नई कामवाली निर्मला का कामकाज, रहनसहन, बोलचाल आदि सभी घरभर को ठीक लगा था. उस में उन्हें दोष बस यही लगा था कि वह अपने साथ अपने बेटे विक्की को भी लाती थी. निर्मला का 3-4 वर्षीय बेटा बहुत शैतान था. नन्ही सी जान होते हुए भी वह घरभर की नाक में दम कर देता था. गजब का चंचल था, एक मिनट भी चैन से नहीं रहता था. और कुछ नहीं तो मुंह ही चलाता रहता था. कुछ न कुछ बड़बड़ाता ही रहता था. टीवी या रेडियो पर जो संवाद या गाना आता था, उस को विक्की दोहराने लगता था. घर में कोई भी कुछ बोलता तो वह उस बात का कुछ भी जवाब दे देता. घर के जिस किसी भी प्राणी पर उस की नजर पड़ती, वह उस से बोले बिना नहीं रहता था. दादाजी को वह भी दादाजी, मां को मां, पिताजी को पिताजी एवं छोटे बच्चों को उन के नाम से या ‘दीदी’, ‘भैया’ आदि कह कर पुकारता रहता था. घर के पालतू कुत्ते सीजर को भी वह नाम ले कर बुलाता था.

जब आसपास कोई न होता तो विक्की अपने बस्ते में से किताब निकाल कर जोरजोर से पाठ पढ़ने लगता. फिर पढ़ने में मन न लगने पर अपनी मां से बतियाने लगता. मां जब डांट कर चुप करातीं तो कहने लगता, ‘‘मां विक्की को डांटती हैं… मां विक्की को डांटती हैं. मां की शिकायत पिताजी से करूंगा. मां बहुत खराब हैं.’’ इस बड़बड़ाहट से झुंझला कर उस की मां जब उसे जोर से डांटतीं तो विक्की कुछ देर के लिए चुप हो जाता. मगर थोड़ी देर बाद उस का मुंह फिर चलने लगता था. कभी वह मुंडेर पर आ बैठी चिडि़या को बुलाने लगता तो कभी पौधों से बातें करने लगता था. कहने का मतलब यह कि उस का मुंह सतत चलता ही रहता था. सिर्फ मुंह ही नहीं, विक्की के हाथपांव भी चलते थे. वह काम कर रही अपनी मां की आंख बचा कर घर में घुस जाता था. दादाजी के कमरे में घुस कर उन से पूछने लगता, ‘‘दादाजी, सो रहे हो? दिनभर सोते हो?’’

पिताजी को दाढ़ी बनाते देखते ही प्रश्न करता, ‘‘दाढ़ी बना रहे हो, पिताजी?’’ मां को जूड़ा बांधते देख उस का प्रश्न होता, ‘‘इतना बड़ा जूड़ा? मेरी मां का तो जरा सा जूड़ा है.’’ गुड्डी और मुन्ने को पढ़ते या खेलते देख वह उन के पास पहुंच कर कभी बोल पड़ता या ताली पीटने लगता. सीजर के कारण ही वह थोड़ा सहमासहमा रहता था, नहीं तो सारे घर में धमाल करता रहता. फिर भी कुत्ते को चकमा दे कर वह घर में घुस ही जाता था. सीजर यदि उस पर लपकता तो वह चीखता हुआ अपनी मां के पास भाग जाता. वहां पहुंच कर वह जाली वाले द्वार के पीछे से सीजर से बतियाता था. कहने का मतलब यह कि वह न तो एक स्थान पर बैठ पाता था, न उस का मुंह ही बंद होता था. उस का स्वर घर में गूंजता ही रहता था.

विक्की की इन शरारतों से तंग हो कर सभी ने उस की मां को आदेश दिया, ‘‘तुम इस बच्चे को यहां मत लाया करो.’’ निर्मला ने अपनी विवशता जाहिर करते हुए स्पष्ट शब्दों में हर किसी को कहा, ‘‘घर पर कोई संभालने वाला होता तो न लाती, मजबूरी में लाती हूं.’’ वैसे निर्मला ने पहले दिन ही बता दिया था, ‘‘मेरा घरवाला दिन निकलते ही काम पर जाता है. उस के अलावा घर में और कोई है नहीं, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. घर में किस के सहारे छोड़ूं. रिश्तेदार यदि पासपड़ोस में होते तो उन के यहां छोड़ आती. अगर एक दिन का मामला होता तो पड़ोसियों की मदद ले लेती, पर यह तो रोज का ही झमेला है, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. 3-4 साल की इस जरा सी जान को किसी के भरोसे छोड़ने का मन भी नहीं होता क्योंकि यह बड़ा शैतान है. एक पल चैन से नहीं बैठता. ‘‘एक रोज गलियों से निकल कर सड़क पर जा पहुंचा था. वहां ट्रक के नीचे आतेआते बचा. एक बार कुएं में झांकने पहुंच गया था. इस के कारण सब को परेशानी होती है. पर करूं क्या? यह मुआ मार से भी नहीं सुधरा. इस के पिता तो डांटतेफटकारते ही रहते हैं.’’

