Family Story: ‘काम का न काज का दुश्मन अनाज का. दूसरों के घरों की जूठन उठा कर, ?ाड़ूपोंछा कर के इस निकम्मे को पढ़ानालिखाना चाहा… सोचा कि अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा, चार पैसे कमाने लगेगा तो बुढ़ापा थोड़ा आराम से कटेगा, लेकिन नहीं, मेरी ऐसी किस्मत कहां…
‘जवानीभर इस के शराबी बाप के लिए कमाती रही, मरती, खटती, खपती रही और अब इस उम्र में इस निठल्ले, नालायक बेटे के लिए अपनी हड्डियां तोड़नी पड़ रही हैं. जब अपना ही सिक्का खोटा हो, तो किसी को क्या दोष देना…’
शक्कू बाई अपनी झोपड़ी के सामने बह रहे गंदे नाले से कुछ ही दूर पर बैठी अपने घर के बरतन मांजते हुए, बरतनों पर अपनी बेबसी व भड़ास निकालते हुए बड़बड़ा रही थी और शायद अपने एकलौते बेटे, जो 3 बेटियों के बाद जनमा था… जगेश्वर, जिसे बस्ती में जग्गू के नाम से जाना जाता है, को सुना रही थी.
शक्कू बाई जहां बैठी थी, वहां से कुछ ही दूर नगरपालिका के नल पर भारी भीड़ लगी हुई थी, चिल्लपों मची हुई थी. वैसे तो इस बस्ती का यह सीन कोई नया नहीं था, हर सुबह यह देखने को मिलता ही है.
ऐसा इसलिए है, क्योंकि तकरीबन 1,000 घरों और तकरीबन 6,000 लोगों की आबादी वाली इस बस्ती में केवल यही एकलौता नल है, जिस में हर रोज सुबह महज 2 घंटे के लिए ही पानी आता है. उस के बाद अगर किसी को पानी चाहिए, तो वह अगली सुबह तक का इंतजार करे या फिर बस्ती से तकरीबन
5 किलोमीटर दूर जा कर पानी लाए.
इस बस्ती में केवल पानी की ही किल्लत है, ऐसा नहीं है और भी कई छोटीबड़ी समस्याएं किसी दानव की तरह इस बस्ती में तब से हैं, जब से यह बस्ती वजूद में आई है.
चमचमाते हाईटैक महानगर में यह गंदी बस्ती कब से है, किसी को कुछ पता नहीं. कितनी सरकारें बदल गई हैं, पर इस बस्ती के हालात में कोई सुधार नहीं आया है. यहां रहने वाले कुछ बड़ेबूढ़े कहते हैं कि उन का जन्म ही इस बस्ती में हुआ है.
बुनियादी सहूलियतों की कमी में यहां जिंदगी हर सुबह कुरुक्षेत्र बन जाती है और यहां के रहवासी योद्धा. पेट की आग बुझाने के लिए, दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए बस्ती के लोग सुबह होते ही अपनेअपने घरों से मेहनतमजदूरी के लिए निकल पड़ते हैं.
घर से निकलते समय बस्ती के ज्यादातर मर्दों को इस बात की कोई चिंता नहीं होती है कि उन के पीछे घर में जो बूढ़ेबुजुर्ग, बीमार, लाचार व छोटे बच्चे छूट जाते हैं, उन के लिए दिनभर के खानेपीने का क्या इंतजाम होगा… उन्हें तो बस इस बात की फिक्र होती है कि शाम को दारू की बोतल का जुगाड़ कैसे होगा…
लेकिन औरतें रूखेसूखे बासी खाने के इंतजाम के साथ बड़ी जद्दोजेहद के बाद पानी भर कर ही घर से बाहर अपने काम के लिए निकलती हैं.
बस्ती के ज्यादातर लोगों के पास पक्का रोजगार नहीं है. रोज कमाना, रोज खाना. जिस दिन काम न मिला, उस दिन भूखे ही सो जाना, यही उन की नियति बन चुकी है.
इतने उलट हालात में भी शक्कू बाई अपने बेटे जग्गू को पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहती थी, उसे इस नरक से निकाल कर एक अच्छी जिंदगी देने का सपना अपनी आंखों में संजोए हुए थी.
जब तक जग्गू छोटा था, तब तक उसे भी स्कूल जाना अच्छा लगता था, क्योंकि वहां उसे मिड डे मील मिलता था, पर जैसेजैसे वह बड़ा होने लगा, वैसेवैसे हर दिन उस का सामना जिंदगी की कड़वी हकीकत के साथ होने लगा.
