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उषा की किरणों ने जैसे ही कमरे के अंदर प्रवेश किया, मनीष प्यार से अपनी बार्बी डौल के गाल थपथपाने लगा. पर यह क्या, मनीष एकदम बोल उठा, ‘‘परी, तुम्हारे गाल पर यह क्या हो रहा है?’’

परी घबरा कर उठ बैठी और बोली, ‘‘मनीष सौरी वह कल से पता नहीं क्यों ये दाने हो गए हैं.’’

दरअसल, वे दाने भयावह रूप से मुखर हो उठे थे और रहीसही कसर तनाव ने पूरी कर दी थी.

मनीष बिना किसी हिचकिचाहट के परी के करीब आया और बोला, ‘‘ये तो ठोड़ी पर भी हैं. आज डाक्टर को दिखा कर आना.’’

परी बहुत ज्यादा चिंतित हो उठी थी. उसे अपनी बेदाग त्वचा पर बहुत गुमान था. अब ये दाने…

रात में प्रेम क्रीड़ा के दौरान भी परी के मन में अनकहा तनाव ही व्याप्त रहा. सुबहसवेरे ही उठ कर वह नहा ली. हलकी गुलाबी रंग की साड़ी उस के रंग में मिलजुल गई थी. साथ में उस ने मोतियों की माला और जड़ाऊ झुमके पहने. फिर आईने के आगे खड़ा हो कर गहरे फाउंडेशन की परतों में अपने दानों को छिपा लिया. अब पूरी तरह से अपनेआप से संतुष्ट थी.

बाहर आ कर देखा तो शकुंतला गाउन में घूम रही थीं. अपनी बहू का खिला चेहरा देख कर वे प्रसन्न हो गईं.

शकुंतला ने परी का माथा चूम लिया. परी रसोई की तरफ चली गई और नाश्ते की तैयारी करने लगी.

तभी शकुंतला आईं और अभिमान से बोलीं, ‘‘परी, तुम आराम करो. हमारे यहां बहू बस रसोई में हाथ ही लगाती है. सारे काम के लिए ये नौकरचाकर हैं ही.’’

परी ने चाय का पानी चढ़ाया और बाहर आ कर बैठ गई. शकुंतला भी उस के सामने आ कर बैठ गईं और उसे पैनी नजरों से दखते हुए बोलीं, ‘‘परी, तुम्हें बस सुंदर लगना है. इसी कारण से तुम इस घर की बहू बनी हो.’’

परी असमंजस में बैठी रही. उस का मन बहुत उदास हो चला था. यों 24 साल की परी आत्मविश्वास से भरपूर युवती थी. मनीष से पहले भी उस की जिंदगी में कई युवक आए और गए, पर मनीष के आने के बाद उस के जीवन में स्थिरता आ गई थी.

दोनों के परिवार वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी. कम से कम परी को तो पता था. पर यह तो उसे विवाह के बाद ही पता चला कि मनीष के मातापिता ने उसे पूरे दिल से स्वीकार नहीं किया था.

वह बुझे मन से अंदर चली गई. एक अनकहा भय उसे घेरे हुए था. इतना डर तो उसे किसी ऐग्जाम में भी नहीं लगा था.

तभी जिया अंदर आ गई. वह मनीष की मौसी की बेटी थी और रिश्ते में उस की ननद. जिया बेहद खूबसूरत थी और कालेज के सैकंड ईयर में पढ़ रही थी. चिडि़या की तरह चहकते हुए वह बोली, ‘‘भाभी, चलो आज मूवी देखने चलते हैं. आप की बात भैया कभी नहीं टालेंगे.’’

मनीष उस को चपत लगाते हुए बोला, ‘‘मुझ से नहीं बोल सकती? चलो फिर भाभी ही ले जाएगी तुम्हें…’’

दोनों पूरे कमरे में धमाल मचा रहे थे. न जाने क्यों ये सब देख कर परी की आंखों में आंसू आ गए. सबकुछ अच्छा है फिर भी बंधाबंधा महसूस हो रहा था.

जिया एकाएक सकपका सी गई. मनीष भी परी के करीब आ कर प्यार से उस का सिर सहलाने लगा और बोला, ‘‘परी घर जाना है तो आज ले कर चलता हूं.’’

परी बोली, ‘‘मनीष न जाने क्यों थकावट सी महसूस हो रही है. लगता है पीरियड्स शुरू होने वाले हैं.’’

