हमारे समाज में सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को इज्जत की नजर से देखा जाता है. इस की वजह से सरकारी नौकरियों की तरफ नौजवानों का झुकाव ज्यादा है, पर बढ़ती आबादी और नौकरियों की कमी की वजह से सभी पढ़ेलिखे नौजवानों को सरकारी नौकरी मिलना मुमकिन नहीं  है. इस के बावजूद जब नौजवान अपने कैरियर के बारे में सोचते हैं तो उन्हें सिर्फ सरकारी नौकरी ही दिखाई पड़ती है. फार्म भरते समय भी ज्यादातर नौजवानों का कोई टारगेट नहीं होता. वे अफसर से ले कर क्लर्क और चपरासी की नौकरी तक के फार्म भरते हैं.

ये नौजवान सोच ही नहीं पाते हैं कि सरकारी नौकरी के अलावा भी रास्ते हैं. सरकारी नौकरी सभी को नहीं मिल सकती. अगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो सरकारी नौकरियां महज 2 फीसदी के करीब ही हैं.

सरकारी नौकरी की तरफ दौड़ रहे लोगों में से 2-3 फीसदी नौजवानों को ही नौकरी मिलेगी तो बाकी लोग कहां जाएंगे?

सरकारी नौकरी के फायदे

सरकारी नौकरी में जौब सिक्योरिटी के साथसाथ दूसरी बहुत सी सुविधाएं भी मिलती हैं. सरकारी नौकरी का मतलब है आरामदायक नौकरी. काम हो या न हो, तनख्वाह तो हर महीने मिलेगी ही. पद के हिसाब से ऊपरी कमाई भी.

देश की टौप सरकारी नौकरी में आईएएस है. एक आईएएस अफसर को अच्छी तनख्वाह के साथसाथ इज्जत भी मिलती है. इन अफसरों को मोटी तनख्वाह के साथसाथ सरकारी घर, गाड़ी, मुफ्त के सरकारी नौकर और भी कई तरह की दूसरी सुविधाएं भी मिलती हैं.

बिहार में कई जगहों पर पुल बनने के बाद लिंक रोड बनाने व एनटीपीसी थर्मल पावर बनाने में किसानों द्वारा भूमि अधिग्रहण मामले में जिले के पदाधिकारी द्वारा करोड़ों रुपए की गैरकानूनी कमाई खुलेआम की गई.

सरकारी नौकरी में कई महकमे और पद हैं. पद का अपना रुतबा होता है और काली कमाई पद के हिसाब से होती है. अगर पदाधिकारी को एक लाख रुपए की रिश्वत मिलती है तो उस के क्लर्क को भी 10,000 रुपए मिलेंगे. 100-200 रुपए चपरासी भी कमा लेंगे.

जिला लैवल के पदाधिकारी की अगर रिश्वत से कमाई हर महीने 5 लाख रुपए है तो बड़ा बाबू 80-90 हजार रुपए और चपरासी भी महीने में 10,000 रुपए कमा लेता है.

ब्लौक लैवल का पदाधिकारी अगर रिश्वत लेता है तो उस में जिला लैवल तक के पदाधिकारियों तक का हिस्सा पहुंचता है. जनवितरण प्रणाली, आंगनबाड़ी केंद्र, मिड डे मील योजना, मनरेगा वगैरह सभी महकमों में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि रिश्वत में भागीदारी नीचे से ले कर ऊपर तक के पदाधिकारियों तक है. दिखावे के लिए निगरानी विभाग कभीकभार कुछ पदाधिकारियों को पकड़ कर महज खानापूरी करता रहता है और आम लोगों को यह दिखाना चाहता है कि विभाग भ्रष्टाचार के प्रति सचेत है.

पेशकार खुलेआम जज के सामने नजराना लेते हैं. इस बात को देशभर के लोग बखूबी जानते हैं और इस की चर्चा आम बातचीत के दौरान लोग करते भी रहते हैं.

इज्जत में है बढ़ोतरी

सरकारी नौकरी में काम का दबाव कम रहता है. जवाबदेही उतनी नहीं रहती. काम हुआ तो भी ठीक, नहीं तो अगले दिन पर टाल देते हैं.

सरकारी नौकरी में आजादी है. आप के पास समय की कमी नहीं है. ड्यूटी के बाद आप के पास समय ही समय है. सरकारी नौकरी में साप्ताहिक छुट्टी के अलावा भी कई छुट्टियां होती हैं.

सरकारी नौकरी में प्रमोशन होने के साथ ही तनख्वाह में बढ़ोतरी के लिए समय तय है. इस के लिए अलग से कोई काम नहीं करना है. सरकारी नौकरी में कई तरह के भत्ते मिलते हैं. मैडिकल छुट्टी के साथसाथ पूरे महीने की तनख्वाह के साथसाथ चिकित्सीय भत्ता भी मिलता है. सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को मोटी रकम की जरूरत होने पर सरकारी लोन कम ब्याज पर आसानी से मिल जाता है.

