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खुद को आईने में निहारते हुए परी को अपने दाहिने गाल पर एक दाना दिखा. वह परेशान हो गई. क्या करे? क्या डाक्टर के पास जाए? फिर उस ने जल्दीजल्दी फाउंडेशन और कंसीलर की मदद से उस दाने को छिपाया और होंठों पर लिपस्टिक का फाइनल टच दिया. सिर पर थोड़ा सा पल्लू कर, पायल और चूडि़यां खनकाती वह बाहर निकली.

परी की सास और ननद उसे प्रशंसा से देख रही थीं, वहीं जेठानियों की आंखों में उस ने ईर्ष्या का भाव देखा तो परी को लगा कि उस का शृंगार सार्थक हुआ.

पासपड़ोस की आंटी और दूर के रिश्ते की चाची, ताई सब शकुंतला को इतनी सुंदर बहू लाने के लिए बधाई दे रही थीं. शकुंतला अभिमान से मंदमंद मुसकरा रही थीं. वे बड़े सधे स्वर में बोलीं, ‘‘यह तो हमारे मनु की पसंद है. पर हां, शायद इतनी खूबसूरत बहू मैं भी नहीं ढूंढ़ पाती.’’

नारंगी शिफौन साड़ी पर नीले रंग का बौर्डर था और नीले रंग का ही खुला ब्लाउज, जो उस की पीठ की खूबसूरती को उभार रहा था. पीठ पर ही परी ने एक टैटू बनवा रखा था जो मछली और एक परी के चित्र का मिलाजुला स्वरूप था.

परी को अपने इस टैटू पर बहुत गुमान था. इसी टैटू के कारण कितने ही लड़कों का दिल उस ने अपनी मुट्ठी में कर रखा था. परी की पारदर्शी त्वचा, दूध जैसा रंग, गहरी कत्थई आंखें सबकुछ किसी को भी बांधने के लिए पर्याप्त था. मनीष से उस की मुलाकात बैंगलुरु के नौलेज पार्क में हुई थी. दोनों का औफिस उसी बिल्डिंग में था. कभीकभी दोनों की मुलाकात कौफीहाउस में भी हो जाती थी.

मनीष अपने मातापिता की इकलौती संतान था. शकुंतला और कवींद्र दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत अपनी संतान के पालनपोषण में लगा दी थी. बचपन से ही मनीष के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उसे हर चीज में अव्वल आना है. कोई भी दोयम दरजे की चीज या व्यक्ति उसे मान्य नहीं था. पढ़ाई में अव्वल, खेलकूद में शीर्ष स्थान.

12वीं के तुरंत बाद ही उस का दाखिला देश के सब से अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हो गया था. उस के तुरंत बाद मुंबई के सब से प्रतिष्ठित कालेज से उस ने मैनेजमैंट की डिग्री हासिल की और बैंगलुरु में 60 लाख की सालाना आय पर उस ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर के रूप में जौइन कर लिया था जहां पर उस की मुलाकात परी से हुई और परी हर मामले में उस की जिंदगी के सांचे में फिट बैठती थी.

परी के मातापिता के पास अपनी बेटी के सौंदर्य और पढ़ाई के अलावा कुछ और दहेज में देने के लिए नहीं था. शकुंतला और कवींद्र ने मनीष की शादी के लिए बहुत बड़े सपने संजोए थे पर परी की खूबसूरती, काबिलीयत और मनीष की इच्छा के कारण चुप लगा गए. सादे से विवाह समारोह के बाद शकुंतला और कविंद्र ने बहुत ही शानदार रिसैप्शन दे कर मन के सारे अरमान पूरे कर लिए थे.

शाम को मनीष के दोस्त के यहां खाने पर जाना था. परी थक गई थी. उस का कपड़े बदलने का मन नहीं था. जब वह उसी साड़ी में बाहर आई तो शकुंतला ने टोका, ‘‘परी तुम नईनवेली दुलहन हो. ऐसे बासी कपड़ों में कैसे जाओगी?’’

