भ गत सिंह लाहौर के नैशनल कालेज के स्टूडैंट थे. तब भारतपाकिस्तान वाली सरहदें न थीं. उम्र कोई 20-21 साल. जवान और बेतहाशा खूबसूरत. औसत ऊंचाई, पतला व लंबा चेहरा, चेहरे पर हलके से चकत्ते, झानी दाढ़ी और छोटी सी मूंछ. उम्र की इस नाजुक दहलीज में विचारों की धार पैनी थी.

उस दौरान एक सुंदर सी लड़की कालेज में उन्हें देख कर मुसकरा दिया करती थी. चर्चा थी कि वह लड़की भगत सिंह को पसंद करती थी और उन्हीं की वजह से वह क्रांतिकारी दल के करीब आ गई थी. वही क्रांतिकारी दल जिस का नाम रूसी क्रांति से प्रेरित हो कर भगत सिंह ने फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन कर दिया था.

इस दल के बीच जब असैंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बता कर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपने से इनकार कर दिया. भगत सिंह के खास दोस्त सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि ‘भगत, तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है.’

इस आरोप से भगत सिंह उदास हो गए और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असैंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर दे कर अपने नाम करवाया. यह वही परिघटना है जिस पर आगे जा कर वामपंथी विचारकों में बड़ी बहस भी हुई कि भगत सिंह का खुद आगे आ कर बम फेंकने का निर्णय कितना सही था, जबकि बम फेंकने के बाद हश्र क्या होगा, यह सब को मालूम था.

8 अप्रैल, 1929 को असैंबली में बम फेंकने की योजना थी. लेकिन इस से पहले वे प्रेम को ले कर अपनी भावनाओं को अपने प्रिय दोस्त सुखदेव को बता देना चाहते थे. वे बता देना चाहते थे कि प्यार कभी बाधा नहीं बनता, बल्कि वह तो सहयोगी होता है लक्ष्य की प्राप्ति में.

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