निर्मला की इस विवशता से भलीभांति परिचित होते हुए भी घरभर के सदस्य उस से कहते ही रहते, ‘‘तू कुछ भी कर के इस शैतान से हमें बचा.’’ बारबार के इन तकाजों से परेशान हो कर निर्मला उन लोगों से ही पूछ बैठती थी, ‘‘आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’

तब लेदे कर एक ही मार्ग सभी को सूझता था. वे यही सलाह देते थे, ‘‘तू पीछे वाले आंगन में ही इसे बंद रखा कर. घर में न घुसने दिया कर.’’ निर्मला को पता था कि यह सलाह निरर्थक है, क्योंकि बरतन, कपड़े, सफाई आदि काम करने में उसे लगभग दोढाई घंटे लग जाते थे. इतनी देर तक विक्की को वहां कैद रखना संभव नहीं था. कैद रखने पर भी उस का मुंह तो चलता ही रहता था. वह जाली वाले द्वार के पीछे खड़ाखड़ा शोर मचाता ही रहता और दरवाजा भड़भड़ाता रहता. घर के किसी भी प्राणी पर नजर पड़ते ही विक्की उसे पुकारने लगता. टैलीफोन की घंटी बजते ही ‘हैलोहैलो’ कहने लगता. दादाजी को जाप करते देख वह भी उन के सुर में सुर मिलाने लगता. सीजर को देखते ही उसे छेड़ कर भूंकने या गुर्राने पर विवश कर देता. तब दोनों में खासा दंगल सा छिड़ जाता. जाली के पीछे बड़े मजे से खड़ा विक्की क्रोध से उबलते सीजर का खूब मजा लेता रहता. उस के कहकहे फूटते रहते. तब उस की मां की गुहार मचती. वे काम छोड़ कर विक्की को डांट कर दरवाजे से दूर भगातीं. थोड़ी देर शांति हो जाती. किंतु कुछ देर बाद ही विक्की का ‘वन मैन शो’ फिर शुरू हो जाता.

रोज की इस परेशानी से क्षुब्ध हो कर सभी ने बारबार विचार किया कि निर्मला को काम से छुट्टी दे दें और कोई दूसरी कामवाली रख लें. किंतु उस की साफस्वच्छ छवि, उस के कामकाज का सलीका, विनम्र स्वभाव, वक्त की पाबंदी, कम से कम नागे करने की प्रवृत्ति जैसे गुणों के कारण वे ऐसा साहस न कर पाए. वैसे भी कामवालियों का उन का अभी तक का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. किसी ने बरतनों में चिकनाई छोड़ी थी तो किसी ने घर को ढंग से बुहारा नहीं था. किसी ने कपड़ों का मैल नहीं छुड़ाया था तो किसी ने आएदिन नागे करकर के उन्हें परेशान किया था. कोई बारबार पेशगी मांगती रही थी तो कोई पेशगी में ली गई रकम ले कर भाग गई थी. ऐसे कई कटु अनुभव हुए थे उन लोगों को. लेकिन निर्मला के काम से सभी प्रसन्न थे. वह हाथ की भी सच्ची थी. कई बार उस ने नोट व गहने स्नानघर एवं शयनकक्ष से उठाउठा कर दिए थे. लेकिन विक्की के कारण सभी परेशान रहते थे. किंतु एक रोज अनपेक्षित हो गया. हुआ यों कि विक्की टैलीफोन कर रहे पिताजी के पास जा पहुंचा एवं अपनी बाल सुलभ हंसी के साथ बीचबीच में ‘हैलोहैलो’ कहने लगा.

पिताजी ने टैलीफोन पर बात जारी रखते हुए उसे संकेतों से दूर भगाने का प्रयास किया, मगर वह वहां से टला नहीं. मुसकराते हुए ‘हैलोहैलो’ कहता रहा. पिताजी ने सहायता के लिए चारों तरफ नजर दौड़ाई मगर कोई दिखा नहीं. इसी उधेड़बुन में वे चोंगे को आधा दबा कर ही विक्की पर चीखे. यह चीख टैलीफोन में चली गई. उस ओर उन के साहब थे. उन्होंने टैलीफोन बंद कर दिया. पिताजी ने फिर से फोन मिला कर साहब को सारा मामला समझाते हुए क्षमायाचना की. किंतु उन को लगा कि साहब के मन में गांठ पड़ गई है. इसी झुंझलाहट में पिताजी ने विक्की को एक चांटा मारा. उस की मां को उसी क्षण घर से जाने का आदेश दे दिया.