जग्गू जिस सरकारी स्कूल में पढ़ता था, वहां उस के साथ स्कूल में कुछ ऐसे ओबीसी बच्चे भी पढ़ते थे, जिन के मातापिता के पास थोड़े रुपएपैसे ज्यादा थे या यों समझ लें कि उन बच्चों के हालात जग्गू के हालात से थोड़े बेहतर थे. वे बच्चे जग्गू को परेशान करते थे. उसे उस की जाति के नाम से चिढ़ाते थे, उसे शर्मिंदा करते थे. उस के साथ न तो खेलते थे और न ही खाना खाते थे.
जग्गू अपने स्कूल व अपनी क्लास में खुद को अलगथलग पा कर अनदेखा महसूस करने लगा, उस के कोमल बाल मन में विद्रोह की भावना और कुंठा पनपने लगी. जग्गू को यह सम?ाने में ज्यादा समय भी नहीं लगा कि जिंदगी की राहें चुनौती से भरी हुई हैं, जहां रुपया ही सबकुछ है. रुपयों के बगैर न तो दो वक्त की रोटी मिलती है और न ही इज्जत.
जग्गू अपनी पढ़ाई छोड़ कर किसी कामधंधे में लग जाना चाहता था, लेकिन शक्कू बाई अपने बेटे को मेहनतमजदूरी के दलदल में धकेलना नहीं चाहती थी.
वह चाहती थी कि जग्गू पढ़लिख कर छोटीमोटी नौकरी कर ले, ताकि उस की आगे की जिंदगी बेहतर हो जाए और वह गरीबी, भुखमरी, बेइज्जती जैसे दानव के मुंह में जाने से बच जाए, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था.
जग्गू हर दिन अपना, अपनी जाति और अपने हालात का एक नए रूप में मजाक झेलता था. उस का मन लहूलुहान होने लगा था और फिर एक दिन उन बदमाश लड़कों ने मिल कर जग्गू से जबरदस्ती अपनी जूठन साफ करने के लिए मजबूर कर दिया. उस दिन के बाद से जग्गू ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया.
स्कूल छोड़ने के बाद जग्गू काम की तलाश में सारा दिन यहांवहां भटकता रहता. नौकरी तो मिली नहीं, पर वर्तमान सरकार व कुछ जाति विशेष लोगों के प्रति गुस्से और विद्रोह की भावना जग्गू के भीतर जो सुलग रही थी, उस ने प्रचंड रूप ले लिया, जिस पर राजनीतिक दल व विपक्ष पार्टी के एक ओबीसी नेता ने जम कर घी डालने का काम किया. जग्गू गुमराह हो कर बरबाद होने की राह पर निकल पड़ा.
अब नौकरी तलाशना और कामधंधा ढूंढ़ने का विचार छोड़ कर जग्गू उन नेताजी के कहने पर अपने हक के लिए लड़नेमरने और मरनेमारने को तैयार था. जहां नेताजी कहते, चल पड़ता. कभी रैली, कभी धरना और कभी आम सभा. कभी चक्का जाम तो कभी शहर बंद कराने की मुहिम में.
जग्गू अपना कीमती समय और योगदान अपनी तरक्की में देने के बजाय इन्हीं सब कामों में देने लगा.
नेताजी भी अपना फायदा देखने और साधने में लगे रहे. कभी जग्गू से खुश हो कर नेताजी उसे कुछ रुपए दे देते, तो कभी शराब की बोतल थमा देते, जिसे पा कर जग्गू का सीना यह सोच कर चौड़ा हो जाता कि उस पर नेताजी का हाथ है.
ऊर्जावान नौजवानों को राह से भटकाना व उन की ऊर्जा का गलत इस्तेमाल अपनी पार्टी के फायदे के लिए कैसे करना है, यह हर पार्टी का नेता बखूबी जानता है. कभी आरक्षण, तो कभी जाति, कभी धर्म तो कभी बेरोजगारी के नाम पर जग्गू जैसे भोलेभाले नौजवानों को छला जाता है, उन्हें आसानी से निशाना बना लिया जाता है.
