आर्ट कालेज में चित्रकला के पाठ्यक्रम का एक महत्त्वपूर्ण विषय है न्यूड स्टडी. मानव शरीर की पेंटिंग या स्कैच बनाने के लिए शरीर की तमाम बारीकियों को जानना जरूरी है. महिला और पुरुष के शरीर के तमाम उतार चढ़ाव, उस का गठन, अलग अलग होते हैं. आर्ट कालेज में गठनगत बारीकियों का अध्ययन लाइफ स्टडी कहलाता है. इस के अलावा अलगअलग शारीरिक भावभंगिमाओं का भी अध्ययन लाइफ स्टडी या न्यूड स्टडी में शामिल है. इस के लिए आमतौर पर एक जीतेजागते नग्न पुरुष या नग्न महिला मौडल की मदद ली जाती है. तब न्यूड स्टडी होती है.

एक समय था जब लाइफ  स्टडी के लिए मौडल मिलने मुश्किल हुआ करते थे. अब इस पेशे में जो भी लड़कियां या औरतें आती हैं, वे परिवार और समाज से छिप कर आती हैं और आमतौर पर गरीब घरों से होती हैं. ये मजबूरी में पेशे में आती हैं. कोलकाता आर्ट कालेज में बतौर न्यूड मौडल काम करने वाली कुछ गिनीचुनी ही मौडल हैं.

लतिका कर्मकार (बदला हुआ नाम) कोलकाता के चित्रकारों के लिए न्यूड पोज देने वाली मौडल है. वह एक निजी कंपनी में चायपानी पिलाने का काम करती है. कभीकभार कोलकाता के कुछ चित्रकारों के लिए न्यूड पोज भी देती है. पर यह काम लतिका किसी छुट्टी वाले दिन ‘प्राइवेटली’ ही करती है. वह बताती

है कि मौडलिंग की एक सिटिंग में उसे 1,000-5,000 रुपए मिल जाते हैं. उस के घर पर माता पिता के साथ उस की एक बेटी है. उस का पति 5 महीने की बेटी के साथ उसे छोड़ कर जा चुका है. पिता निजी कंपनी के दफ्तर में चपरासी थे. अब रिटायर्ड हैं. अपना और अपनी बेटी का खर्च चलाने के लिए वह एक निजी कंपनी में काम करती है. किसी पेंटर के आमंत्रण पर वह न्यूड पोज देती है.

बीना पुरकायस्त (बदला हुआ नाम) भी एक न्यूड मौडल है. और इस काम का उसे बहुत लंबा अनुभव है. 19 साल की उम्र से वह न्यूड पोज देती आ रही है. इस पेशे में उसे 23 साल हो गए हैं. बंगाल के कई नामी गिरामी पेंटरों के लिए उस ने न्यूड पोज दिए हैं. बीना का मानना है कि यह काम बहुत कठिन होता है. कई बार एक जैसे पोज में बैठे रहने पर पैर सुन्न हो जाते हैं. आमतौर पर पेंटर मौडल को बीच बीच में 15 मिनट का ब्रैक देते हैं.

वह बताती है कि कई बार आर्टिस्ट अपने काम में कुछ इतने मगन हो जाते हैं कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहता कि एक जीता जागता इंसान एक ही भाव भंगिमा में कितनी देर तक बैठे रह सकता है. वहीं, वह यह भी बताती है कि अगर पोज देते हुए मौडल सकुचाए, शर्माए, हिलती डुलती रहे तो ऐसी मौडलों को अगली बार काम मिलने में परेशानी होती है. कभी कभी आर्टिस्ट की सहूलियत के अनुसार मौडल को बार बार पोज बदलना भी पड़ता है. वह बताती है कि आजकल एस्कौर्ट के पेशे में आई लड़कियां भी न्यूड पोज देने को तैयार हो जाती हैं. लेकिन इस के लिए वे मोटा मेहताना वसूलती हैं. इसीलिए, आम न्यूड मौडल की अब भी मांग है.

कोलकाता के जाने माने आर्टिस्ट जोगेन चौधरी कहते हैं कि हमारे देश में न्यूड स्टडी का चलन यूरोपीय पेंटिंग के प्रभाव में शुरू हुआ. वे कहते हैं, ‘‘मजेदार बात यह है कि हमारे देश में जब किसी पुरुष मौडल को न्यूड स्टडी के लिए बुलाया जाता है तो वह पूरी तरह से निर्वस्त्र नहीं होता है.’’ महिला मौडल को ज्यादातर न्यूड पोज देना होता है, ऐसा क्यों? उन का कहना है कि कला और नारीदेह सौंदर्य की दृष्टि से न्यूड पुरुष मौडल की अपेक्षा महिला मौडल कहीं अधिक उपयुक्त मानी जाती हैं.