विक्की को पीटती हुई निर्मला बाहर हो गई. निर्मला ने आना बंद कर दिया. घरभर को नई परेशानियों ने आ घेरा. उस के स्थान पर आई नई कामवालियों से सभी को असंतोष रहने लगा. कोई बरतन में चिपकी चिकनाई की शिकायत करने लगा, किसी को गर्द व जालों की मौजूदगी खलने लगी तो किसी को उस की गंदी आदतें बुरी लगने लगीं. सब से बड़ी समस्या तो सीजर को ले कर हुई. वह नई कामवालियों से अपरिचित होने के कारण उन पर लपकता था. इसलिए उसे बांध कर रखना पड़ता था. 3 कामवालियां 3 कामों के लिए अलगअलग समय पर आती थीं. इसलिए उन के आते ही एक व्यक्ति को सीजर को बांधने की तत्परता दिखानी पड़ती थी. उधर सीजर को यह नई कैद खलने लगी थी, वह मुक्ति के लिए शोर मचाता था. सुबहशाम घरभर की शांति भंग होने लगी. काम भी संतोषप्रद नहीं था और मगजपच्ची भी करनी पड़ती थी.

इसीलिए निर्मला सभी को याद आने लगी. बातबात पर उस का उल्लेख होने लगा. जब देखो तब उस के काम, व्यवहार और आदतों आदि की तुलना नई कामवालियों से होने लगी. ऐसे क्षणों में पिताजी को पश्चात्ताप होता कि उन्होंने तैश में व्यर्थ ही निर्मला को भगा दिया. बच्चे तो चंचल होते ही हैं. उन्हें विक्की की चंचलता पर इस तरह क्रोधित नहीं होना चाहिए था. इसी पश्चात्ताप से क्षुब्ध हो कर पिताजी ने बारबार कहा, ‘‘निर्मला को बुलवा लो.’’ किंतु उन की इस आज्ञा का पालन कोई भी नहीं कर पाया. वैसे सभी मन से यह चाहते थे कि निर्मला फिर से यहां पर काम करने लग जाए. किंतु उसे बुलाना किसी को भी उचित नहीं लग रहा था. सभी की यह दलील थी कि इस तरह बुलाने से वह सिर पर चढ़ेगी. विक्की इस घर में खुल कर शैतानी करेगा. किंतु ऐसी दलीलें होते हुए भी सभी की यह कामना थी कि निर्मला किसी तरह लौट आए.

संयोग कुछ ऐसा हुआ कि 20-21 दिन बाद ही एक रोज दिन ढले छरहरी, सांवली, मंझोले कद की निर्मला द्वार पर आ खड़ी हुई. स्वच्छ धानी साड़ी वाली इस नारी ने आते ही मुख्यद्वार खोला, सीजर भूंकता हुआ उस की ओर लपका. उस समय केवल मां ही घर में थीं. उन्होंने दरवाजे की ओर नजर दौड़ाई. निर्मला के सामने सीजर पूंछ हिला रहा था. यह दृश्य देख कर मां को सुखद आश्चर्य हुआ. उस के साथ विक्की को न देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ. इतने दिनों बाद आई निर्मला के तन पर अगली दोनों टांगें रख कर सीजर प्रेम प्रदर्शन कर रहा था. उस से जैसेतैसे छुटकारा पा कर वह मुसकराती हुई भीतर गई.

मां ने पूछा, ‘‘कैसी हो, निर्मला?’’

‘‘अच्छी हूं, मांजी,’’ उस ने सहज स्वर में कहा.

‘‘विक्की मजे में है?’’

‘‘जी हां, मजे में है.’’ इधरउधर की बातें होने लगीं. मां मन ही मन तौलती रहीं कि यह क्यों आई है. अच्छा हो, यदि यह यहां काम फिर से कर ले. तभी निर्मला ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मांजी, मेरा काम मुझे फिर से दे दो. विक्की को संभालने के लिए मैं ने अपनी सास को गांव से बुलवा लिया है. वह अब मेरे साथ नहीं आएगा.’’ मां को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने अपने हर्ष को छिपाते हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘रखने को तो तुम्हें फिर से रख लें, मगर तुम्हारी सास का क्या भरोसा, वे यदि अपने गांव चली गईं तो फिर विक्की की समस्या हो जाएगी.’’