परी बुझे स्वर में बोली, ‘‘मम्मी, मुझे बहुत थकान हो रही है. यह साड़ी भी तो अच्छी है.’’

शकुंतला ने बिना कुछ कहे उसे मैरून रंग का कुरता और शरारा पकड़ा दिया. परी ने मदद के लिए मनीष की तरफ देखा तो वह भी मंदमंद मुसकान के साथ अपनी मां का समर्थन ही करता नजर आया.

फिर से उस ने पूरा शृंगार किया. आईने में उस ने देखा, अब वह दाना और स्पष्ट हो गया था. तभी पीछे से शकुंतला की आवाज सुन कर घबरा कर उस ने उस दाने के ऊपर फाउंडेशन लगा लिया और फाउंडेशन का धब्बा अलग से उभर कर चुगली कर रहा था.

बाहर ड्राइंगरूम की रोशनी में शकुंतला बोलीं, ‘‘परी फाउंडेशन तो ठीक से लगाया करो. यह क्या फूहड़ की तरह मेकअप किया है तुम ने?’’

परी घबरा गई. जैसे ही शकुंतला उस के करीब आईं तभी मनीष की कार का हौर्न सुनाई दिया. परी बाहर की तरफ भागी.

पीछे से शकुंतला की आवाज आई, ‘‘परी रास्ते में ठीक कर लेना.’’

कार में बैठते ही मनीष ने परी को अपने करीब खींच लिया और चुंबनों की बरसात कर दी. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘मन नहीं है मयंक के घर जाने का. कहीं उस की नीयत न बिगड़ जाए. जान, बला की खूबसूरत लग रही हो तुम.’’

मनीष की बात पर परी धीरे से मुसकरा दी. करीब 15 मिनट बाद कार एक नए आबादी क्षेत्र में बनी सोसाइटी के आगे रुक गई. मनीष ने घंटी बजाई और एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला. चेहरे पर मुसकान और मधुरता लिए हुए उन्हें देख कर ऐसा आभास हुआ परी को कि वह उन के साथ बैठ कर थोड़ा सुस्ता ले.

तभी अंदर से ‘‘हैलो… हैलो…’’ बोलता हुआ एक नौजवान आया. गहरी काली आंखें, तीखी नाक और खुल कर हंसने वाला. उस के व्यक्तित्व में सबकुछ खुलाखुला था. परी बिना परिचय के ही समझ गई थी कि यह मयंक है और वह महिला उस की मां है.’’

परी और मनीष 4 घंटे तक वहां बैठे रहे. परी को लगा ही नहीं कि वह यहां पहली बार आई है. जहां मनीष के घर उसे हर समय डर सा लगा रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. हर समय अपने रंगरूप को ले कर सजग रहना पड़ता था, वहीं यहां वह एकदम सहज थी.

तभी परी के मोबाइल की घंटी बजी. शकुंतलाजी दूसरी तरफ थीं, ‘‘परी तुम्हें कुछ होश है या नहीं, क्या समय हुआ है? मनीष का तो वह दोस्त है पर तुम्हें तो खयाल रखना चाहिए न…’’

जब वे लोग वहां से बिदा हो कर चले तब रात के 11 बज चुके थे. घर पहुंच कर परी जब चेहरा धो रही थी तब उस ने करीब से देखा, उस दाने के साथ एक और दाना बगल में उग चुका था. वह गहरी चिंता में डूब गई. वह मन ही मन सोच में डूब गई कि अब कैसे सामना करूंगी? उस ने तो मुझे पसंद ही मेरी खूबसूरत पारदर्शी त्वचा की वजह से किया है.

मनीष अधीरता से बाथरूम का दरवाजा पीट रहा था, ‘‘डौल, मेरी बार्बी डौल जल्दी आओ.’’

उस की कोमल व बेदाग साफ त्वचा के कारण ही तो वह उसे बार्बी डौल कहता था. फिर से उस ने फाउंडेशन लगाया और बाहर आ गई. मनीष ने उसे बांहों में उठाया और फिर दोनों प्यार में डूब गए.

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