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सुनंदा ने अतीत को भुला दिया और विनय को अपनाने में ही भलाई समझी. विनय उस के रूपरंग का इस कदर दीवाना हो गया कि न तो उसे बच्चों की सुध रही न ही रिश्तदारों की. सब से कन्नी काट ली. और तो और सुनंदा के रूपसौंदर्य को ले कर इस कदर शंकित हो गया कि उसे छोड़ कर औफिस जाने में भी गुरेज करता. मैं अब उस के घर कम ही जाता. मुझे लगता विनय को मेरी मौजूदगी मुनासिब नहीं लगती. वह हर वक्त सुनंदा के पीछे साए की तरह रहता. उस के रंगरूप को निहारता. सुनंदा अपने पति की इस कमजोरी को भांप  गई. फिर क्या था अपने फैसले उस पर थोपने लगी. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से सब से ज्यादा परेशान अमन और मोनिका थे. वे दोनों एकदम से अलगथलग पड़ गए. विनय कहीं से आता तो सीधे सुनंदा के कमरे में जा कर उसे आलिंगनबद्ध कर लेता. बच्चों का हालचाल लेना महज औपचारिकता होती.

सुनंदा के रिश्ते में शादी थी. विनय व सुनंदा अपनी बेटी के साथ वहां जा रहे थे. अमन भी जाना चाहता था. उस ने दबी जबान से जाने की इच्छा जाहिर की तो विनय ने उसे डांट दिया, ‘‘जा कर पढ़ाई करो. कहीं जाने की जरूरत नहीं.’’ अमन उलटे पांव अपने कमरे में आ कर अपनी मां की तसवीर के सामने सुबकने लगा. तभी राधिका आ गई. उस को समझाबुझा कर शांत किया. विनय वही करता जो सुनंदा कहती. विनय का सारा ध्यान सुनंदा की बेटी शुभी पर रहता. बहाना यह था कि वह बिन बाप की बेटी है. विनय सुनंदा के रंगरूप पर इस कदर फिदा था कि उसे अपने खून से उपजे बच्चों का भी खयाल नहीं था. अमन किधर जा रहा है, क्या कर रहा है, उस की कोई सुध नहीं लेता. बस बच्चों के स्कूल की फीस भर देता, उन की जरूरत का सामान ला देता. इस से ज्यादा कुछ नहीं. अमन समझदार था. पढ़ाईलिखाई में अपना वक्त लगाता. थोड़ाबहुत भावनात्मक सहारा उसे अपनी बूआ राधिका से मिल जाता, जो विनय की उपेक्षा से उपजी कमी को पूरा कर देता.

अब विनय अपने पुश्तैनी मकान को छोड़ कर शारदा के मकान में रहने लगा. यह वही मकान था जिसे शारदा की मां अपने मरने के बाद अपने नाती अमन के नाम कर गई थीं. पुश्तैनी मकान में संयुक्त परिवार था, जहां उस की निजता भंग होती. भाईभतीजे उस के व्यवहार में आए परिवर्तन का मजाक उड़ाते. अब जब वह अकेले रहने लगा तो सुनंदा के प्रति कुछ ज्यादा ही स्वच्छंद हो गया. राधिका कभीकभार बच्चों का हालचाल लेने आ जाती. मुझे अमन से विनय का हालचाल मिलता रहता. विनय के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से मैं भी आहत था. सोचता उसे राह दिखाऊं मगर डर लगता कहीं अपमानित न होना पड़े. अमन से पता चला कि सुनंदा मां बनने वाली है तो विश्वास नहीं हुआ. 2 बच्चे पहली पत्नी से तो वहीं सुनंदा से एक 8 वर्षीय बेटी. और पैदा करने की क्या जरूरत थी? अमन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चला गया. मोनिका बी.ए. में थी. वह खुद 45 की लपेट में था. ऐसे में बाप बनने की क्या तुक? यहीं से मेरा मन उस से तिक्त हो गया. मुझे दोनों घोर स्वार्थी लगे. मैं ने राधिका से पूछा. पहले तो उस ने आनाकानी की, बाद में हकीकत बयां कर दी. कहने लगी कि इस में मैं क्या कर सकती हूं. यह उन दोनों का निजी मामला है. उस ने पल्लू झाड़ लिया, जो अच्छा न लगा. कम से कम विनय को समझा तो सकती थी. दूसरी शादी करते वक्त मैं ने उसे आगाह किया था कि यह शादी तुम दोनों सिर्फ एकदूसरे का सहारा बनने के लिए कर रहे हो. तुम्हें अकेलेपन का साथी चाहिए, वहीं सुनंदा को एक पुरुष की सुरक्षा. जहां तुम्हारे बच्चों की देखभाल करने के लिए एक मां मिल जाएगी, वहीं सुनंदा की बेटी को एक बाप का साया. विनय मुझ से सहमत था. मगर अचानक दोनों में क्या सहमति बनी कि सुनंदा ने मां बनने की सोची?

