Hindi Family Story: इस समय गोवा के खुशनुमा मौसम को चार चांद लग रहे थे. हवाओं में खूबसूरत नमी सिमट रही थी. मानसून की पहली बारिश ने कितनी ही मटमैली हो गई चीजों से कैसीकैसी धूल की परतें मिटा कर उन की चमक वापस लौटा दी थी.

मिसाल के तौर पर गुलमोहर का दरख्त कितना चटख हरा लगने लगा था. इतना ही नहीं, रिमझिम के मधुर संगीत के साथ धरती अपनी प्यास पूरी तरह बुझा लेने को उतावली थी, मगर अभी बस रिमझिम ही चल रही थी. तेज बौछारों का आना तो अभी बाकी था.

इस रिमझिम के सुर में डूबे हुए नारियल के पेड़ तो जैसे इतराए जा रहे थे. उन के पास बशर्ते मीठा जल था, लेकिन बादलों का यह उपहार उन को दीवाना कर देता था.

नारियल के पेड़ सड़क के किनारे इतने अनुशासित खड़े थे, जैसे किसी प्राइमरी पाठशाला की सभा में सीधे खड़े विद्यार्थी. हवा और रिमझिम की संगत में नारियल के पेड़ दीवाने बन कर संगीत के दीवानों की तरह झूम रहे थे.

गोवा की राजधानी पणजी से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर कैंडोलिम बीच पर एक नौजवान इस रिम?िम में सराबोर हो कर लहरों का आनाजाना देख रहा था.

इस नौजवान का नाम रोशन है. वह साफसाफ महसूस कर रहा है कि गोवा राज्य के उत्तरी भाग में बने इस छोटे से शहर कैंडोलिम में इस बार गिनेचुने सैलानी ही आए हैं, जबकि यह गोवा के सब से लंबे समुद्री बीच में से एक है.

रोशन को इस बार यहां लगातार हो रही बरसात की वजह से कम सैलानी होने का कोई दुख नहीं हो रहा था. इस की वजह यह थी कि उस की कुछ महीने की पक्की कमाई कुछ दिन पहले ही हो गई थी. अब वह एकदम निश्चिंत था.

अब वे जमाने गए कि जब रोशन घबराया सा रहता था. रोज रात को एक रजिस्टर में अपनी कमाई का हिसाबकिताब लिखा करता था. डरता रहता था कि कल को क्या होगा. अब उसे कोई फिक्र नहीं.

मीठी रिमझिम की तो लगातार झड़ी लगी हुई थी. इस समय सुबह के 10 बजे थे और रोशन का मन सूरज की तरह खिलाखिला था. इस तरह खिले रहने की आदत बनाने में उस की पुरानी प्रेमिका झलक का बड़ा ही योगदान रहा था. वह हमेशा खुश ही रहती थी.

रिमझिम की हर रिमझिम में कमाल और धमाल था. चाहे माहवारी की वजह से पूरे बदन में भयंकर दर्द हो रहा हो, पेट और कमर पर बल पड़े हों, मगर रिमझिम भी न जाने कौन सी मिट्टी की बनी थी कि वह अपनी एक सांस से दर्द को खींच लेती, फिर दूसरी सांस से मुसकराना, खिलखिलाना शुरू कर देती.

रोशन ने ‘आल इज वैल’ का यह सूत्र झलक से ही पाया था. वह उस शाम को आज तक न भूला है. हंस कर कैसे बोली थी झलक, ‘‘ऐ रोशन, इधर देख तो. नजर मिला न. कैसी उदासी और कैसा सुबकना?

‘‘देखो, कुछ भी हो, मगर तुम मुझे भूलना मत. बस इसी तरह हमारा प्यार अमर रहेगा. शादी की दावत खा कर जाना. भूलना मत,’’ ऐसी सीख दे गई वह. उस भावुक दिन, जब अपनी शादी का कार्ड देने बुलाया था.