अब जग्गू भी एक राजनीतिक पार्टी के नेता के शिकंजे में था. जब से जग्गू ने यह रास्ता चुना है, शक्कू बाई उखड़ीउखड़ी व जग्गू से नाराज रहती है, क्योंकि यह उस का सपना नहीं है. वह तो अपने बेटे को इज्जत से छोटीमोटी नौकरी करते हुए देखना चाहती है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी का मोहरा बने हुए.
आज सुबह जब से शक्कू बाई ने जग्गू को फोन पर यह कहते सुना है कि सरकार के प्रति विरोध प्रदर्शन करने के लिए शहर के मध्य नगरी चौक पर चक्का जाम करना है, तब से शक्कू बाई का पारा चढ़ा हुआ है और वह सुबह से ही जग्गू पर अपना गुस्सा दिखाते हुए बड़बड़ा रही है.
शक्कू बाई को बरतन साफ करते हुए यों बड़बड़ाता सुन कर जग्गू बोला, ‘‘अरे अम्मां, क्या तू सुबह से ही चिकचिक शुरू कर देती है. आज पढ़लिख कर भी हर नौजवान बेरोजगार, निठल्ला बैठा है.
‘‘मेरे पास कोई कामधंधा नहीं है, इस के लिए मैं नहीं, बल्कि यह सरकार जिम्मेदार है. वह चाहती है कि हमें नौकरी न मिले और हम यों ही सड़ते रहें. सरकार हमें अपने वोट बैंक के अलावा कुछ नहीं समझती.’’
इतना कह कर जग्गू गुस्से में वहां से चला गया. शक्कू बाई उसे समझाना चाहती थी कि धरना देने, चक्का जाम करने, दंगा करने या प्रदर्शन करने से उसे नौकरी नहीं मिलेगी, बल्कि उस के लिए कड़ी मेहनत व सब्र की जरूरत पड़ती है. इतनी साधारण सी बात अनपढ़ शक्कू बाई समझ रही थी, लेकिन जग्गू नहीं, क्योंकि उस की आंखों में विरोधी पार्टी के नेताजी ने काला चश्मा पहना रखा था.
आज शहर के सब से ज्यादा भीड़भाड़ वाले चौक में चक्का जाम व प्रदर्शन जग्गू की अगुआई में होने वाला था. जग्गू अपने दोस्तों, बस्ती व शहर के बेरोजगार नौजवानों के साथ और नेताजी द्वारा बहकाए गए सभी लड़कों को इकट्ठा कर शहर के मध्य नगरी चौक पर पहुंच गया. ?
नारेबाजी के साथ चक्का जाम व प्रदर्शन शुरू हुआ. इस दौरान वहां पुलिस का जत्था आ पहुंचा और उन्हें रोकने की कोशिश करने लगा. देखते ही देखते प्रदर्शन विकराल व विनाशक रूप में बदल गया. आगजनी, लूटपाट व तोड़फोड़ तेजी से बढ़ने लगी और फिर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज और गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया.
जग्गू के माथे पर चोट लग गई और वह घायल हो गया. पुलिस ने उसे शहर की शांति भंग करने, दंगा करने और बिना इजाजत प्रदर्शन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया.
जब यह खबर शक्कू बाई तक पहुंची, तो वह दौड़ती हुई पहले अस्पताल, फिर पुलिस स्टेशन और आखिर में उन नेताजी के पास पहुंची, जिन के इशारे पर जग्गू यह सब कर रहा था.
शक्कू बाई जब मदद की गुहार ले कर नेताजी के बंगले पर पहुंची, तो नेताजी ने शक्कू बाई से मिलने से साफ इनकार कर दिया और अपने नौकर से यह कहलवा भेजा कि वह किसी जग्गू या जगेश्वर को नहीं जानते और न ही उन्होंने चक्का जाम या कोई प्रदर्शन के लिए किसी को कहा है.
शक्कू बाई यहांवहां मदद के लिए भटकती रही, लेकिन कोई सामने नहीं आया और जग्गू को जेल हो गई.
जग्गू के जेल जाने के साथ ही शक्कू बाई का अपने बेटे को कुछ अच्छा करते हुए, नौकरी करते हुए देखने का सपना भी आंखों से पानी बन कर बह गया.
एक राजनीतिक पार्टी का मोहरा बन चुका जग्गू जेल जाने और शक्कू बाई के द्वारा उसे सारी हकीकत से रूबरू कराने के बावजूद इसी उम्मीद में है कि नेताजी उसे बहुत जल्दी इस मुसीबत से बाहर निकल लेंगे.