Social Problem, लेखक - शकील प्रेम
भारतीय समाज में बेटा पैदा होना हमेशा से मूंछ की बात रही है. किसी के घर बेटा हुआ तो इसे त्योहार की तरह मनाया जाता है. पकवान बनते हैं और रिश्तेदारों में मिठाई बांटी जाती है. वजह, घर का नया वारिस पैदा हो गया है, जो वंश को आगे बढ़ाएगा.
इस के उलट बेटी पैदा होने पर बहुत से घरों में मातम का माहौल होता है. ज्यादा बेटी पैदा करने वाली औरत की भारतीय समाज में कोई इज्जत नहीं है. पहले ऐसी औरत का मर्द बेटे की चाह में दूसरी औरत ब्याह लाता था. नतीजतन, ऐसी औरतें बेटा पाने के चक्कर में बाबाओं का शिकार होती थीं.
बेटा और बेटी के इसी फर्क के चलते भारत के कई इलाकों में बेटियों को अफीम चटा कर मार देने का घिनौना रिवाज कायम था. यही वजह है कि कई राज्यों में लड़का और लड़की के लिंगानुपात में भारी गड़बड़ी पैदा हो गई. हरियाणा इस बात का बड़ा उदाहरण है.
हरियाणा में विकराल होती समस्या
हरियाणा में लिंगानुपात लंबे समय तक गड़बड़ रहा है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, हरियाणा में प्रति 1000 पुरुषों पर 879 महिलाएं थीं, जो राष्ट्रीय औसत (943) से कम है. कन्या भ्रूण हत्या के चलते लड़कियों की तादाद कम होती गई, जिस से पूरा सामाजिक सिस्टम गड़बड़ा गया.
लड़कियां कम हुईं, तो इस का खमियाजा लड़कों को भुगतना पड़ रहा है. हरियाणा में यह समस्या लंबे समय से बनी हुई है. वहां के तकरीबन हर गांव में ऐसे ढेरों नौजवान कुंआरे बैठे हैं, जिन की उम्र 40 पार कर चुकी है. इस के पीछे वजह यह है कि लड़कियों की तादाद कम है. वैसे भी अब लड़कियों के परिवार वाले अपनी बेटियों की शादी गांव में नहीं करना चाहते हैं.
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