लखनऊ शहर से 200 किलोमीटर दूर ट्री इलाके में बसा हुआ बंजारापुर नामक गांव, जहां पर तकरीबन हर जाति के लोग रहते थे. उसी गांव में करीम नाम का एक दर्जी था, जिस की एक खूबसूरत बेटी थी शीबा.
शीबा जवान हो चुकी थी. उस के नैननक्श तीखे थे. उस की आंखें कुछकुछ नीली और भूरे रंग की थीं और वह बिलकुल किसी अफगानी लड़की की तरह लगती थी.
शीबा की उभारदार छाती और पतली कमर किसी का भी दिल धड़काने के लिए काफी थी. पूरे गांव के कुंआरे शीबा के गदराए जिस्म को देख कर आहें भरते थे.
शीबा जब भी घर में लगे एक बड़े से आईने के सामने अपने गोरे और भरे हुए बदन को देखती तो खुद ही जोश में भर उठती थी, पर शीबा की नजर जैसे ही उस के जिस्म की गहराइयों और ऊंचाइयों से होते हुए जब उस के अपने चेहरे तक पहुंचती थी, तो वह खुद ही अपना मुंह फेर लेती थी, जिस की वजह थी चेचक के दाग.
शीबा जब भी घर से बाहर निकलती, तब मनचले उस पर फिकरे कसते. एक दिन की बात है. दीपू बोला, ‘‘अरे, कभी हमें भी तो पलट कर देख लो जानेमन…’’
‘‘जाने दे दीपू, देखा नहीं तुम ने इस के चेहरे पर कितने दाग हैं…’’ आसिफ ने कहा.
‘‘अरे, तो क्या हुआ… मुंह पर किसी फिल्म हीरोइन का पोस्टर लगा कर काम चला लेंगे…’’ दीपू ने कहा और फिर हवा में हंसने की भद्दी आवाजें गूंजने लगीं.
दाग वाली बात शीबा को अंदर तक कचोट जाती. वह किसी भी कीमत पर इन दागों से छुटकारा पाना चाहती थी, इसीलिए वह गांव के नुक्कड़ पर बने एक मैडिकल स्टोर से इन दागों को जड़ से खत्म करने वाली दवा लाती थी.
इसी गांव में रघु नाम का एक लड़का था, जिस के पिताजी गांव के प्रधान के खेतों में बीज, पानी, खाद वगैरह का ध्यान रखते और खेत में गश्त देते थे.
एक बार जब शीबा मैडिकल स्टोर से अपने चेहरे के दागों के लिए दवा लेने आई, तो रघु भी वहीं खड़ा हुआ था. शीबा ने मैडिकल स्टोर वाले से कहा, ‘‘भैया, मैं आप की दी हुई कई क्रीम और लोशन चेहरे पर लगा चुकी हूं, पर दाग कम ही नहीं हो रहे हैं.’’
शीबा की बात सुन कर रघु बोल पड़ा, ‘‘वैसे, सच कहूं तो आप दाग होने पर भी उतनी ही खूबसूरत दिखती हैं.’’
शीबा रघु की बात सुन कर चौंकी तो जरूर, पर उस के जवान दिल में एक मीठी सी लहर भी दौड़ गई. उसे पहली बार किसी ने खूबसूरत कहा था.
‘‘मेरी बदसूरती का मजाक तो मत उड़ाइए…’’
‘‘किस ने कहा कि आप बदसूरत हैं… असली खूबसूरती तो मन के अंदर होती है… चेहरे की खूबसूरती तो चार दिन में ढल ही जाती है,’’ रघु बोला.
शीबा ने नजर उठा कर देखा, तो रघु उस की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. रघु की नजरों में शीबा को प्यार के साथसाथ ईमानदारी की झलक भी दिखाई दी थी, इसीलिए वह रघु की बात पर सिर्फ मुसकरा कर रह गई.
इस पहली मुलाकात के बाद रघु और शीबा में कई बार मिलना हुआ और दोनों में प्यार पनपने लगा, फिर उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें तक खा लीं.
वे दोनों अलग जातियों से थे. उन्होंने सोचा कि सही समय आने पर ही अपने घरों में शादी की बात करेंगे, क्योंकि मामला 2 अलगअलग मजहबों का भी था.
