विनय का फोन आया. सहसा विश्वास नहीं हुआ. अरसा बीत गया था मुझे विनय से नाता तोड़े हुए. तोड़ने का कारण था विनय की आंखों पर पड़ी अहंकार की पट्टी. अहं ने उस के विवेक को नष्ट कर दिया था. तभी तो मेरा मन उस से जो एक बार तिक्त हुआ तो आज तक कायम रहा. न उस ने कभी मेरा हाल पूछा न ही मैं ने उस का पूछना चाहा. दोस्ती का मतलब यह नहीं कि उस के हर फैसले पर मैं अपनी सहमति की मुहर लगाता जाऊं. अगर मुझे कहीं कुछ गलत लगा तो उस का विरोध करने से नहीं चूका. भले ही किसी को बुरा लगे. परंतु विनय को इस कदर भी मुखर नहीं हो जाना चाहिए था कि मुझे अपने घर से चले जाने को कह दे. सचमुच उस रोज उस ने अपने घर से बड़े ही खराब ढंग से चले जाने के लिए मुझ से कहा. वर्षों की दोस्ती के बीच एक औरत आ कर उस पर इस कदर हावी हो गई कि मैं तुच्छ हो गया. मेरा मन व्यथित हो गया. उस रोज तय किया कि अब कभी विनय के पास नहीं आऊंगा. आज तक अपने निर्णय पर कायम रहा.
विनय और मैं एक ही महल्ले के थे. साथसाथ पढ़े, सुखदुख के साथी बने. विनय का पहला विवाह प्रेम विवाह था. उस की पत्नी शारदा को उस की मौसी ने गोद लिया था. देखने में वह सुंदर और सुशील थी. मौसी का खुद का बड़ा मकान था, जिस की वह अकेली वारिस थी. इस के अलावा मौसी के पास अच्छाखासा बैंक बैलेंस भी था जो उन्होंने शारदा के नाम कर रखा था. विनय के मांबाप को भी वह अच्छी लगी. भली लगने का एक बहुत बड़ा कारण था उस की लाखों की संपत्ति, जो अंतत: विनय को मिलने वाली थी. दोनों की शादी हो गई. शारदा बड़ी नेकखयाल की थी. हम दोनों की दोस्ती के बीच कभी वह बाधक नहीं बनी. मैं जब भी उस के घर जाता मेरी आवभगत में कोई कसर न छोड़ती. एक तरह से वह मुझ से अपने भाई समान व्यवहार करती. मैं ने भी उसे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया और न ही मर्यादा की लक्ष्मणरेखा पार की.
इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी. विनय की सरकारी नौकरी ऐसी जगह थी जहां ऊपरी आमदनी की सीमा न थी. उस ने खूब रुपए कमाए. पर कहते हैं न कि बेईमानी की कमाई कभी नहीं फलती. जब उस का बड़ा लड़का अमन 10 साल का था तो उस समय शारदा को एक लाइलाज बीमारी ने घेर लिया. उस के भीतर का सारा खून सूख गया. विनय ने उस का कई साल इलाज करवाया. लाखों रुपए पानी की तरह बहाए. एक बार तो वह ठीक हो कर घर भी आ गई, मगर कुछ महीनों के बाद फिर बीमार पड़ गई. इस बार वह बचाई न जा सकी. मुझे उस के जाने का बेहद दुख था. उस से भी ज्यादा दुख उस के 2 बच्चों का असमय मां से वंचित हो जाने का था. पर कहते हैं न समय हर जख्म भर देता है. दोनों बच्चे संभल गए. विनय की एक तलाकशुदा बेऔलाद बहन राधिका ने उस के दोनों बच्चों को संभाल लिया. इस से विनय को काफी राहत मिली.
शारदा के गुजर जाने के बाद राधिका और दूसरे रिश्तेदार विनय पर दूसरी शादी का दबाव बनाने लगे. विनय तब 42 के करीब था. मैं ने भी उसे दूसरी शादी की राय दी. अभी उस के बच्चे छोटे थे. वह अपनी नौकरी देखे कि बच्चों की परवरिश करे. घर का अकेलापल अलग काट खाने को दौड़ता. विनय में थोड़ी हिचक थी कि पता नहीं सौतली मां उस के बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे? मेरे समझाने पर उस की आंखों में गम के आंसू आ गए. निश्चय ही शारदा के लिए थे. भरे गले से बोला, ‘‘क्यों बीच रास्ते में छोड़ कर चली गई? मैं क्या मां की जगह ले सकता हूं? मेरे बच्चे मां के लिए रात में रोते हैं. रात में मैं उन्हें अपने पास ही सुलाता हूं. भरसक कोशिश करता हूं उस की कमी पूरी करूं. औफिस जाता हूं तो सोचता हूं कि जल्द घर पहुंच कर उन्हें कंपनी दूं. वे मां की कमी महसूस न करें.’’ सुन कर मैं भी गमगीन हो गया. क्षणांश भावुकता से उबरने के बाद मैं बोला, ‘‘जो हो गया सो हो गया. अब आगे की सोच.’’