आर्ट कालेज में अपने पहली लाइफ स्टडी के बारे में बताते हुए जोगेन चौधुरी अपनी फाइन आर्ट के तीसरे वर्ष की छात्रा वस्था के दिनों में लौट जाते हैं. ‘न्यूड स्टडी की वह पहली क्लास थी. बहुत तनाव में थे सारे छात्र. क्लास में एक दुबली पतली 14-15 साल की मौडल आई. क्लास के बाहर उस के माता पिता बैठे थे. हमारे प्रोफैसर थे देवकुमार राय चौधुरी, लाइफ स्टडी के विशेषज्ञ. हाल ही में इटली से लौटे थे. क्लास में केवल प्रोफैसर ही मौडल के बदन को हाथ लगा सकते थे. लड़की के बदन को छू कर प्रोफैसर ने उस के पोज को ठीक किया.’

जोगेन बताते हैं कि मौडल की मनोस्थिति को वे बखूबी समझ रहे थे. इसीलिए उन्हें उस की चिंता भी हो रही थी कि इतने सारे लड़कों के सामने बेचारी मौडल कैसे न्यूड बैठेगी? कितनी देर तक बैठना होगा? मन ही मन उस के प्रति बड़ी सहानुभूति हो रही थी. पर किया कुछ नहीं जा सका. 5 सालों के पाठ्यक्रम में बीच बीच में लाइफ  स्टडी चलती रही.

वे यह भी बताते हैं कि उस समय मौडल मिलना बहुत मुश्किल होता था. ज्यादातर बदनाम गलियों की लड़कियां या औरतें इस काम के लिए उपलब्ध हो पाती थीं. गौरतलब है कि जोगेन चौधुरी की एक विख्यात लाइफ  स्टडी है – सुंदरी. यह पेंटिंग ललित कला अकादमी से प्रकाशित हुई थी. पर आज यह आउट औफ  प्रिंट है. बंगाल के बहुत सारे पेंटर न्यूड स्टडी में महारत प्राप्त हैं. उन की न्यूड स्टडी की शैली भी अलगअलग हैं. प्रकाश कर्मकार ‘इरोटिक’ न्यूड पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं तो परितोष सेन क्युबिस्टिक शैली के लिए.

एलिना बनिक कोलकाता की जानी मानी पेंटर हैं. आर्ट कालेज में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि यह उन दिनों की बात थी जब उन्होंने स्कूल से सीधे आर्ट कालेज में दाखिला लिया था. लाइफ  स्टडी की क्लास में महिला और पुरुष मौडल के बीच होने वाले भेदभाव को ले कर वे अकसर मुखर हो जाया करती थीं.

वे कहती हैं कि पुरुषदेह के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था. समझ भी नहीं थी. लेकिन एक बार बहस के दौरान सहपाठी मित्र ने आ कर कान में झल्लाते हुए कहा कि पुरुष मौडल पूरी तरह से न्यूड नहीं हो सकता है. अरे, पुरुषांग कभी भी हिलडुल सकता है. एलिना को बात समझ नहीं आई और वे अपनी बात पर अड़ी रहीं कि महिला मौडल की तरह पुरुष मौडल को भी पूरी तरह से न्यूड रहना होगा और वह दिन तकरार में ही बीत गया. आज इस बात को याद कर के वे मुसकरा देती हैं.

बहरहाल, यह तो हुई लाइफ स्टडी में एक महिला पेंटर के सामने आने वाली दिक्कतों की बात. इसी तरह महिला मौडल भी कई तरह की परेशानियों से जूझती हैं. यहां कुछेक घटनाओं का जिक्र जरूरी समझती हूं ताकि समझा जा सके कि ये मौडल किस तरह की विपरीत परिस्थितियों में काम करती हैं.

नारीदेह की समस्याएं

कोलकाता आर्ट कालेज. एक बड़े कमरे में बहुत सारे आर्ट स्टूडैंट्स अपनेअपने कैनवस के साथ तैयार बैठे हैं. यह क्लास न्यूड स्टडी की है. क्लास में केवल एक स्टूडैंट लड़की के अलावा बाकी सभी लड़के हैं. क्लास चालू है. क्लास में एक नग्न महिला एक खास भावभंगिमा में बैठी है. उसे देखदेख कर स्टडी करने के साथ स्केचिंग की क्लास जारी है. अचानक क्लास में मौजूद लड़की ने देखा कि मौडल के लिए अपनी भावभंगिमा के साथ बुत बन कर बैठे रहना संभव नहीं हो पा रहा है. वह कुछ कुछ सकुचा सी रही है, सिमटती चली जा रही है.

