किन्नर समाज हिंदू धर्म के अंधविश्वास का शिकार है. इसी के चलते यह समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाता है. सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि खुद किन्नर अंधविश्वास को अपनी कमाई का जरीया बनाते हैं.

रूढि़वादी रीतिरिवाजों जैसे शादी, बेटा या बेटी का जन्म, गृह प्रवेश जैसे आयोजनों की आड़ में वे मोटा दान लेते हैं. दान को अपना हक समझते हुए वे कई बार जोरजबरदस्ती करने लगते हैं, जिस की वजह से आपराधिक वारदातें भी घट जाती हैं.

किन्नर समाज कबीलाई संस्कृति का भी शिकार होता रहा है. गुरु की गद्दी पर कब्जा करने के लिए कई तरह के दांवपेंच भी आजमाए जाते हैं.

लेकिन अब किन्नर समाज बदल रहा है. पहले जहां देश के अलगअलग हिस्सों में केवल किन्नर सम्मेलन या मेले लगते थे, पर अब किन्नर फैशन शो भी करने लगे हैं.

लखनऊ में किन्नर समाज की पायल सिंह ने ‘पायल फाउंडेशन’ बना कर किन्नरों को नई राह दिखाने का काम शुरू किया है. इस वजह से पूरे देश में किन्नर समाज का हुनर सामने आ रहा है.

आमतौर पर ढोलक की थाप पर शगुन मांगने और उम्मीद से कम मिलने पर जोरजोर से ताली बजाने की पहचान वाले किन्नर लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में एक के बाद एक रैंप पर उतरे, तो देखने वाले देखते ही रह गए.

पायल सिंह कहती हैं, ‘‘मैं ने यह महसूस किया है कि जब तक मुख्य समाज में हम अपने अच्छे बरताव से संबंध नहीं सुधारेंगे, तब तक हमें कोई स्वीकार नहीं करेगा.

‘‘जब मैं ने अपने समाज में सुधार की बात कही, तो मेरा विरोध हुआ. इस के बाद भी मैं ने कभी हार नहीं मानी और अपना काम जारी रखा.

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