देश मे आर्थिक इमरजेंसी लगाने की बाते करना भाजपा सरकार की जरूरत हो सकती है, लेकिन देश की जरूरत कतई नही है. सरकार कोरोना वायरस को शोषण का जरिया बनाने पर आमादा है.
जिनकी मदद करनी थी, उनसे ही मदद मांग रहे है, किसानों से,छात्रों से, कर्मचारियो से अर्धसैनिक बलों से मदद मांग रहे है.
जो पीड़ित है, और बीमारों का इलाज करने में लगे हुए है, उनका वेलफेयर फ़ंड मांग रहे है. बेशर्मी के तमाम रिकॉर्ड ही तोड़ दिए है.
कर्मचारियो का डी ए जुलाई 2021 तक फ्रीज कर दिया है, 4 % जो जनवरी ड्यू था वह नही दिया और आगे को तीन बार का डीए नही मिलेगा यानि कुल मिलाकर वेतन का 15 % के आस पास डीए कट जाएगा. इनकमटैक्स कट ही चुका है. अब भी कट ही रहा है.
टीए न देने का आदेश कर ही चुके है, एक दिन का वेतन एक वर्ष तक काटकर पीएम केयर फ़ंड में देने के आदेश कर दिये है.
निजी कंपनियों को तो उपदेश दिए जाते हैं कि किसी का वेतन न रोकें पर उनके बकाए भुगतान को भी रोका जा रहा है और खुद कर्मचारियों के वेतन काटे जा रहे हैं.
कर्मचारी संगठनों ने इस कटौती का विरोध किया है पर जब तक पंडे पूजारी और उनके इशारे पर चलने वाले टीवी हैं, सरकार को डर नहीं. फिर भाजपा का आईटी सैल भी रात-दिन एक कर मोदी के गुणगान में लगा है ताकि धर्म और उससे चल रहे जातीय भेदभाव बना रहे.
रिटायर्ड फौजी सुप्रीम कोर्ट चले गए है. रिटायर्ड फौजियों का डीए काटना घोर अनर्थ है. उन्होंने कोर्ट में चुनौती दी है. इन्हीं फौजियों का नाम लेकर चुनाव जीते जाते हैं पर अब हाल में चुनाव नहीं हो रहे तो उन्हें कुर्बान कर दिया गया है.
कर्मचारी संगठन, किसान संगठन, मजदूर संगठन और छोटे दुकानदारों के संगठन मिलकर अडानी अम्बानी की सेवक सरकार का खुलकर विरोध कभी नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनके नेता ऊंची जातियों के ही हैं.