2 दोस्तों की कहानी

रितेश और दीपक दोनों दोस्त हैं. दोनों ने साथसाथ रह कर ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की. दोनों रेलवे की तैयारी पटना में साथ रह कर करने लगे. 3 साल की तैयारी और कंपीटिशन में रितेश की नौकरी स्टेशन मास्टर के पद पर हो गई, जबकि दीपक काफी मेहतन करता रहा. 4 साल बीत गए, पर उस की नौकरी नहीं लगी.

दीपक की उम्र भी 27 साल के करीब पहुंच गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह निराश हो कर अपने गांव आ गया और उस ने अपने गांव में सरकारी बैंक से लोन ले कर राइस मिल खोल ली.

दीपक की राइस मिल खूब चलने लगी. 5 साल में राइस मिल से पैसा कमा कर 2 ट्रक और अपने चलने के लिए गाड़ी खरीद ली.

पैक्स का चुनाव लड़ कर दीपक पैक्स अध्यक्ष से कौआपरेटिव का जिलाध्यक्ष तक बन गया. उस की आगे की योजना बतौर विधायक चुनाव लड़ने की है.

रितेश की नौकरी जब स्टेशन मास्टर में लगी थी तो उस के परिवार के साथसाथ गांव वाले भी उस की इज्जत करने लगे. उस की शादी में दहेज में भी मोटी रकम मिली.

दीपक जब पहले गांव आता था तो उसे लोग कहते थे कि 5 साल से तैयारी कर रहा है लेकिन इस की नौकरी नहीं लगी. अब उम्मीद नहीं है. परिवार और गांव वालों के उलाहनों से दीपक दुखी हो जाता था. लेकिन वह हताश नहीं हुआ और नई योजनाएं बना कर अपना राइस मिल का कारोबार खड़ा कर इस मुकाम तक जा पहुंचा.

सरकारी नौकरी ही क्यों

सरकारी नौकरी में मौज ही मौज दिखती है. सरकारी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है, लेकिन एक बार मिल गई तो 60 साल तक मौज ही मौज. समय से काम पर गए तो ठीक, देर से गए तो भी कोई बात नहीं. जरूरत पड़ने पर महीनों क्या सालों छुट्टी मिल जाती है.

अगर सरकारी नौकरी में आप ऊंचे पदाधिकारी हैं तो समझिए कि मुफ्त में नौकर. नीचे की पोस्ट वालों पर रोब जमा कर अपने घर के काम कराते हैं. रिश्तेदारों और दोस्तों में अलग पहचान और घमंड. रहने के लिए सभी तरह की सुविधाओं से लैस सरकारी क्वार्टर, मैडिकल सुविधा, लोन सुविधा. परिवार के साथ घूमने के लिए टूर सुविधा… न जाने क्याक्या.

और भी हैं रास्ते

जो लोग सरकारी नौकरी नहीं करते हैं, वे अपना कारोबार शुरू कर अच्छे मुकाम तक पहुंच सकते हैं. धीरू भाई अंबानी, टाटा, बिड़ला या दूसरे बड़े पूंजीपति और उद्योगपति कारोबार कर के ऊंचे शिखर तक पहुंचे हैं. इन लोगों ने बहुत सारे लोगों को रोजगार भी दिए हुए हैं. छोटा कारोबार कर के भी बहुत लोग सरकारी नौकरी करने वाले लोगों को मात दे रहे हैं.

इस के अलावा प्राइवेट नौकरी में भी अच्छी तनख्वाह और सुविधाएं दी जाती हैं. सालाना 50 लाख, 25 लाख रुपए कमाने वाले लोगों की तादाद इन कंपनियों में भी होती है.

आज का समय कौमर्शियल दौर का है. उस के लिए वर्क फोर्स की जरूरत है. हम उस वर्क फोर्स का हिस्सा बन कर अपने समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं.

हर साल 2 करोड़ नौकरियों का लालच दे कर सत्ता में आई भाजपा सरकार पिछले साढ़े 4 साल में भी इतनी नौकरियां नहीं दे सकी. इस बीच लाखों की तादाद में नए बेरोजगार बढ़ गए. सब से बुरी मार खेती और लघु व घरेलू उद्योगों पर पड़ी. नोटबंदी और जीएसटी के चलते छोटेबड़े सभी कामधंधे प्रभावित हुए. पब्लिक सैक्टर हो या सरकारी, सभी में बुरी हालत हुई. हर जगह छंटनी हुई या अभी होगी.

यहां की ज्यादातर जनता गरीबी में जिंदगी गुजार रही है और अपने ऊपर आई मुसीबतों को तकदीर का नाम दे कर दिमागी बोझ को हलका करती है. धर्म से ले कर राजनीति तक तरहतरह के पाखंड फैले हुए हैं और ठग व बदमाश लोग उन की अगुआई कर रहे हैं. इन झमेलों से निकलने के लिए नई सोच के साथ बेहतर कोशिश करने की जरूरत है.

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