किसी को भी सम्मान, ईनाम और अवार्ड मिलता है तो कुछ लोगों को यही लगता है कि गलत व्यक्ति को अवार्ड दिया गया है. खास कर जब सरकार की ओर से मान, सम्मान या अवार्ड दिया जाता है, तब हमेशा इस तरह की बातें होती हैं. देश में सर्वोच्च अवार्ड दिए जाने का इतिहास हमेशा विवादास्पद रहा है.

ऐसे में 9 नवंबर, 2021 को राष्ट्रपति के हाथों पद्म, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण अवार्ड दिए गए. उन में से कुछ ऐसे व्यक्ति भी अवार्ड लेने वाले थे, जिन्हें देख कर चौंके बिना नहीं रहा गया.

9 नवंबर को राष्ट्रपति भवन में आयोजित अवार्ड वितरण समारोह में जब तुलसी गौड़ा का नाम अवार्ड लेने के लिए पुकारा गया तो जो महिला अवार्ड लेने के लिए आई, उसे देख कर सभी की नजरें उसी पर टिकी रह गईं. उन की सादगी ने सब का मन मोह लिया.

अवार्ड लेने आने वाली वृद्ध महिला नंगे पैर आई थीं. उन के शरीर पर मात्र एक धोती (साड़ी) जैसा कपड़ा लिपटा था. गले में आदिवासी जीवनशैली की कुछ मालाएं थीं. 72 साल से अधिक उम्र वाली उस महिला को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के चौथे सब से बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री अवार्ड दे कर सम्मानित किया तो राष्ट्रपति भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

कर्नाटक के हलक्की जनजाति से आने वाली तुलसी गौड़ा ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा. क्योंकि वह बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुई थीं. फिर भी पर्यावरण में उन के योगदान और पेड़पौधों सहित जड़ीबूटियों की तमाम प्रजातियों के बारे में उन के अथाह ज्ञान के कारण आज उन की पहचान ‘इनसाइक्लोपीडिया औफ फारेस्ट’ के रूप में होती है.

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वह आज भी तमाम नर्सरियों की देखभाल करती हैं. इस से पहले भी उन्हें और कई अवार्डों से सम्मानित किया जा चुका है. इस से पहले उन्हें ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवार्ड’, ‘राज्योत्सव अवार्ड’, ‘कविता मेमोरियल’ जैसे अवार्ड मिल चुके हैं. तुलसी गौड़ा को पद्मश्री अवार्ड मिलने पर बहुत लोगों ने दिल खोल कर उन की प्रशंसा की है.

कर्नाटक के फारेस्ट डिपार्टमेंट में 10 साल की उम्र से ही मां के साथ जंगल में काम करने के लिए जाने वाली तुलसी ने अब तक जंगल में 30 हजार से भी अधिक पेड़ लगाए होंगे. वन विभाग में दैनिक मजदूरी पर काम शुरू करने वाली तुलसी को इसी विभाग में परमानेंट नौकरी मिल गई थी.

अपना फर्ज अदा करते हुए उन्होंने अपनी समझ से इतनी जानकारी प्राप्त कर ली है कि जंगल में उगने वाले लगभग 3 सौ पौधे इंसान के लिए दवा के काम आते हैं.

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देखा जाए तो वह 10 साल की उम्र से पर्यावरण संरक्षण का काम कर रही हैं. एक तरह से उन्होंने अपना पूरा जीवन ही प्रकृति की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है.

तुलसी जिस जनजाति से आती हैं, वह हलक्की जनजाति औषधीय वनस्पति के ज्ञान के लिए जानी जाती है. तुलसी ने जंगल में रह कर अपने इस परंपरागत ज्ञान को बढ़ा कर असंख्य लोगों की आदिव्याधि का वनस्पति के उपयोग से निवारण किया है.

कौन सा वृक्ष किस समय बीज देता है, उस बीज को कब (रोपा) बोया जाए तो वह उगेगा, इस बात की एकदम सही जानकारी तुलसी गौड़ा को है.

जंगल में मदर ट्री को खोजना बहुत ही मुश्किल काम है. क्योंकि इस मदर ट्री का बीज सब से ज्यादा असरदार होता है. तुलसी जंगल के लाखों वृक्षों में से मदर ट्री को खोज सकती हैं. उन की इस तरह की असंख्य जानकारियों की ही वजह से कर्नाटक के जंगल समृद्ध हुए हैं.

तुलसी के इन्हीं कामों की वजह से कर्नाटक राज्य सरकार ने भी उन्हें समयसमय पर सम्मानित किया है.

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