आमतौर पर स्टडी क्लास में नियमानुसार मौडल को बुत बन कर बैठे रहना होता है. कहीं कुछ तो था कि मौडल सामान्य आचरण नहीं कर पा रही थी. और उस के सकुचाने सिमटने से क्लास में बैठे स्टूडैंट्स एक हद तक परेशान व नाराज हो रहे थे. पर मौडल थी कि बारबार भावभंगिमा से डिगती चली जा रही थी. ऐसे में तमाम स्टूडैंट्स के साथ क्लास में बैठी लड़की उठती है और मौडल के पास जाती है. कुछ देर मौडल के साथ फुसफुसाने के बाद वह लौट कर आती

है और क्लास के तमाम स्टूडैंट्स से मुखातिब हो कर कहती है, ‘तुम लोग जरा क्लास से बाहर जाओ.’

क्लास के स्टूडैंट्स भौचक रह जाते हैं और कुछ तो झल्ला तक जाते हैं. ‘क्यों, अब क्या हुआ? पहले ही इतना समय बरबाद हो चुका है.’

क्लास की वह स्टूडैंट बौखला कर अपने साथी स्टूडैंट को डपटते हुए कहती है, ‘मैं ने कहा, तुम लोग अभी क्लास से बाहर जाओ, तो बाहर जाओ, बिना बहस किए.’ धीरे धीरे क्लास खाली हो गई. इस के बाद उस लड़की ने क्लास का दरवाजा बंद किया.

दरअसल, निर्वस्त्र मौडल का अचानक पीरियड शुरू हो गया था. और ऐसे में वह अपनी लज्जा को भला कैसे ढकती. वहीं, क्लास में मौजूद इतनी सारी निगाहें केवल उस पर और उसी पर टिकी हुई थीं. इस कारण वह अपनी भावभंगिमा के साथ बुत बन कर बैठी नहीं रह पा रही थी. जाहिर है, उस दिन न्यूड स्टडी की क्लास नहीं हुई. मौडल अपने घर लौट गई.

मुश्किलभरा पेशा

एक न्यूड मौडल को अपने पेशे के लिए काम करते हुए क्या क्या नहीं करना पड़ता है. वाकया ऋतुपर्णो घोष की फिल्म ‘चोखेर बाली’ का भी है. कहानी की मांग पर शूटिंग के दौरान एक न्यूड मौडल की जरूरत पड़ी. दरअसल, फिल्म का सहनायक महेंद्र डाक्टरी पढ़ रहा था. एनोटौमी के क्लास का एक दृश्य था, जिस में एक मृतक महिला को टेबल पर सोना था. फिल्म के सहयोगी कला निर्देशक को एक न्यूड मौडल की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई. एक मौडल मिली, पर इस शर्त पर कि फिल्म में किसी भी सूरत में उस का चेहरा न दिखाया जाए और वह मौडल थी कांचन मित्रा (बदला हुआ नाम). कांचन कहती है कि मृत शरीर यानी मृतक को मेकअप की कोई जरूरत नहीं थी लेकिन एनोटौमी की क्लास दिखानी थी तो मौडल के लिए मृतक का मेकअप जरूरी था. मृत दिखाने के लिए मौडल के शरीर का मेकअप करवाया गया. यह मौडल के लिए सब से कठिन काम था. वहीं, फिल्म में लाइट की एक अहम भूमिका होती है. किस एंगल से कितनी रोशनी मृतक के शरीर पर पड़नी चाहिए, ताकि फिल्मांकन अच्छा हो, इस की जांच के लिए मौडल को बार बार मेकअप कर के एनोटौमी टेबल पर सोना जरूरी था. उस के नग्न शरीर को बार बार टचअप करना जरूरी हो जाता था. जाहिर है न्यूड मौडल को बहुत परेशानी पेश आ रही थी.

कांचन को 4 बजे घर जाना था. लेकिन शूटिंग अभी पूरी नहीं हुई थी. और उस के बेटे के स्कूल से आने का समय हो रहा था. कांचन ने सोचा था कि मृत शरीर की शूटिंग होनी है, इस में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा पर सुबह से ले कर 4 बज गए. ऋतुपर्णो घोष को जब पता चला कि मौडल घर जाना चाहती है तो वे एकदम से उखड़ गए. आखिर मौडल को छुट्टी नहीं मिली. काम पूरा होने के बाद ही उसे घर जाने दिया गया.

कुल मिला कर मौडलिंग पेशे की यह लाइन यानी न्यूड मौडलिंग अपना कर पैसा कमाना बहुत ही मुश्किल भरा काम है. वैसे, प्रकाशन या प्रसारण में मौडल का चेहरा तो नहीं दिखाया जाता लेकिन शूटिंग के दौरान स्टूडैंट्स, संबंधित विज्ञापन या फिल्म की यूनिट के सदस्य तो मौडल को साक्षात देखते ही हैं. बहरहाल, महिलाओं के लिए यह भी एक पेचीदा व अजीबोगरीब पेशा है.

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