सुनंदा ने एक लड़के को जन्म दिया. वह बहुत खुश थी. विनय की खुशी भी देखने लायक थी मानों पहली बार पिता बन रहा हो. राधिका को सोने की अंगूठी दी. वह बेहद खुश थी. कुछ दिनों के बाद एक होटल में पार्टी रखी गई. मैं भी आमंत्रित था. रिश्तेदार पीठ पीछे विनय की खिल्ली उड़ा रहे थे मगर वह इस सब से बेखबर था. सुनंदा से चिपक कर बैठा अपने नवजात शिशु को खेला रहा था. अमन और मोनिका उदास थे. उदासी का कारण था उन की तरफ से विनय की बेरुखी. रुपयापैसा दे कर बच्चों को बहलाया जा सकता है, मगर उन का दिल नहीं जीता जा सकता. अमन और मोनिका को सिर्फ मांबाप का प्यार चाहिए था. मां नहीं रहीं, मगर पिता तो अपने बच्चों को भावनात्मक संबल दे सकता था. मगर इस के उलट पिता अपनी नई पत्नी के साथ रासरंग में डूबा था. जबकि दूसरी शादी करने के पहले उस ने अमन व मोनिका को विश्वास में लिया था. अब उन्हीं के साथ धोखा कर रहा था. पूछने पर कहता कि मैं ने दोनों की परवरिश में कया कोई कमी रख छोड़ी है? उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाया और अब क्व10 लाख दे कर अमन को इंजीनियरिंग करवा रहा हूं.

अब विनय से कौन तर्क करे. जिस का जितना बौद्धिक स्तर होगा वह उतना ही सोचेगा. राधिका भी दोनों बच्चों की तरफ से स्वार्थी हो गई थी. परित्यक्त राधिका को विनय से हर संभव मदद मिलती रहती सो वह अमन और मोनिका में ही ऐब ढूंढ़ती.मेरे जेहन में एक बात रहरह कर शूल की तरह चुभती कि आखिर सुनंदा ने एक बेटे की मां बनने की क्यों सोची? अमन मौका देख कर मेरे पास आया और व्यथित मन से बोला, ‘‘क्या आप को यह सब देख कर अच्छा लग रहा है? यह मेरे साथ मजाक न हीं कि इस उम्र में मेरे पिता बाप बने हैं.’’ गुस्सा तो मुझे भी आ रहा था. मैं ने उस के मुंह पर विनय पर कोई टीकाटिप्पणी करने से बचने की कोशिश की पर ऐसे समय मुझे शारदा की याद आ रही थी. वह बेचारी अगर यह सब देख रही होती तो क्या बीतती उस पर. किस तरह से उस के बच्चों को बड़ी बेरहमी के साथ उस का ही बाप हाशिये पर धकेल रहा था. कैसे पुरुष के लिए प्यारमुहब्बत महज एक दिखावा होता है. शारदा से उस ने प्रेम विवाह किया था. कैसे इतनी जल्दी उसे भुला कर सुनंदा का हो गया. तभी 2 बुजुर्ग दंपती मेरे पास आ कर खड़े हो गए. उन की बातचीत से जाहिर हो रहा था कि सुनंदा के मांबाप हैं. बहुत खुश सुनंदा की मां अपने पति से बोली, ‘‘अब सुनंदा का परिवार संपूर्ण हो गया. 1 लड़का 1 लड़की.’’

तो इसका मतलब विनय के परिवार से अमन और मोनिका हटा दिए गए, मेरे मन में यह विचार आया. घर आ कर मैं ने गहराई से चिंतनमनन किया तो पाया कि सुनंदा द्वारा एक बेटे की मां बनना विनय के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने का जरीया था. ऐसे तो विनय की 2 संतानें और सुनंदा की 1. लेकिन आज तो विनय उस के रूपजाल में फंसा हुआ है, कल जब उस का अक्स उतर जाएगा तब वह क्या करेगी? हो सकता है वह अपने दोनों बच्चों की तरफ लौट जाए तब तो वह अकेली रह जाएगी. यही सब सोच कर सुनंदा ने एक पुत्र की मां बनने की सोची ताकि पुत्र के चलते विनय खून के रिश्ते से बंध जाए. साथ ही पुत्र के बहाने धनसंपत्ति में हिस्सा भी मिलेगा वरना अमन और मोनिका ही सब ले जाएंगे, उस के हिस्से में कुछ नहीं आएगा. औसत बुद्धि का विनय सुनंदा की चाल में आसानी से फंस गया यह सोच कर मुझे उस की अक्ल पर तरस आया.

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