भारत में हर साल 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है, क्योंकि 1928 में इसी दिन महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन ने अपनी खोज ‘रमन इफैक्ट’ की घोषणा की थी. वे पहले भारतीय थे, जिन्हें विज्ञान के क्षेत्र में ‘नोबल पुरस्कार’ मिला था. उन्हें साल 1954 में ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था.

भले ही चंद्रशेखर रमन को 42 साल की उम्र में ‘नोबल पुरस्कार’ मिला था, पर विज्ञान के प्रति उन की दिलचस्पी स्कूली जीवन में ही पड़ गई थी. शायद इसलिए कि विज्ञान की नई तकनीकों को समझाने के लिए थ्योरी के साथसाथ प्रैक्टिकल तरीके से भी पढ़ाया जाता है और छात्रों से प्रोजैक्ट्स बनवाए जाते हैं, ताकि नएनए आविष्कार होने की उम्मीद बंधी रहे.

दिल्ली के ब्रिटिश स्कूल में 11वीं क्लास में पढ़ने वाले छात्र अर्णव गुप्ता ने अपने एक ऐसे ही प्रोजैक्ट के तहत ऐसा ‘मोटोराइज्ड सोलर ट्रैकर’ बनाया है, जो बिजली पैदा करने के लिए सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल कर के सौर पैनल की दक्षता को बढ़ाएगा.

दरअसल, ज्यादातर सोलर पैनल जब इंस्टौल किए जाते हैं तो उन्हें दक्षिण दिशा की ओर एक खास अवस्था में फिक्स कर दिया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत असरदार नहीं है, क्योंकि सूर्य की दिशा और दशा पूरे दिन बदलती रहती है, लेकिन इस ‘मोटराइज्ड सोलर ट्रैकर’ की खासीयत यह है कि यह पूरे दिन सौर पैनल को घुमाएगा और पूर्व से पश्चिम की ओर सूर्य की गति को ट्रैक करेगा, जिस से यह पहले से कहीं ज्यादा ऊर्जा का प्रोडक्शन करेगा.

आसान भाषा में समझें तो यह ‘मोटराइज्ड सोलर ट्रैकर’ एक जबरदस्त  सन (सूर्य) लोकेशन सैंसर है जो डीसी मोटर को घुमाता है, जो बदले में सोलर पैनल को घुमाता है, ताकि पैनल का मुंह पूरे दिन सूर्य की ओर रहे और ज्यादा से ज्यादा बिजली का प्रोडक्शन हो.

इस तकनीकी से दूरदराज के गांवों और कसबों में बिजली की सप्लाई हो सकेगी. इतना ही नहीं, इस सौर ऊर्जा का इस्तेमाल हमारे घरों, दफ्तरों और स्कूलों में भी किया जा सकेगा.

विष्य में नतीजा कुछ भी निकले, पर छात्रों को इस तरह के प्रोजैक्टों पर काम करते रहना चाहिए, क्योंकि ये उन का आत्मविश्वास बढ़ाते हैं. छात्र जब अपने हाथों से मौडल बनाते हैं और प्रदर्शनियों में प्रस्तुतियां देते हैं, तो सार्वजनिक तौर पर बोलने से उन का मंच का डर भी दूर हो जाता है.

यही वजह है कि आजकल स्कूलों में इस तरह की गतिविधियों को बहुत ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार भी समयसमय पर छात्रों के लिए विज्ञान से जुड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित कराती रहती है. प्राइवेट स्कूलों के साथसाथ सरकारी स्कूल भी विज्ञान से जुड़े प्रोजैक्ट और सैमिनार कराने में पीछे नहीं हैं.

इसी का सुखद नतीजा है कि साल 2017 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय डांगीगुनाऊं के एक छात्र रोहित रौतेला ने विज्ञान प्रतियोगिता में ब्लौक और जिला लैवल पर पहला नंबर हासिल किया था. रोहित ने ‘अपशिष्ट प्रबंधन और जलाशयों का संरक्षण’ नामक सब्जैक्ट पर अपना प्रोजैक्ट तैयार किया था.

इस के अलावा अगर मांबाप खुद जागरूक हो कर अपने बच्चों को विज्ञान से जुड़ी ऐसी गतिविधियों के बारे में बताएंगे और उन्हें इन में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे तो यकीनन नएनए आविष्कारों की राह निकलेगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...