इसी तरह की बातें हुआ करती थीं झलक की. वह तो अपनेआप में अनोखी थी. शादी के एक महीने बाद जब मायके आई तो वह सीधा रोशन को मिलने आ गई. घबराए से रोशन की सम?ा में नहीं आ रहा था कि झलक इतनी बेखौफ हो भी कैसे सकती है.

‘‘ओहो, इस में खौफ की कौन सी बात है रोशन?’’ रोशन के दिल की बात पढ़ कर बोली थी झलक, ‘‘सुन अब, गौर से सुन, तुझे एक बढि़या सलाह देने आई हूं,’’ वह किलक कर बोली थी.

‘‘झलक, तू मुझ को सलाह देगी… ठीक है, पर शादी करने की सलाह तो बिलकुल मत ही देना मुझे,’’ रोशन ने बिदक कर कह दिया था.

‘‘अरे पगले, कभी नहीं. शादी तो बरबादी है रे. अगर मेरे बाप पर इतना कर्ज न होता तो मै भी कौन सा शादी कर के ससुराल जाने वाली थी. कतई नहीं. बिलकुल नहीं,’’ झलक की यह सच्ची और खरी सी यह बात सुन कर रोशन ने भी बस गरदन हिला दी थी. इस सच से तो वह एकदम वाकिफ था, इसीलिए तो झलक से आज भी खफा न था. उस से नफरत नहीं करता था.

रोशन को सब मालूम था कि सट्टे और जुए का शौकीन झलक का बाप कितना गलीज है. झलक का बाप इतना गिरा हुआ था कि तब भी झलक ने अपनी सोच मैली न होने दी. ऐसे बाप की इतनी समझदार औलाद थी झलक. इतना नीच और नशेड़ी कि हर किसी से रुपए उधार मांगता फिरता था. शरमलाज तो जैसे सब बेच कर खाई थी उस जानवर ने. कितनी जगह से कर्ज ले रखा था. सब से ज्यादा तो लिया था उस डोलम होटल वाले से.

डोलम होटल वाले का एक भाई था. उस ने झलक से शादी की जिद कर ली थी. डोलम होटल वाला तो ?ालक को जैसे कोई चीज समझ कर डील कर रहा था.

गरीब की बेटी सारे गांव की दिलरुबा झलक ने यह कड़वी हकीकत बहुत पहले ही निगल कर पचा ली थी, इसलिए उस को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ता था. उस ने वैसे भी अपनी मनमरजी की छोटी सी जिंदगी 14 साल की उम्र से 19 साल की उम्र तक तबीयत से जी ली थी. अब 20 की उम्र में बाप के कर्ज के बदले बेटी बलिदान कर दी गई थी.

डोलम होटल वाले को लगता था कि मासूम और कोमल झलक उस के भाई की पत्नी बनने जा रही है, पर यह उस की नादानी ही थी.

दरअसल, रोशन और झलक पिछले कई महीने से एकदूजे के हो गए थे. एकदूसरे की बांहों में दोनों को सांस आती और फिर हर तरह के प्यार की प्यासी झलक तो रोशन को ही अपना सबकुछ मानती थी.

रोशन ही तो उस का मातापिता, सगा, बंधु, परिचित, रिश्तेदार था. पिछले साढ़े 5 साल से हर साल उस के साथ शादी की सालगिरह मनाती थी.

वे दोनों दुनिया के लिए भले ही कुंआरे थे, मगर उन दोनों को ही पता था कि वे एकदूजे के लिए पतिपत्नी थे. दोनों देर तक गोमती पुल के नीचे एक कोने में समोसा और जलेबी खाते हुए अपने होने वाले बेटाबेटी के नाम तय करते थे. नाटकनाटक में झगड़ा भी किया करते थे, ताकि पतिपत्नी जैसा अहसास कर सकें.

और आज वही झलक गोवा में किसी और के संग हनीमून मना कर मायके लौटी थी.

यह झलक भी गजब थी कि ‘रोशनरोशन’ करती हुई सीधा उसी से मिलने आ गई थी.

