पंच मेलाराम की नजरें काफी दिनों से अपने घर के साथ चौराहे पर नुक्कड़ वाली जगह पर लगी हुई थीं. वहां पर गरीब हरिया की विधवा बहू गुलाबो मिट्टी की कच्ची झोंपड़ी में बच्चों के लिए टौफीबिसकुट, पैनपैंसिलों, कौपियों वगैरह की दुकान चलाती थी.
पंच मेलाराम नुक्कड़ वाली वह जगह हरिया से खरीदना चाहता था. दरअसल, उस का मझला बेटा निकम्मा व आवारा था, इसलिए मेलाराम गुलाबो की दुकान की जगह पर अपने उस बेटे को शराब की दुकान खोल कर देना चाहता था.
विधवा गुलाबो के घर में अपाहिज सास व 2 बेटियों के अलावा बूढ़ा शराबी ससुर हरिया भी था, जो दो घूंट शराब पीने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था.
पंच मेलाराम ने हरिया को शीशे में उतार लिया था. उसे हर रोज खूब देशी दारू पिला रहा था, ताकि नुक्कड़ वाली जगह उसे मिल जाए.
वह जगह हरिया के नाम नहीं थी. मकान की मालकिन पहले हरिया की अपाहिज पत्नी संतरा थी. बेटे नरपाल की शादी हो गई, तो बहू गुलाबो आ गई.
गुलाबो बेहद मेहनती, गुणवान, अच्छे चरित्र की औरत थी. वह अपनी सास की प्यारी बहू बन गई थी.
नरपाल भी बाप की तरह शराबी था. कभीकभी जंगल में जंगली जानवरों का शिकार कर के मांस बेच कर वह कुछ पैसे कमाता था.
सास ने मकान बहू गुलाबो के नाम कर दिया था. उसे यकीन था कि मकान बहू के नाम होगा तो बचा रहेगा, नहीं तो बापबेटा शराब के लालच में उसे बेच खाएंगे.
नरपाल एक दिन घने जंगल में जंगली जानवर का शिकार करने गया और वापस नहीं आया. 4 दिन बाद तलाश करने पर नरपाल के कपड़े मिले. कपड़े मिलने का सब ने यही मतलब लगाया कि कोई जंगली जानवर उसे खा गया है. अब वह दुनिया में नहीं रहा. बेचारी गुलाबो जवानी में विधवा हो गई. जवान होती बेटियों और अपाहिज सास की जिम्मेदारी उस पर आ गई थी.
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