जिया तब तक अपनी प्यारी भाभी के लिए एक गिलास जूस ले कर आ गई थी. परी का मन भीग गया और उस ने जिया को गले से लगा लिया. उसे लगा जैसे जिया के रूप में उस ने अपनी छोटी बहन को पा लिया हो.

शाम को मनीष के कहने पर परी जींस और कुरती पहन रही थी पर यह क्या जींस तो कमर में फिट ही नहीं हो रही थी. अभी 3 महीने पहले तक तो ठीक थी. झुंझला कर वह कुछ और निकालने लगी.

तभी मनीष बोला, ‘‘परी यह करवाचौथ टाइप की ड्रैस मत पहनो. जींस थोड़ी टाइट है तो क्या हुआ. पहन लो न.’’

परी ने मुश्किल से जींस पहन तो ली पर अपने शरीर पर आई अनावश्यक चरबी उस से छिपी न रही. वह जब तैयार हो कर बाहर निकली, तो मनीष मजाक में बोल ही पड़ा, ‘‘यार, तुम तो शादी के तुरंत बाद आंटी बन गई हो.’’

परी को यह सुन कर अच्छा नहीं लगा. तभी शकुंतला भी बाहर आ गईं और बोलीं, ‘‘परी खुद पर ध्यान दो और कल से ऐक्सरसाइज शुरू करो.’’

उस दिन परी फिल्म का आनंद न ले पाई. एक तो जरूरत से ज्यादा टाइट कपड़ों के कारण वह असहज महसूस कर रही थी, दूसरे बारबार परफैक्ट दिखने का प्रैशर उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था.

अपने शरीर में आए बदलावों से वह परेशान थी. ऐसे में उसे दुलार और प्यार की आवश्यकता थी. पर उस के नए घर में उसे ये सब नहीं मिल पा रहा था.

रात को उस ने मनीष को अपने करीब न आने दिया. मनीष रातभर उसे हौलेहौले दुलारता रहा. सुबह परी की बहुत देर से आंखें खुलीं. वह जल्दीजल्दी नहा कर जब बाहर निकली तो देखा, नाश्ता लग चुका था.

वह भी डाइनिंगटेबल पर बैठ गई. कवींद्र ने परी की तरफ देख कर चिंतित स्वर में कहा, ‘‘परी बेटा, यह क्या हो रहा तुम्हारे चेहरे पर?’’

एकाएक परी को याद आया कि वह आज मेकअप करना भूल गई.

शकुंतला भी बोलीं, ‘‘मनीष आज परी को डाक्टर के पास ले जाओ. चेहरे पर तिल के अलावा किसी भी तरह के निशान अच्छे नहीं लगते हैं.’’

मनीष भी परी को ध्यान से देख रहा था. परी को एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे वह एक स्त्री नहीं एक वस्तु है.

शाम को जब मनीष और परी डाक्टर के पास गए, तो डाक्टर ने सबकुछ जानने के बाद दवाएं और क्रीम लिख दी.

1 महीना बीत गया पर दानों ने धीरेधीरे परी के पूरे चेहरे को घेर लिया था. परी आईने के सामने जाने से कतराने लगी. उस का आत्मविश्वास कम होने लगा था. वह सब से नजरें चुराने लगी थी. ऊपर से रातदिन शकुंतला की टोकाटाकी और मनीष का कुछ न बोल कर अपनी मां का समर्थन करना उसे जरा भी नहीं भाता था.

औफिस में भी लोग उसे देखते ही सब से पहले यही बोलते, ‘‘अरे, यह क्या हुआ तुम्हारे  चेहरे पर?’’

परी मन ही मन कह उठती, ‘‘शुक्रिया बताने का… आप न होते तो मुझे पता ही नहीं चलता…’’

परी के विवाह को 2 महीने बीत गए थे.

इस बीच घर, नए रिश्ते और औफिस की जिम्मेदारी के बीच बस वह एक ही बार अपने मायके जा पाई थी. परी का जब से विवाह हुआ था वह एक तनाव में जी रही थी. यह तनाव था हर समय खूबसूरत दिखने का, हर समय मुसकराते रहने का, हर किसी को खुश रखने का और इन सब के बीच परी कहीं खो सी गई थी. वह जितनी कोशिश करती कहीं न कहीं कमी रह ही जाती.

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