प्यार दो दिलों का मेल है. जब किसी को किसी से प्यार होता है तो वह उस की जातिधर्म से परे होता है. लेकिन जब प्यार को परवान चढ़ाने की बात आती है तो जातिधर्म की दीवार आड़े आ जाती है. ऐसे में कई प्रेमी युगलों को अपने प्यार को दफन करना पड़ता है. क्या इस नफरत की दीवार को तोड़ा नहीं जा सकता?

हमारे देश में जाति और धर्म इस कदर हावी है कि वे दिलों के रिश्तों को समझ ही नहीं पाते. जब कभी किसी अन्य धर्मावलंबी लड़के या लड़की से प्यार की बात सामने आती है तो दोनों ही पक्ष के लोग इसे सिरे से नकार देते हैं.

कट्टरपंथी लोग, चाहे वे किसी भी जातिधर्म के क्यों न हों, अपने धर्म से इतर रिश्ते को कुबूल नहीं करते. उन की सोच को बदलना नामुमकिन है. यदि उन की जातिधर्म का लड़का या लड़की दूसरी जातिधर्म की लड़की या लड़के से शादी कर भी ले तो वे उस के साथ कोई रिश्ता नहीं रखते. वे उसे अपनी धनसंपत्ति से बेदखल या वंचित कर देते हैं. कुछ तो ऐसे जोड़े को अपने जाति और समाज से अलग कर देते हैं.

यदि लड़का और लड़की वयस्क हैं, अपनी मरजी से अन्य जातिधर्म की लड़की से शादी करना चाहते हैं तो लड़की के परिजन लड़के के विरुद्ध अपहरण या बहलाफुसला कर भगा कर ले जाने की एफआईआर दर्ज कराते हैं. यही नहीं, प्रेमी पर बलात्कार या यौनशोषण का मामला भी दर्ज करने से नहीं हिचकते. ऐसे में लड़की लाख दुहाई दे, परिजनों के हाथपैर जोड़े पर वे अपना निर्णय नहीं बदलते.

हमारे एक परिचित हैं. उन की लड़की को दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम हो गया. दोनों ने अपने परिजनों को मनाने की कोशिश की. क्योंकि दोनों ही चाहते थे कि उन के परिजन इस खुशी में शामिल हो कर उन्हें अपना प्यार दें. लेकिन दोनों के ही परिजनों ने इस रिश्ते के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की. मजबूर हो कर उन्हें कोर्ट मैरिज करनी पड़ी.

विडंबना देखिए कि न तो वह किसी की बहू के रूप में स्वीकार की गई और न ही बेटी बनी रह सकी, क्योंकि मातापिता ने उस से अपना रिश्ता तोड़ लिया. दोनों ने शादी तो की लेकिन शादी की खुशियां न मिलीं.

हमारे एक मित्र हैं. उन का बेटा डाक्टर है. उसे अपने साथ पढ़ने वाली दूसरे धर्म की लड़की से प्यार हो गया. लड़की वालों ने भले ही रिश्ते के लिए हां कर दी हो लेकिन लड़के वाले अपनी जिद पर अड़ गए कि हम तो अपने धर्म में ही शादी करेंगे. परिणामस्वरूप प्रेमी युगल का संजोया सपना टूट गया.

अमेरिकी थिंकटैंक प्यू रिसर्च सैंटर के अनुसार, भारत में ज्यादातर लोग दूसरे धर्मों में शादी करने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. इन में 80 प्रतिशत मुसलिम और 67 प्रतिशत हिंदू हैं. सैंटर ने देश के 26 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों के 30 हजार लोगों पर सर्वे किया है. सर्वे का शीर्षक ‘भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव’ था, जिस में देश में 17 भाषाएं बोलने वाले लोगों को शामिल किया गया. इस में 67 प्रतिशत हिंदुओं का कहना था कि यह जरूरी है कि हिंदू महिलाओं को दूसरे धार्मिक समुदायों में शादी करने से रोका जाए. वहीं 65 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा कि ‘हिंदू पुरुषों को भी दूसरे धर्म में शादी नहीं करनी चाहिए.’

