Family Story In Hindi: 55 साल के बजरंगी सिंह ने जब विधवा दुर्गा देवी को अपने घर के कामकाज के लिए रखा तो उन की नीयत में खोट था. दुर्गा देवी ने वह काम छोड़ दिया. गांव वालों के कहने पर वह मुखिया का चुनाव लड़ बैठी. उस के सामने थी बजरंगी सिंह की बहू और बड़का घराना की शान. क्या दुर्गा देवी लोहा ले पाई?
गांव में धीरेधीरे भोर का उजाला फैल रहा था. पूरब की ओर खेतों के किनारे खड़े पेड़ों की कतार पर लालिमा ऐसे बिखर रही थी, जैसे किसी ने कूची से रंग भर दिया हो.
यह गांव बेलाडीह कहलाता था. वही गांव जहां एकएक घर की कहानी कई पीढि़यों तक फैली रहती थी. यहीं, इसी गांव के बीचोंबीच एक बड़ा सा पक्का मकान था, लोग उसे ‘बड़का घराना’ कहते थे. मालिक थे बजरंगी सिंह.
एक समय ऐसा था जब बजरंगी सिंह की हुकूमत पूरे इलाके में चलती थी. उन के बापदादा जमींदार थे. गांव के आधे खेतों पर उन्हीं का कब्जा था.
बजरंगी सिंह की उम्र होगी तकरीबन 55 साल. शरीर गठीला, मूंछ तनी हुई, चाल में अकड़. पर वक्त ने जैसे उन की रियासत का कद थोड़ाथोड़ा काटना शुरू कर दिया था. नए कानून, नई पीढ़ी और बदलते हालात ने ‘बड़का घराना’ के रसूख को हिला दिया था.
उसी गांव में रहती थी दुर्गा देवी.
40 के आसपास की औरत. रंग सांवला, कद औसत, आंखों में अजीब सी हिम्मत. पति की मौत के बाद वह अपने 4 बच्चों को ले कर अकेली रह रही थी. तो सब से बड़ी बेटी 10वीं जमात में पढ़ती थी, तो सब से छोटा बेटा अभी 3 साल का था. घर में दो वक्त की रोटी का भी भरोसा नहीं था.
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