Family Story, Writer- Bhawna Gaur

‘‘हैलो,’’फोन पर विद्या की जानीपहचानी आवाज सुन कर स्नेहा चहक उठी.

‘‘क्या हालचाल हैं... और सुना सब कैसा चल रहा है...’’ कुछ औपचारिक बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने पति की बुराई में लग गईं.

‘‘प्रखर को तो घर की कोई चिंता ही नहीं रहती. कल मैं ने बोला था कि शाम को जल्दी आ जाना. टिंकू के जूते खरीदने हैं. पर इतनी देर में आया कि क्या बताऊं,’’ विद्या बोली.

 स्नेहा यह सुन कर क्या बोली

यह सुन कर स्नेहा भी बोल पड़ी, ‘‘यह रूपेश भी ऐसा ही करता है. जब जल्दी आने को बोलूं तो और भी देर से आता है. शुक्रवार की ही बात ले लो. नई फिल्म देखने का प्लान था हमारा... इतनी देर से आया कि आधी फिल्म छूट गई.’’

दोनों गृहिणियां थीं. दोनों के पति एक ही कंपनी में काम करते थे. बच्चे भी लगभग समान उम्र के थे. दोनों का अपने पति की औफिस की पार्टी के दौरान एकदूसरे से पहली बार मिलना हुआ था. दोनों के पति एक ही औफिस में काम करने के कारण लगभग एक ही तरह की समस्या से गुजरते थे. शुरुआत में दोनों अपनेअपने पति के औफिस के बारे में ही बातें किया करती थीं, लेकिन जल्दी ही उन की बातों का विषय अपनेअपने पति की बुराई करना बन गया.

तभी स्नेहा के घर की घंटी बजी तो वह बोली, ‘‘विद्या, शायद मेरी कामवाली आ गई है. चल, बाद में फोन करती हूं,’’ कह कर स्नेहा ने फोन काट दिया. दरवाजा खोलते ही रमाबाई अंदर आ गई और फिर जल्दीजल्दी काम निबटाने लगी.

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