हमारे समाज में फैले ज्यादातर अंधविश्वासों की जड़ में फुजूल के डर हैं और वे सारे डर ढोंगीपाखंडियों की देन हैं. दरअसल, जन्म से ही बारबार ऐसी घुट्टी पिलाई जाती है कि लोग आंखें मूंद कर ऊलजुलूल बातों पर भरोसा करने लगते हैं.

ज्यादातर लोगों में तालीम, सूझबूझ व नए नजरिए की कमी है, इसलिए 21वीं सदी में भी बहुत से लोगों की सोच बहुत पीछे व नीचे है. नतीजतन, वे रोजमर्रा के मसलों को खुद नहीं सुलझा पाते. कर्ज, गरीबी, बीमारी व बेकारी को भी वे अपने पापों का फल या बदकिस्मती का नतीजा मान कर बाबाओं व तांत्रिकों की शरण में जाते रहते हैं.

शातिर लोग आम जनता की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं. भाग्य, भगवान, पाप, अपशकुन, ग्रह चाल, दिशाशूल, शनि की साढ़ेसाती, राहूकेतु मारकेश, मूल, पंचक, भद्रकाल सर्पयोग, पितृदोष और वास्तुदोष में ऊलजुलूल खराबी बताते हैं, इसलिए कई तरह के डर लोगों के मन में जानबूझ कर डाले जाते हैं ताकि उन्हें मनमाने तरीके से भुनाया जा सके.

कई पुश्तों से इसी घंधे में लगे एक शख्स ने बताया कि असल बात तो यह है कि बगैर डर के तो कभी कोई अपनी जेब से कुछ निकालता ही नहीं इसलिए बच्चों का पेट पालने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ तो करना ही पड़ता है.

इसी गरज से धर्म का प्रचार करने वालों ने सदियों से लोगों को झांसा देने, डराने व उस डर को भुनाने की तमाम साजिशें रची हैं. कथाओं, प्रवचनों, किताबों व तसवीरों के जरीए तमाम तरह के झूठे किस्सेकहानियां फैलाई गईं. जीने से मरने तक में कर्मकांड कराने को बेहद जरूरी बताया गया. ग्रह शांति के उपाय, दानपुण्य, तीर्थ, पूजापाठ, गंडेतावीज, यंत्र, तंत्र और मंत्र बनाए गए.

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