‘‘गोवा में तेरा यह सब सामान खूब बिकेगा. मैं ने देखा है वहां मछलीचावल खाते हुए. एक से बढ़ कर एक चीनी मिट्टी की प्लेट. तू तो लखनऊ से मुंबई जा और वहां से बस का किराया 520 रुपए. सीधा पणजी चला जा,’’ यही राय देने आई थी झलक.

रोशन का घर लखनऊ में था. उस के पिता चीनी मिट्टी के बरतन बनाते और बेचा करते थे. रोशन को भी इस काम में बहुत ही चाव था. वह महज 9 बरस की कच्ची उम्र में सब सीख गया था. चिकनी मिट्टी को गीला कर के कितना सुखाना है, उसे आकार देते समय कितना धीरज रखना है, कैसे पकाना है वगैरहवगैरह.

रोशन ने आगे पढ़ाई भी नहीं की. किसी तरह 10वीं कर पाया था. सबक याद ही नहीं होता था उस को.
‘‘जितनी देर में यह सबक याद होता है उतनी देर में तो मैं कितने बरतन बना लेता,’’ एक दिन रोशन ने अपने लंगोटिया यार पामू से कहा.

‘‘नहींनहीं रोशन, कभी भी जल्दी नहीं. इस मिट्टी में कोई राज होता है. इसे हौलेहौले सामने आने दिया करो,’’ पामू उसे प्यार से समझाया करता.

पामू का परिवार भी चीनी मिट्टी के बरतन बनाया करता था. पामू भी तो इस काम को कुछ अलग ही ढंग से सीखने की कोशिश करता था, मगर कभी कुछ का कुछ बना देता, फिर कहता कि यह कलाकृति है. इस के पीछे एक सोच है.

मगर पामू के मातापिता को वह कलाकृति किधर से भी समझ नहीं आती थी. उसे वह एक तरफ रख कर अपने और्डर को पूरा करने लगते. उन को कप और प्लेट के बहुतायत में और्डर मिला करते थे.

पामू को कप और प्लेट के सिवा सबकुछ बनाने का मन करता. कभी मीनार, कभी टोपी, कभी गुटका तो कभी मुड़ा हुआ सांप. उस का दिमाग कुछ और ही किया करता था. खैर, वे तो पुराने दिन हो गए थे.

अब झलक की उस हौसलाअफजाई के बाद रोशन की आज की तसवीर एकदम अलहदा है.

28 साल के रोशन को अब इस जगह का सबकुछ मालूम था. वह सब जानतासमझता था. जिस गैस्ट हाउस में वह रहता था, उधर भी सब से जानपहचान हो गई थी.

गैस्ट हाउस में उस को ‘रोशन दादा’ कहने वाले कितने ही नौजवान थे. ज्यादातर तो हिमाचल प्रदेश के थे. सीधेसरल पहाड़ी नौजवान. मेहनती और सच्चे. इन के भरोसे ही यहां के ज्यादातर होटल चल पा रहे थे.

अब रोशन एक अलग ही उमंग में भरा हुआ है. वह 2 दिन बाद कार्निवाल के लिए जाने वाला है. कार्निवाल
की तैयारी का आलम इधर गजब ही रहता है. कितने तरह के तो बैंड आते हैं. देशीविदेशी पर्यटक बैंड की धुन पर खूब झूमते और नाचते हैं.

रोशन को तो कितनी बार यह भी लगता है कि कार्निवाल के चलते ही यहां की रंगत है. मगर फिर कितनी बार उस को लगता है कि इस के इतने सारे रंगबिंरगे तट हैं. इस वजह से गोवा एकदम खास है और अलग है.

रोशन के सोचने या न सोचने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला था, मगर कैंडोलिम बीच पर कार्निवाल की धूम ने कुछेक सैलानियों को मस्ती के सागर में तैरा दिया था.

‘अरे… अरे…’ खुशी के मारे एकाएक रोशन की आंखें चौड़ी हो गईं. कार्निवाल में रोशन ने अचानक ही पामू को देखा.

‘‘पामू… पामू… ओ पामू… पहचाना?’’ रोशन चीख कर बोला.

‘‘ओह रोशन, मैं ने एक ही बार में पहचान लिया,’’ कह कर पामू बच्चों के जैसे खिलखिला उठा.

