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विपुल की बहन की शादी के दिन पूरे आफिस का स्टाफ नए शानदार चमकते कपड़े पहन कर आफिस आया. ऐसा लगा मानो आफिस बरातघर बन गया हो. महेश को संबोधित करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है, श्वेता नजर नहीं आ रही?’’

‘‘सर, आप भी क्या मजाक करते हैं, शादी से पहले अपनी ससुराल कैसे जा सकती है. बस, आज बहन की शादी हो जाए, अगले महीने विपुल का भी बैंड बजा समझें.’’ लंच के बाद सभी बस अड्डे पहुंच गए. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद नवगांव की बस मिली. लगभग 4 बजे बस चली. बस चलते ही महेश और सुषमा शादी की बातें करने लगे, खासतौर से शादी के इंतजाम के बारे में और मैं उन की पिछली सीट पर बैठा मंदमंद मुसकराने लगा. तभी मेरे साथ सीट पर बैठे सज्जन ने बीड़ी सुलगाई और मेरे से पूछा, ‘‘भाई साब, क्या आप भी इन लोगों के साथ नवगांव जा रहे हैं बिहारी की छोरी की शादी में?’’

‘‘आप की बात मैं समझा नहीं,’’ मैं ने बीड़ी वाले सज्जन से पूछा. बीड़ी का कश लगाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम बांके है. मैं और बिहारी अनाज मंडी में दलाली करते हैं. बिहारी का छोरा नवयुग सिटी में किसी बड़े दफ्तर में काम करता है. ऐसा लगता है कि आप लोग उसी दफ्तर में काम करते हैं और उस की बहन की शादी में जा रहे हैं. मैं आप लोगों की बातों से समझ गया कि आप वहीं जा रहे हो, क्योंकि इतनी लंबी बातें पूरे नवगांव में बिहारी का खानदान ही कर सकता है. अगर इतना ही अमीर होता तो उस का लड़का 3 हजार की नौकरी करता, ठाट से 18 ट्रक चलाता.

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