Social Inequality, लेखक - शकील प्रेम

एससी तबके को सताने की खबरें आएदिन अखबारों में छपती रहती हैं. कहीं दूल्हे को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता है, तो कहीं किसी एससी को बेरहमी से पीटा जाता है. यह आम एससी समाज के हालात हैं.

कहते हैं कि आम और खास में फर्क होता है, लेकिन दुख तो इस बात का है कि इस तबके को सताने के मामले में आम और खास में कोई फर्क नहीं दिखता. एससी अगर आईपीएस अफसर भी बन जाए, तो वहां भी उस का शोषण होता है. एससी अगर राष्ट्रपति भी हो तो भी दबाया जाता है. सेना, पुलिस, यूनिवर्सिटी या देश का कोई भी इंस्टिट्यूटशन हो, हर जगह एससी तबके के साथ भेदभाव और शोषण होता ही है. बस, सताने के तरीके बदल जाते हैं.

7 अक्तूबर, 2025 को हरियाणा के सीनियर आईपीएस अफसर वाई. पूरन कुमार ने चंडीगढ़ के सैक्टर 11 के अपने सरकारी आवास के बेसमैंट में अपनी सर्विस रिवौल्वर से खुद को गोली मार कर खुदकुशी कर ली थी.

वाई. पूरन कुमार 2001 बैच के एडीजीपी रैंक के अफसर थे. 8 पन्नों के सुसाइड नोट में उन्होंने 8 आईपीएस और 2 आईएएस अफसरों के नाम लिए थे. इस नोट के मुताबिक इन तमाम बड़े अफसरों ने उन्हें लगातार सताया था.

सुसाइड नोट में वाई. पूरन कुमार ने कैरियर में भेदभाव और अपने सीनियरों के द्वारा जातिवादी बरताव का जिक्र किया था. उन की पत्नी आईएएस अमनीत पी. कुमार ने भी अपनी शिकायत में कहा था कि उन के पति की खुदकुशी ‘सिस्टमैटिक उत्पीड़न’ का नतीजा है.

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