पर लगाएं लगाम

अकसर हम दूसरों की नकल कर के अपनी कमाई से ज्यादा खर्च बढ़ा लेते हैं. इस के चलते हम दिनोंदिन कर्ज के बोझ से दबने लगते हैं. फिर समय से बच्चों की फीस न भर पाना, रसोई की जरूरतों के साथसाथ बच्चों की जरूरतों को पूरा न कर पाना आम बात हो जाती है.

जब आप का बच्चा दूसरे बच्चों को अच्छा खातेपहनते देखता है तो वह भी उसी तरह रहनेखाने की जिद करने लगता है, इसलिए शुरुआती दौर से अपने बच्चों का पालनपोषण अपनी माली हालत को देखते हुए ही करें, नहीं तो आगे चल कर जैसेजैसे बच्चे की जरूरतें बढ़ेंगी तो उस की मांगें भी बढ़ती जाएंगी.

ऐसे में बारबार बच्चे द्वारा कहे जाने के बावजूद बच्चों की जरूरतें पूरी न कर पाने के चलते आप में गुस्सा और झल्लाहट बढ़ने लगती है, जो धीरेधीरे बच्चों के ऊपर जुर्म के रूप में सामने आने लगती है.

इस बात से बचें

सामाजिक कार्यकर्ता अनीता देव का कहना है, ‘‘कई बार हम बच्चों के लाड़प्यार में उन की गैरजरूरी ख्वाहिशों को पूरा करने लगते हैं. इस वजह से बच्चों में जिद की आदत बढ़ती जाती है. कई बार बच्चे ऐसी जिद भी कर बैठते हैं जिसे पूरा करना आप के बस का काम नहीं होता है.

‘‘ऐसे में बात तब ज्यादा बिगड़ती है जब बच्चे अकसर गैरजरूरी चीजों के लिए जिद करने लगते हैं और अगर मांबाप की कमाई अच्छी नहीं है तो वे इस का गुस्सा बच्चों पर उतारने लगते हैं.’’

नशे से रहें दूर

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणिमा का कहना है, ‘‘नशे में इनसान अकसर होशोहवास खो बैठता है. उस में अच्छेबुरे का फर्क करने की समझ नहीं रहती है. नशे के आदी लोगों की माली हालत तेजी से बिगड़ने लगती है जिस की वजह से वे बच्चों की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं कर पाते हैं.

‘‘अगर कभी बच्चा मांबाप से अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कहता भी है, तो उसे पूरा न कर पाने की झल्लाहट में वे बच्चे को मारनेपीटने लगते हैं.

‘‘नशे में इनसान यह भी नहीं सोचता है कि बच्चे को गंभीर चोट भी लग सकती है. ऐसे में बच्चा अपंगता या मौत का भी शिकार हो सकता है.

‘‘ऐसे हालात से बचने का केवल एक ही उपाय है कि बच्चों की खातिर नशे से दूरी बनाएं और नशे के ऊपर होने वाले बेजा खर्च को बच्चों की पढ़ाईलिखाई के साथसाथ पालनेपोसने पर लगाएं.’’

परिवार को रखें छोटा

सामाजिक कार्यकर्ता अनीता देव के मुताबिक, ज्यादा बच्चे पैदा कर लेना समझदारी का काम नहीं माना जा सकता है. समझदारी का काम यह है कि छोटा परिवार रखते हुए बच्चे का सही से लालनपालन किया जाए और उन की अच्छी पढ़ाई पर ध्यान दिया जाए.

बच्चे को गुस्से का शिकार होने से बचाने के लिए मांबाप का यह फर्ज है कि वे बच्चे को अच्छा माहौल दें. उन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करें.

अगर आप की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं है तो कोशिश करें कि आप कोई भी आमदनी बढ़ाने वाले रोजगार अपनाएं. इस से आप के बच्चों के भविष्य और आप के बुढ़ापे के लिए अच्छा रहेगा.

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