‘‘क्या सोचूं? मेरा तो दिमाग ही काम नहीं करता. अमन 17 साल का है तो मोनिका 14 साल की. वे कब बड़े होंगे कब उन के जेहन से मां का अक्स उतरेगा, सोचसोच कर मेरा दिल भर आता है.’’ ‘‘देखो, मां की कसक तो हमें भी रहेगी. हां, दूसरी पत्नी आएगी तो हो सकता है इन्हें कुछ राहत मिले.’’ ‘‘हो सकता है लेकिन गारंटेड तो नहीं. कहीं मेरा विवाह का फैसला गलत साबित हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा. बच्चों की नजरों में अपराधी बनूंगा वह अलग.’’
विनय की शंका निराधार नहीं थी. पर शंका के आधार पर आगे बढ़ने के लिए अपने कदम रोकना भी तो उचित नहीं. भविष्य में क्या होगा क्या नहीं, कौन जानता है? हो सकता है कि विनय ही बदल जाए? बहरहाल, कुछ रिश्ते आए तो राधिका ने इनकार कर दिया. कहने लगी कि सुंदर लड़की चाहिए. बड़ी बहन होने के नाते विनय ने शादी की जिम्मेदारी उसी को सौंप दी थी. लेकिन इस बात को जिस ने भी सुना उसे बुरा लगा. अब इस उम्र में भी सुंदर लड़की चाहिए. विनय के जेहन से धीरेधीरे शारदा की तसवीर उतरने लगी थी. अब उस के तसव्वुर में एक सुंदर महिला की तसवीर थी. ऐसा होने के पीछे राधिका व कुछ और शुभचिंतकों का शादी का वह प्रस्ताव था जिस में उसे यह आश्वासन दिया गया था कि उन की जानकारी में एक विधवा गोरीचिट्टी, खूबसूरत व 1 बच्ची की मां है. अगर वह तैयार हो तो शादी की बात छेड़ी जाए. भला विनय को क्या ऐतराज हो सकता था? अमूमन पुरुष का विवेक यहीं दफन हो जाता है. फिर विनय तो एक साधारण सा प्राणी था. उस विधवा स्त्री का नाम सुनंदा था. सुनने में आया कि उस का पति किसी निजी संस्थान में सेल्स अधिकारी था और दुर्घटना में मारा गया था.
राधिका को इस रिश्ते में कोई खामी नजर नहीं आई. वजह सुनंदा का खूबसूरत होना था. रही 8 वर्षीय बच्ची की मां होने की बात, तो थोड़ी हिचक के साथ विनय ने इसे भी स्वीकार कर लिया. सुनंदा वास्तव में खूबसूरत थी. मगर पता नहीं क्यों मैं इस रिश्ते से खुश नहीं था. मेरा मानना था कि विनय को एक घर संभालने वाली साधारण महिला से शादी करनी चाहिए थी. मजबूरी न होती तो शायद ही सुनंदा इस रिश्ते के लिए तैयार होती क्योंकि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था. जुगाड़ से क्लर्की की नौकरी पाने वाला विनय कहीं से भी सुनंदा के लायक नहीं था. मुझे सुनंदा पर तरस भी आया कि काश उस का पति असमय न चल बसा होता तो उस का एक ऐश्वर्यपूर्ण जीवन होता. विनय मेरा दोस्त था. पर जब मैं मानवता की दृष्टि से देखता था तो लगता था कि कुदरत ने सुनंदा के साथ बहुत नाइंसाफी की. उस की बेटी भी निहायत स्मार्ट व सुंदर थी, जबकि विनय की पहली पत्नी से पैदा दोनों संतानों में वह आकर्षण न था. अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना आसान नहीं होता सो सुनंदा के मांबाप ने सामाजिक सुरक्षा के लिए सुनंदा को विनय के साथ बांधना मुनासिब समझा.