पामू इधर कुछ नया करने का सोच कर आया था, पर इतना भी नया कर न सका. रोशन जानता था कि उस का लंगोटिया यार पामू एक सच्चा कलाकार है. उस की मदद करनी चाहिए.

रोशन ने एक उपाय सोचा. उस की जेब में 10,000 रुपए थे. इस समय उसे बारबार झलक याद आ रही थी.

‘‘पामू, इस बार इधर कम सैलानी हैं. लेकिन फिक्र मत कर, तेरी कलाकृतियां यहां बिक जाएंगी. दिखाना तो कैसा सामान लाया है?’’ रोशन उत्सुक हो कर पूछने लगा.

पामू ने अपना बक्सा खोल कर दिखाया. रोशन ने गौर से देखा. कुछ काम तो कमाल का कर रखा था पामू ने. उस ने छोटेछोटे प्रतीक बना रखे थे.

‘‘ये किस सांचे में ढाल कर बनाए?’’ रोशन कुछ पेपरवेट देखने लगा.

‘‘नहींनहीं रोशन, कोई भी सांचा नहीं है. अपनी कल्पना से ढाला है इन को. मगर यह तो सब को समझ नहीं आता है न,’’ कह कर पामू किसी गहरी सोच में डूब गया था.

‘‘पामू, तू इतने दिन इधर कैसे रहा? जब कमाई नहीं तो फिर रोटीपानी कैसे किया सब?’’

‘‘वह सब हो गया था.’’

‘‘कैसे मगर?’’ रोशन ने पूछा.

‘‘वह बस्तरिया बाजार है न, उधर गिटार बजाते हैं लड़के. उन के लिए नाचता था मैं, तो रोज का 200 रुपए हो जाता था. खाना वे ही देते थे, बस सोने का किसी न किसी जगह इंतजाम हो जाता था,’’ पामू ने हंस कर कहा.

वह आगे बोला, ‘‘2 दिन पहले ही इधर आया हूं. इधर होटल में किराया कम है न,’’ मगर ऐसा उस ने अपनी मजबूरी और परेशानी छिपाने के लिए कहा था. उस का यह अंदाज पुराना था और यह तो रोशन ने खूब भांप ही लिया था.

‘‘पामू, अभी तो शुरुआत है. मगर यहां कभीकभार ऐसे टूरिस्ट मिल जाते हैं, जो कलाकार को मुंहमांगी रकम देते हैं,’’ रोशन बोला.

‘‘हांहां, ऐसा हुआ है न मेरे साथ. 2 बार हुआ है. मुझे रुपया भी दिया और सैंडविच भी खिलाया, इसलिए तो मुझे भरोसा है,’’ पामू अब भी उम्मीद का दामन छोड़ना नहीं चाहता था.

‘‘कल मिलते हैं,’’ कह कर रोशन ने पामू से विदा ली.

रोशन झलक से फोन पर बात करता हुआ चला जा रहा था. ?ालक के ब्याह को अब 4 साल से भी ऊपर हो चले थे, इसलिए झलक अब एकदम बिंदास रहती थी. बच्चे उस ने पैदा किए नहीं. अपने तरीके से दिल से जिंदगी जीने लगी थी झलक.

रोशन ने बातों ही बातों में झलक को पामू की दशा का भी सच्चा हाल बयान कर दिया था. झलक ने इस बात को काफी गंभीरता से सुना.

झलक के साथ एक कमाल की बात हो गई थी. वह अब अपनी जिंदगी को खेल सम?ाने लगी थी. इसी खेलखेल में एक दिन झलक लौटरी के 50 टिकट खरीद कर ले आई. हर टिकट 500 रुपए का था. मगर कमाल की बात यह हुई कि 5 लाख का नकद इनाम झलक के नाम खुल गया. झलक की महिमा ही बढ़ गई.

मगर झलक भी ऐसी मजेदार कि उस ने एक रुपया तक न रखा. तथाकथित पति को ही सारे नोट थमा दिए. बस, उस घटना के बाद तो जैसे जादू ही हो गया था. अब ससुराल में झलक को कोई न रोकता था, न टोकता था.