‘‘नहीं होगी, मांजी. मेरी सास अब यहीं रहेंगी, मैं पक्का वादा करा के उन्हें लाई हूं. मेरा सारा काम मुए विक्की के कारण छूट गया था. इसलिए यह पक्का इंतजाम करना पड़ा. आप बेफिक्र रहिए, आप को मेरा विक्की अब परेशान नहीं करेगा. मैं यहां उसे कभी नहीं लाऊंगी. आप तो मुझे बस काम देने की मेहरबानी कीजिए,’’ वह अनुनयभरे स्वर में बोली.

‘‘ठीक है, सोचेंगे,’’ मां ने नाटक किया.

‘‘सोचेंगे नहीं, मुझे काम देना ही होगा. मैं ने अपने घर की तरह यहां काम किया है.’’

‘‘इसीलिए तो कहा कि देखेंगे.’’

‘‘ऐसी गोलमोल बातें मत कीजिए, मांजी. मुझे कल से ही काम पर आने की मंजूरी दे दीजिए.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? तेरी जगह पर 3 औरतें हम ने रखी हैं. महीना पूरा होने पर उन्हें बंद करेंगे.’’

‘‘नहीं, कल 15 तारीख है, कल से ही उन्हें बंद कर दीजिए. मैं कल से ही काम संभाल लूंगी.’’ मां मन ही मन प्रसन्न हुईं कि चलो, घरभर की इच्छा पूरी हो जाएगी. किंतु अपने मन की यह बात जाहिर न करते हुए बोलीं, ‘‘गुड्डी के पिताजी से पूछ कर फैसला करूंगी. तू इतनी जल्दबाजी मत कर.’’ ‘‘जल्दबाजी बिना हमारा गुजारा कैसे होगा. इसलिए मैं तो कल से ही काम पर आ जाऊंगी,’’ यह कहते हुए निर्मला उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही चली गई. मां प्रसन्न हुईं कि मामला आसानी से निबट गया. निर्मला द्वारा काम संभालते ही घरभर का असंतोष दूर हो गया. विक्की के न आने से सभी को दोहरी प्रसन्नता हुई. किंतु कुछ दिनों बाद ही सभी को जैसे विक्की की याद आने लगी. वे लोग निर्मला से उस का हालचाल पूछने लगे. प्रश्न होने लगे, ‘विक्की को उस की दादी संभाल लेती है?’, ‘विक्की उन्हें परेशान तो करता होगा?’, ‘वे ज्यादा बूढ़ी होंगी, तब तो वह उन को चकमा दे कर बाहर निकल जाता होगा?’, ‘बुढि़या को वह शैतान बहुत तंग करता होगा?’, ‘कुएं के पास या सड़क पर वह फिर तो नहीं गया न?’ निर्मला इन प्रश्नों के उत्तर देती रहती थी. किंतु उस के जवाब से किसी को संतोष नहीं होता था. सभी का मन था कि विक्की कभी यहां आए तो उस से सारी बातें पूछें. उस के महीन स्वर को सुनने को जैसे सभी लालायित हो उठे थे. सांवले रंग के, प्रशस्त ललाट एवं बड़ीबड़ी आंखों वाले उस हाथभर ऊंचे बालक की छवि सभी के मनमस्तिष्क में तैरती रहती थी. उस की शरारतों की चर्चा करकर के सभी प्रसन्न होते थे.

एक रोज पिताजी ने निर्मला से कहा, ‘‘उस शैतान को किसी दिन लाना, उसे टैलीफोन सुनवाऊंगा.’’

दादाजी बोले, ‘‘एक बार जाप करवाऊंगा उस से.’’

मां बोलीं, ‘‘मेरे जूड़े की अब कोई तारीफ ही नहीं करता.’’

गुड्डी ने बताया, ‘‘उस के लिए मैं ने पहली कक्षा की किताब और पट्टी रखी हुई है.’’

मुन्ना बोला, ‘‘मैं उसे खिलौने दूंगा.’’ सभी ने अपनेअपने मन की बताई. केवल सीजर ही इस संदर्भ में न कह पाया. किंतु जिस रोज निर्मला विक्की को ले कर आई, उस रोज उस मूक पशु ने अपने मन की बात अपनी भाषा में कह दी. विक्की को देखते ही वह पहले झपटता था, किंतु अब उसे देखते ही वह दुम हिलाने लगा. सीजर को यों दुम हिलाते देख निर्मला अपने बेटे को ले कर आगे बढ़ी. सीजर तो जैसे प्रेम में बावला हो रहा था. उस ने दुम हिलातेहिलाते विक्की का मुंह चाट लिया तो वह डर के कारण रो पड़ा. यह देख सभी के ठहाके फूट पड़े. बड़े बच्चों वाले घर में नन्हे विक्की का यह रुदन मां को बड़ा भला लगा. वे भावविह्वल स्वर में बोलीं, ‘‘मुए सीजर ने यह अच्छा राग शुरू करा दिया.’’

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