लेखिका- निभा सिन्हा

24 दिसंबर, 1994 को गोरखपुर की बसंत नरकटिया नामक जगह पर कहकशां अंसारी ने जन्म लिया, तो सब से ज्यादा मायूस अब्बा मोहम्मद खलील अंसारी हुए थे.

वजह, लड़कियों का क्या, वे तो भारी खर्च करा कर शादीब्याह कर के दूसरे का घर आबाद करेंगी. बेटा होता तो बड़ा हो कर उन के काम में हाथ बंटाता.

मोहम्मद खलील अंसारी गीता प्रैस गोरखपुर में काम करते थे, पर घरखर्च चलाने के लिए अरबी भाषा की ट्यूशन भी लेते थे.

नन्ही कहकशां बचपन से ही चंचल, हठी और बातूनी थी. एक बार जो ठान लिया, उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. उस के घर या आसपास की लड़कियां जब सिर पर दुपट्टा रख गुड्डेगुडि़यों का खेल खेलती थीं, मेहंदी लगवाने या नई चूडि़यां पहनने की जिद करती थीं, तब कहकशां इधरउधर ऊधम मचाती फिरती थी या हमउम्र दोस्तों को चिढ़ाया करती थी.

कहकशां को गेंद से खेलना बहुत भाता था. गेंद से खेलतेखेलते कब उसे फुटबाल से लगाव हो गया, पता ही नहीं चला, पर फुटबालर बनना उस के लिए इतना आसान भी नहीं था. स्कूल में उसे सिर्फ गेम्स पीरियड में ही खेलने का मौका मिल पाता था.

ये भी पढ़ें- मजबूत बदन की बेखौफ टौम गर्ल नीलम सिंह

कहकशां के हुनर और लगन को देखते हुए 7वीं जमात में उस का चयन अपने स्कूल ‘इमामबाड़ा मुसलिम गर्ल्स इंटर कालेज, गोरखपुर’ की फुटबाल टीम में हो गया था. यह उस के लिए बड़ी खुशी की बात थी, पर घर के बड़ेबुजुर्गों ने इस की पुरजोर खिलाफत की थी.

कहकशां पहले 2-3 दिनों तक तो चुप ही रही, फिर उस ने हिम्मत और अक्ल से काम लिया. वह सीधे पहुंच गई फुटबाल कोच आरडी पौल के पास. उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया और अगले दिन उन्हें अपने घर ले कर पहुंच गई.

कोच आरडी पौल ने अम्मीअब्बू से बात की, कहकशां के हुनर और मजबूत इरादों से परिचित करा कर उन्हें राजी तो कर लिया, पर संयुक्त परिवार के दूसरे कई सदस्यों की खिलाफत फिर भी जारी रही.

अम्मीअब्बू के हां कहने के बाद तो कहकशां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. उस ने अपनी मेहनत दोगुनी कर दी. बेटी की उपलब्धि ने अब्बू का दिल भी जीत लिया था. बेटी के सपनों को पूरा करने में अब वे भी साथ देने लगे. गरमी के दिनों में सुबह साढ़े 4 बजे और सर्दियों में सुबह साढ़े 5 बजे उसे उठाते, अपने साथ ले जा कर ग्राउंड में छोड़ते और वहीं से मसजिद चले जाते.

सुबह के 8 बजे तक कहकशां प्रैक्टिस करती, घर आ कर अम्मी के काम में थोड़ा हाथ बंटाती और फिर तैयार हो कर स्कूल पहुंच जाती, शाम को फिर अभ्यास. यही दिनचर्या बन गईर् थी उस की.

कहकशां की मेहनत रंग लाई और अगली बार ही उस का चयन सबजूनियर नैशनल फुटबाल टीम में हो गया. अब्बू खुश थे, पर इस बार अम्मी अड़ गईं कि वे उसे बाहर नहीं जाने देंगी. बड़ी मुश्किलों के बाद किसी तरह अम्मी को राजी कर लिया गया.

अपनी तरफ से कहकशां कोशिश करती कि अच्छा खेले, पर कई बार गलतियां हो जाती थीं. कमियों को दूर करने के लिए कोच द्वारा बुरी तरह डांट भी पड़ती थी. साधन सीमित थे और मंजिल दूर, उसे महसूस हुआ कि अच्छे इंटरनैशनल खिलाडि़यों के खेल देख कर वह अपनी कमियों को दूर कर सकती है.

घर में टैलीविजन नहीं था. जिस दिन फुटबाल मैच देखना होता, वह शाम को थोड़ी दूरी पर रहने वाली अपनी बूआ के घर पहुंच जाती. वहां थोड़ा पढ़लिख कर बूआ के कामों में हाथ बंटाती और रात में मैच देखती, फिर वहीं से सुबह प्रैक्टिस करने समय पर गाउंड में पहुंच जाती.

ये भी पढ़ें- गांव की लड़की और शादी से पहले सेक्स

अब कहकशां के हुनर को रफ्तार मिल गई. उस ने सबजूनियर नैशनल, जूनियर नैशनल सभी खेला. 2008 में अंडर 14 में बिहार वुमंस चैंपियनशिप में उत्तर प्रदेश की तरफ से कहकशां ने प्रतिनिधित्व किया. उस की टीम जीती. उसे बैस्ट कैप्टन और बैस्ट प्लेयर घोषित किया गया. साल 2010 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा गोरखपुर में ‘पूर्वांचल सम्मेलन समारोह’ में सम्मानित करते हुए सर्टिफिकेट दिया गया.

एक तरफ कहकशां को फुटबालर बनने की तमन्ना थी, तो वहीं दूसरी तरफ पढ़ने का हौसला भी रखती थी. स्कूल तक की पढ़ाई तो पूरी हो गई, पर आगे की पढ़ाई जारी रखने में माली चुनौतियां सामने थीं. स्कूल के दिनों में ही बीमारी के चलते अब्बू को नौकरी छोड़नी पड़ी थी.

पर कहते हैं न कि ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती’, डरना तो कहकशां जानती ही नहीं थी, बस उस का भी समाधान निकाल लिया इस हठी लड़की ने. कालेज की पढ़ाई के बाद लाइब्रेरी में जा कर पढ़ती और उस के बाद कई घरों में ट्यूशन पढ़ा कर रात 9 बजे तक घर लौटती, ताकि समय से फीस भरी जा सके.

आज कहकशां अपनी लगन और मेहनत के बल पर गे्रजुएशन के साथसाथ बैचलर औफ फिजिकल ऐजूकेशन का कोर्स पूरा कर चुकी है और संफोर्ट वर्ल्ड स्कूल, ग्रेटर नोएडा में फुटबाल कोच के रूप में काम करती है.

कहकशां के अब्बू अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन के बाद अम्मी व 5 छोटे भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए स्कूल खत्म होने के बाद शाम को ‘बाइचुंग भूटिया फुटबाल स्कूल, ग्रेटर नोएडा’ में 2 घंटे बच्चों को फुटबाल खेलने की ट्रेनिंग देती है.

अपनी जद्दोजेहद के बारे में पूछने पर कहकशां कहती है, ‘‘अभी लहरों के बीच नौका में पतवार चलानी शुरू की है. मंजिल तो अभी बाकी है, दूर है… पर नामुमकिन नहीं.’’

ये भी पढ़ें- छोटी जात की बहू

कहकशां का फिजिकल ऐजूकेशन में मास्टर डिगरी और पीएचडी कर के अपनी अकादमी शुरू करने का इरादा है, ताकि भारतीय फुटबाल टीम के लिए और भी कहकशां पैदा की जा सकें.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...