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‘‘मैं अपने वादे से कहां मुकरी. मैं ने कब कहा कि वे मुझे पसंद नहीं या मैं ने कभी कोई गलत चुनाव किया था. पर पिताजी की भावनाओं का क्या करूं? उन्हें मेरी ही चिंता रहती है. दिनरात वे मेरे ही बारे में सोचते रहते हैं. वे मेरे लिए बहुत परेशान हैं.’’

‘‘जब उन के विरोध के बावजूद तू ने पंकज का हाथ थामा था तब उन की भावनाओं का खयाल कहां चला गया था? फिर यह भी सोचा है कि तू ही तो उन्हें परेशान कर रही है?’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं? मेरा तो दम घुटा जा रहा है. तू ही कुछ बता कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं ही सब की परेशानी का कारण हूं.’’

‘‘पहले तो यह समझ ले कि इस सारे झगड़े में गलती की पूरी जिम्मेदारी तेरी ही है,’’ जया ने समझाने के लहजे में कहा.

‘‘हां, मैं यह मानने को तैयार हूं, पर पंकज की भी तो गलती है कि उस ने मुझे क्षमा मांगने का मौका ही नहीं दिया. उस ने मुझे कितना अपमानित किया.’’

‘‘वाह रानीजी, वाह, गलती तुम करो और दूसरा अपने मन का तनिक सा रोष भी न निकाल सके?’’

‘‘तो फिर मैं क्या करूं, बताओ न?’’

‘‘एक बात बता, क्या पंकज में कोई कमी है जो दूसरी शादी कर के तुझे उस से अच्छा पति मिल जाएगा? क्या गारंटी है कि आगे किसी छोटे से झगड़े पर तू फिर तलाक नहीं ले लेगी या जिस व्यक्ति से तेरी दूसरी शादी होगी वह अच्छा ही होगा, इस की भी क्या गारंटी है?’’ जया ने तनिक गुस्से से पूछा.

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