Funny Story : मेरे मोबाइल फोन पर उन के मैसेज बारबार रहे थे कि मेरा वोट मेरी आवाज है. मैं अपनी आवाज को किसी के पास बिकने दूं. पर दूसरी ओर भैयाजी बराबर कह रहे थे कि रे लल्लू, मेरा वोट केवल और केवल उन की आवाज है. वे मेरी आवाज खरीदने के बाद ही संसद में अपनी आवाज उठाने लायक हो पाएंगे. मैं ने उन के मैसेज को इग्नोर कर इस बार भी मान लिया कि मेरा वोट उन की ही आवाज है.

वैसे दोस्तो, मेरे पास बेचने को अब मेरी आवाज बोले तो मेरा वोट ही बचा है. बाकी तो मेरा सबकुछ बिक चुका है, देश की संपत्तियों की तरह. सो, चुनाव के दिनों में उसे बेच कर कुछ दिन मैं भी हलकीफुलकी मस्ती कर लेता हूं.

अब के फिर चुनाव केड्राई डेको भी मुझे तर रखने वाले भैयाजी को वोट डालने के बाद मैं उन के घर गया उन का धन्यवाद करने. धन्य हों ऐसे भैयाजी, जोड्राई डेको भी अपने वोटरों को ड्राई नहीं रहने देते. उन को तर रखने का इंतजाम वे पहले ही कर देते हैं.

ऐसे भैयाजी जनता को बहुत सत्कर्मों के बाद मिलते हैं. हम ने पिछले जन्म में पता नहीं ऐसे क्या सत्कर्म किए थे, जो इस जन्म में हमें ऐसे ही खानदानी भैयाजी मिले.

भैयाजी केड्राई डेका कर्ज उतारने मैं उन के घर गया, तो वे अंधेरे कमरे में बैठे थे. राजमुजरा या राजमुद्रा में, वे ही जानें. पहले तो मैं ने सोचा कि चुनाव की थकान निकाल रहे होंगे. चुनाव के दिनों में तो जो नेता लोहे का भी हो तो वह भी थकान से चूरचूर हो जाए.

अपने भैयाजी तो ठहरे हाड़मांस के. इतने दिनों तक जागे, नींद आई. सोएसोए भी जागते रहते, जागतेजागते ही सोए रहते. जितना नेता चुनाव के दिनों में दिनरात एक करते हैं, इतना जो कोई साधारण से साधारण जीव स्वर्ग पाने के लिए करे तो उसे मोक्ष प्राप्त करने से कोई रोक पाए.

मैं ने उन के कमरे की दीवारों से आंखकान लगाए, तो भीतर अपने भैयाजी की आवाज सुनाई दी, भैयाजी दिखाई दिए. उन के चारों ओर मच्छर गुनगुना रहे थे. उन्होंने अपने आगे संविधान रखा था और खुद संविधान के आगे घुटने टेके क्षमायाचना की मुद्रा में.

तब पहली बार पता चला कि नेता भी किसी के आगे घुटने टेकते हैं, वरना मैं तो सोचता था कि नेता सभी को अपने आगे घुटने टिकवाते हैं.

भैयाजी हाथ जोड़े संविधान के आगे घुटने टेके कह रहे थे, ‘हे संविधान, चुनाव के दिनों में जो मैं ने अपने मौसेरे भाइयों को भलाबुरा कहा, मैं तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए उन से माफी मांगता हूं. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं अपने मौसेरे भाइयों को जो मैं ने इस चुनाव में कहा, कभी कहता. इस अपराध के लिए वे मुझे माफ करें.

चुनाव के दिनों में जो मैं ने दिवंगत नेताओं को भलाबुरा कहा, मैं तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए उन से माफी मांगता हूं. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं अपने दिवंगत नेताओं को जो मैं ने इस चुनाव में कहा, कभी कहता. इस अपराध के लिए वे मुझे माफ करें.

हे संविधान, चुनाव के दिनों में जो मैं ने जनता को लुभाने, रिझाने पटाने के लिए उन को झूठे आश्वासन दिए, तुम्हें साक्षी मान कर उस के लिए मैं दिल की गहराइयों से जनता से माफी मांगता हूं. ये मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. जो रोटी के बदले मुझे कुरसी की भूख होती, तो मैं भोलीभाली जनता को जो मैं ने इस चुनाव में झाठी गारंटियां दीं, कभी देता. इस अपराध के लिए झूठे आश्वासन हेतु मुझे माफ करें.

हे संविधान, झू बोलना हर पार्टी के, हर किस्म के नेता के अधिकार क्षेत्र में आता है. जनता से झू बोलना उस का मौलिक अधिकार है. जनता को छलना, दलना उस का पहला फर्ज है. पर चुनाव के दिनों में स्वयंमेव हर नेता को झू बोलने का विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है.

इस महापर्व में नेता के हजार झू भी माफी लायक होते हैं. दरअसल, इन दिनों उसे खुद पता नहीं होता कि वह जो बोल रहा है, क्या बोल रहा है. चुनाव के दिनों में जो मन में आए, बोलना उस का धर्म होता है, क्योंकि इन दिनों वह केवल और केवल अपने प्रचारी धर्म का पालन कर रहा होता है. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. इस अपराध के मेरा झू मुझे माफ करे.

हे संविधान, तुम मुझे समाज में जातिगत, धार्मिक, सांस्कृतिक प्रदूषण को फैलाने के दोष से दोषमुक्त करना.

मैं मानता हूं कि प्रदूषणों में सब से खतरनाक प्रदूषण जातिगत प्रदूषण होता है. पर क्या करूं, इन प्रदूषणों को समाज में फैलाने पर ही कोई अच्छा नेता बन पाता है.

समाज में जातिगत, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाए बिना स्वस्थ राजनीति हो ही नहीं सकती. यह मेरी नहीं, कुरसी की मांग थी. इस अपराध के लिए जाति, धर्म मुझे माफ करे.

हे संविधानहे संविधान…’  

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