उन लोगों की भी कमी नहीं है जो कि अपने ही धर्म में जाति के हिसाब से रिश्ते को मंजूर करते हैं. रिश्ता समान बिरादरी का होना जरूरी है. अपनी बिरादरी से नीचे बिरादरी वाले लड़के को बेटी ब्याहना वे अपनी तौहीन समझते हैं. इसी प्रकार, ऊंची जाति या कुल के लोग अपने से नीची जाति या कुल की लड़की को अपनी बहू बनाना नहीं चाहते. यहां जाति की ऊंचनीच प्यार में बाधक बन जाती है.

ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ हिंदू या मुसलिमों में ही कट्टरपंथी लोग हैं. अन्य धर्म जैसे सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध धर्म में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है. विडंबना देखिए कि उन्हें विदेशी दामाद या विदेशी बहू तो मंजूर है लेकिन अपने ही देश की अन्य जातिधर्म में रिश्ता मंजूर नहीं. जब वे विदेशी लड़केलड़की को अपना सकते हैं तो स्वदेशी खून को अपनाने में क्या बुराई है?

ऐसा एक नहीं, सैंकड़ों उदाहरण हैं जिन में जाति, धर्म की दीवार के कारण युवाओं को अपने प्यार का गला घोंटना पड़ा. इतिहास इस बात का साक्षी है. समय के साथ बहुतकुछ बदल गया है. आज कंप्यूटर, इंटरनैट का युग है. नहीं बदली तो जातिधर्म को ले कर लोगों की सोच.

लोगों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि न तो कोई धर्म ऊंचा है और न ही कोई नीचा. इसी प्रकार, ऊंचीनीची जाति का भेद हम ने ही बनाया है. इंसान चाहे वह किसी भी जातिधर्म या कुल में पैदा हुआ हो, न किसी से श्रेष्ठ है और न कमतर. हमें अपनी सोच बदलनी चाहिए.

प्यार और शादी एक पवित्र बंधन है. रिश्ते की मिठास तभी है जब हम दूसरी जातिधर्म के रिश्ते को कुबूल करें. अपनी संतानों की खुशी में ही मांबाप को खुशी होनी चाहिए, न कि अपने अडि़यल रवैए की वजह से उन के प्यार और दांपत्य में जहर घोलना चाहिए.

हमें जाति और धर्म के बीच सहिष्णुता बरतनी होगी. जातिधर्म को ले कर नफरत त्यागनी होगी. शादी के बाद यदि लड़की ससुराल के धर्म के साथ अपने धर्म का भी पालन करे तो इस में क्या बुराई है? जब वह ऐसा कर सकती है तो लड़का क्यों नहीं?  उसे भी लड़की की जातिधर्म के प्रति आदरसम्मान प्रकट करना चाहिए.

कोई भी धर्म नफरत फैलाने की बात नहीं करता. हर धर्म में शांति, सौहार्द की बात कही गई है तो फिर जातिधर्म को ले कर नफरत क्यों? आप चाहे जिस जातिधर्म या कुल के हों, आप पहले इंसान और भारतीय हैं. यही आप की पहचान है.

यदि आप पर लव जिहाद कानून लागू होता है तो बिना कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन किया विवाह गैरकानूनी माना जाएगा. जैसे उत्तर प्रदेश धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020 का पालन होना चाहिए. गैरकानूनी तरीके से किए गए धर्म परिवर्तन के बाद की गई शादी को मान्यता नहीं दी जा सकती. अध्यादेश, जो कि अब अधिनियम बन चुका है, की धारा 8 और 9 का अनुपालन करना जरूरी है.

कानून की धारा 8 में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे कम से कम 60 दिनों पहले संबंधित जिले के जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र देना होगा. धर्म को बलपूर्वक, जबरदस्ती, किसी प्रभाव या प्रलोभन से बदला नहीं जा सकता.

कानून की धारा 9 में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को संबंधित जिलाधिकारी को धर्म परिवर्तन करने की तिथि के 60 दिनों के भीतर एक निर्धारित फार्म में घोषणापत्र भरना होगा. तभी यह कानूनी माना जाएगा. वैसे, 10 राज्यों में इस तरह के कानून लागू हैं.

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