कोई पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत नए मर्द में क्या देखती है? यही न कि वह उसे कितनी इज्जत दे सकता है या नहीं. वह देखती है कि सामने वाला मर्द अपने पैरों पर खड़ा हो. वह चाहती है कि उस का होने वाला शौहर पढ़ालिखा हो, इज्जतदार घराने से हो, क्योंकि कोई इज्जतदार शौहर ही अपनी बीवी को इज्जत दे सकता है और दूसरे लोगों से उसे इज्जत दिला भी सकता है.
कोई भी औरत मर्द के प्यार से ज्यादा इज्जत पाने की उम्मीद रखती है, क्योंकि मर्द के दिल में अगर औरत के प्रति इज्जत होगी, तो प्यार तो खुद से पैदा हो जाएगा. पर अगर किसी भी मर्द के मन में औरत के प्रति इज्जत नहीं होगी तो वह प्यार तो क्या पाएगी, बल्कि सिर्फ हवस का शिकार हो कर रह जाएगी.
ऐसे मर्द औरत को कमतर समझते हैं और उसे भोगने का साधन मानते हैं या उसे औलाद पैदा करने की मशीन समझ कर हर मोड़ पर उस की बेइज्जती करते हैं. वे उसे घर की 'बाई' की तरह इस्तेमाल करते हैं.
पढ़ीलिखी तलाकशुदा मुसलिम औरत कभी भी किसी मर्द की दूसरी बीवी न बने, क्योंकि मुसलिम समुदाय में यह रिवाज है कि मर्द 4 बीवी तक रख सकते हैं, इसलिए किसी की पहली बीवी हो तो उस की दूसरी या तीसरी बीवी कतई न बनें.
तलाकशुदा मुसलिम औरत को दूसरी शादी करने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. उसे जल्दबाजी में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए, बल्कि सब्र के साथ सही और ऐसा मर्द देखना चाहिए, जो उस की जिम्मेदारी अच्छी तरह से उठा सके.
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