छत्तीसगढ़ में प्रतिबंध के बावजूद हुक्का “बार बार” सरकार और प्रशासन के द्वारा रोके नहीं रुक रहा है. प्रदेश की बड़ी बड़ी होटलों में सफेदपोश हाथों के संरक्षण तले यह खेल बिना रुके अविराम चल रहा है. और औपचारिकता वश पुलिस प्रशासन कार्रवाई करता है फिर कुंभकरण नींद में सो जाता है. जबकि यह सबको पता है कि भूपेश बघेल सरकार ने प्राथमिक रूप से इसे गंभीरता से लेकर पूर्णरूपेण प्रतिबंध लगा दिया है. और कानून सख्त रूप से बनाकर प्रशासन को यह जिम्मेदारी दे दी है कि प्रदेश में हुक्का बार कतई नहीं चलना चाहिए. मगर कागजों में, और हकीकत में, जैसा अंतर होता है यहां भी वही हालो हवाल है.
कोरोना वायरस के समय में जब छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहर लाक डाउन हैं हुक्का बार चल रहे हैं . राजधानी रायपुर में 22 सितंबर की रात को पुलिस ने बारंबार शिकायत के बाद एक बड़ी होटल में कार्रवाई की और यह प्रदर्शित किया कि पुलिस हुक्का बार पर कार्रवाई कर रही है. पुलिस के अनुसार
संपूर्ण लॉकडाउन के दूसरे दिन देर रात हुक्का बार में दबिश देकर 28 युवाओं को धड़ल्ले से बेखौफ होकर कर धुआं उड़ाते पकड़ा है-
बता दें कि मामला सिविल लाइन, रायपुर थाना क्षेत्र का है. जहां ब्लू स्काई कैफे में छुप-छुप युवाओं के पहुँचने की सूचना पुलिस चेकिंग पोईँट में मिली थी, जिसके आधार पर पुलिस नगर पुलिस अधीक्षक नसर सिद्दीकी के नेतृत्व में पुलिस ने रेड की कार्रवाई की जहाँ से 28 युवाओं को हुक्का पीते हुए पकड़ा गया .पुलिस ने पकड़े गए युवाओं के विरुद्ध भा. द. वि. की धारा 269 ,270 के साथ कोटपा एक्ट के तहत कार्रवाई की.
सभी बड़े शहरों की यही कहानी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग आदि शहरों में धड़ल्ले से जगह-जगह संचालित हो रहे हुक्का बार पर पहले ही कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार लगाम कसने की औपचारिकता पूरी कर चुकी है. कैफे, रेस्टोरेंट, होटल के नाम पर चल रहे हुक्का बार में युवक-युवतियों, महिलाओं के साथ बच्चों को प्रवेश दिए जाने का मामला विधानसभा में उठने के बाद सरकार की ओर से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने रोक लगाने के लिए कानून बनाने के साथ छापामार कार्रवाई करने की घोषणा कर मामले को शांत करा दिया था. मगर हुआ क्या ? आने वाले दिनों में अवैध हुक्का बारों पर सख्त कार्रवाई करने के संकेत पुलिस अफसरों ने दिये थे बीते एक साल में अनेक हुक्का बार पर छापामार कार्रवाई की गई है. मतलब यह कि कानून बन जाने के बाद भी कानून का भय है हुक्का बार संचालकों को होटल वालों को नहीं है?
शहर और आउटर इलाके में संचालित हुक्का बार की पड़ताल करें तो पायेंगे होटल, रेस्टोरेंट, क्लब, मॉल में हुक्का बार चल रहे हैं. इसके लिए कानून का कोई अवरोध, भय नहीं है. धूम्रपान और नशे वाली जगहों पर नाबालिगों को प्रवेश नहीं दिए जाने के आबकारी विभाग के निर्देश हैं. बावजूद इसके अलग-अलग फ्लेवर के तंबाकू हुक्के में डालकर परोसा जा रहा है. और पुलिस बहुत दबाव के बाद ही नाम मात्र की कार्रवाई कर रही है.
कानून है, कानून का राज नहीं है
नशाखोरी पर लगाम लगाने के लिए छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने बड़ा निर्णय लिया . राज्य सरकार ने प्रदेश भर में संचालित हुक्का बार को बंद करने का निर्णय लिया . मुख्यमंत्री निवास में आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक कर प्रदेश के सभी हुक्का बार को कड़ाई से बंद कराने का निर्णय लिया गया . बैठक के बाद वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद अकबर ने मीडिया से चर्चा में इसकी पुष्टि की. मंत्री अकबर ने कहा कि सरकार अब कड़ाई से सभी हुक्का बारों को बंद कराएगी. हुक्का बार की चपेट में युवा वर्ग आ रहा है, जिसके बाद सरकार ने इसको बंद करने का निर्णय लिया है. मगर सरकार के बड़ी-बड़ी बातों के बाद भी कानून बनाए जाने के बाद भी, अगरचे छत्तीसगढ़ में “हुक्का बार” चल रहा है तो आखिर दोषी कौन है? और लाख टके का सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ को पंजाब के रास्ते पर ले जाकर, यहां के युवाओं को नशे का आदी कौन बनाना चाहता है.
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युवाओं को बर्बाद कौन करना चाहता है?
छत्तीसगढ़ अंचल के सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत कहते हैं- कोरोना समय में जिस तरीके से राजधानी रायपुर में होटल में 28 युवा हुक्का बार में पुलिस द्वारा धर दबोचे गए हैं उससे यह सिद्ध हो जाता है कि हुक्का बार बड़े मजे से चलाए जा रहे हैं और कानून का भय किसी को नहीं है.
दो सौ से लेकर बारह सौ का हुक्का, बार में सहजता से मिलता है .अलग-अलग फ्लेवर के हुक्के की कीमत अलग-अलग है. कॉलेज के छात्र, बड़े घरों के युवक-युवती, नाबालिग आदि इनके शौकीन हैं. इन्हें आदी बनाया जा रहा है और जैसा कि मालूम है बाद में इन युवाओं का अपराधिक व अन्य गतिविधियों में उपयोग किया जाता है.
यहां उल्लेखनीय है कि सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 (सीओटीपीए) के अंतर्गत 23 मई 2017 को केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर हुक्के के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा रखा है. गुजरात समेत कई राज्यों में इस तरह का काम करने वालों को तीन साल की जेल हो रही है. पंजाब में धारा 144 के तहत कार्रवाई भी की जा रही है. छत्तीसगढ़ में कानून होने के बाद भी हुक्का बार युवाओं का जीवन बर्बाद कर रहा है. पहले तो सिर्फ कानून की आंखों में पट्टी बंधी रहती थी मगर अब लगता है कि पुलिस और जनप्रतिनिधियों की आंखों में भी पट्टी बंध गई है.