झलक भी कोई बावली न थी कि पागलपंथी ही करने लगे. आचरण तो उस का संतुलित ही था, मगर अब वह अपने तरीके से बड़े फैसले लेने लग गई थी.

मिसाल के तौर पर झलक का देवर अपनी गर्लफ्रैंड को काठमांडू घुमाने ले जाना चाहता था. झलक ने उस की इस इच्छा का मान रखा. उस के पास पूरे 20 रुपए न थे, तो झलक ने उसे 20,000 रुपए दिए.

देवर झलक का मुरीद बन गया था. बात बाद में खुल गई थी. सारे परिवार को भी पता चल गया, मगर झलक पर किसी ने उंगली तक न उठाई. उस की पहली वजह यह कि झलक ने जो किया अपने परिवार के लिए किया. दूसरी और जोरदार वजह यह कि उसी गर्लफ्रैंड से देवर की सगाई और शादी भी हो गई थी.

अब देवरदेवरानी झलक की मुट्ठी में बंद थे, मगर झलक ने अपनी मुट्ठी कभी कस कर रखी ही नहीं.

इस बार रोशन की बात का मतलब महसूस कर झलक ने अपने तेज और बल का इस्तेमाल कर लिया. एक ही घंटे की चर्चा में देवरदेवरानी ने हां भर दी. गोवा जा कर और वहां का मुआयना कर के एक छोटा होटल खोलने की इच्छा बन गई उन की.

उसी रात को तीनों रवाना हो गए. झलक और देवरानी पीछे बैठे. आगे की सीट पर कार ड्राइवर और देवर. कार ड्राइवर भी इतना होशियार था कि उस ने तय समय से 4 घंटे पहले गोवा पहुंचा दिया.

कार्निवाल की धूम से सारा गोवा जवांजवां था. झलक अपने हनीमून के बाद अब आई थी, मगर कैंडोलिम
तो उस ने आज ही देखा था. रोशन से मुलाकात हो गई. खूब गपशप हुई.

इस दफा रोशन को यह वाली झलक कुछ अलगअलग सी लगी. मगर रोशन कुछ ही देर में सामान्य भी हो गया था, क्योंकि अब वह खुद भी पहले वाला रोशन तो था नहीं.

24 घंटे बाद देवरदेवरानी ने रोशन की मदद से कुछेक जगह बातचीत कर ली थी. एक बनाबनाया होटल मिल रहा था. थोड़ी मरम्मत की दर कार थी. उस की जिम्मेदारी रोशन ने उठा ली थी.

धीरेधीरे होटल की सजावट के लिए पामू को और्डर मिल गया था. पामू को तो जैसे मनचाही मुराद मिली, बिन मांगे मोती मिले.

रोशन ने पामू को ठीक से समझा दिया था. उस के लिए रहने और खाने का मुफ्त इंतजाम हो गया था. इस के अलावा टीम लगा कर कलाकृति बनाने का अलग से एडवांस मिल रहा था. इस तरह अब एक साल तक पामू को इधर ही काम करना था.

झलक ने पामू की जीवन नैया भी डगमग होने से बचा ली थी. इस डील को पक्का कर के यह तीनों अब लौट रहे थे. रोशन ने हाथ हिला कर वापस जाती झलक के चेहरे को गौर से देखा था.

रोशन को लगा जैसे उस की जन्मजन्मांतर की पत्नी झलक उस से कह रही है, ‘रोशन, तुम मुझे भी लौटा कर ले चलो. चलो, हम गोमती के पुल के नीचे बैठ कर समोसाजलेबी खाएं. अपनी वहीं बातें करें.’

रोशन का हिलता हुआ हाथ एकाएक रुक गया. उस के कान में झनझनाहट सी हुई. लगा, जैसे उस से कोई फुसफुसा कर कह रहा था. इस झलक ने रोशन की जिंदगी संवारने और अपनी बरबाद करने के लिए यह जन्म लिया है. Hindi Family Story

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