एक दिन शीबा ने रघु को बताया कि कल उस के घर में एक आदमी आया था, जो रिश्ते कराने का काम करता है और उस ने पेशगी के तौर पर अब्बू को पैसे भी दिए हैं कि अब्बू उस की शादी एक ऐसे आदमी के साथ कर दें, जिस की उम्र 40 साल है और वह पहले ही
2 औरतों को तलाक दे चुका है. अब्बू भी शीबा की शादी उस तलाकशुदा से कराने के लिए राजी हो गए हैं, क्योंकि उन की समझ में दाग वाले चेहरे वाली लड़की से कोई शादी नहीं करेगा, इसलिए वे भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहते हैं.
रघु और शीबा ने अपने प्यार और शादी करने की बात अगले दिन ही अपने घरों में बताने की सोची.
अगले दिन जब शीबा और रघु एकसाथ खेत की तरफ से आ रहे थे, तो गांव के कुछ दबंग लड़कों, जो अपनेआप को समाज और धर्म का ठेकेदार मानते थे, ने शीबा के साथ छेड़छाड़ की. रघु ने उन लोगों के बीच से निकलने की कोशिश की.
‘‘क्यों री शीबा, हमारे आवाज देने पर तो तू पलट कर देखती भी नहीं है और इस दूसरी जाति वाले के साथ अपना मुंह काला कर रही है,’’ उन में से एक लंबा लड़का शहरयार बोला.
रघु ने खतरा भांपा और बात बनाते हुए वहां से निकलना ही उचित समझा.
‘‘अबे, भागते कहां हो… तुम लोगों की वजह से ही 2 जातियों में दंगा फैलता है…’’ दूसरे शोहदे ने कहा.
‘‘पर भैया, हम ने कुछ गलत नहीं किया है,’’ रघु ने उन लोगों की तरफ देखते हुए कहा, पर दबंग लड़कों ने सिर्फ इस बात के लिए रघु और शीबा के साथ मारपीट शुरू कर दी, क्योंकि वे दोनों अलगअलग जातिधर्म से होते हुए भी एकदूसरे से प्यार करते थे.
उन दबंगों ने जब जी भर कर इन दोनों को पीट लिया, तो शीबा को उस के अब्बू के सामने ला कर पटक दिया और शहरयार बोला, ‘‘चाचा, लो संभालो अपनी लड़की को… गैरजाति वाले लड़के के साथ दोबारा देख लिया, तो फिर यह किसी और को मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएगी.’’
अब्बू ने शीबा को घर के अंदर भेज दिया और आननफानन में उस अधेड़ आदमी को फोन कर दिया कि वह जल्द से जल्द आए और शीबा से निकाह करा कर ले जाए. कमरे के अंदर मौजूद शीबा को भी यह बात पता चली तो वह रघु से मिलने के लिए तड़प उठी.
रघु के माथे और शरीर की चोट देख कर उस के पिताजी बहुत परेशान हो गए, पर रघु ने उन्हें बताया कि थोड़ी सी चोट है. आप को ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है.
रात में सिसकते हुए शीबा ने अपने पास छिपा कर रखे हुए मोबाइल फोन से रघु को अपनी आपबीती सुनाई.
‘‘देखो रघु, मैं तुम से प्यार करती हूं और किसी भी कीमत पर तुम से ही शादी करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं, पर क्या तुम मुझे मेरे चेहरे के दागों के साथ मंजूर कर सकोगे?’’ शीबा ने पूछा.
‘‘फिर वही बात… मेरी मुहब्बत तुम्हें दिल्लगी क्यों लग रही है? पर जातपांत और धर्म के फेर में पड़े ये गांव वाले हमें यहां तो मिलने नहीं देंगे…’’ रघु ने कहा.
‘‘फिर हम क्या करें…?’’ शीबा ने पूछा.
‘‘पहले तो हमें भाग कर शहर जाना होगा. वहां पर मेरा एक दोस्त है. वहीं जा कर हम शादी कर लेंगे.’’
इस के बाद शीबा और रघु ने आगे का प्लान बनाया और तय समय पर दोनों ने रात के अंधेरे में अपना घर छोड़ दिया.
हालांकि शीबा और रघु रात के अंधेरे में निकले थे, पर उन के भागने की खबर शहरयार को लग गई और वह अपने गुरगों को इकट्ठा कर के उन दोनों का पीछा करने लगा.
शीबा और रघु को अहसास हो गया कि उन का पीछा किया जा रहा है, तो वे दोनों चलने के बजाय दौड़ने लगे और हांफतेहांफते शहर की ओर जाने वाली सड़क पर पहुंचे.
शीबा डर और थकान के चलते सड़क के किनारे बैठ गई. वे दोनों किसी सवारी का इंतजार करने लगे, जो उन्हें शहर तक पहुंचा सके.
अभी कुछ ही देर हुई थी कि एक कार वहां से गुजरी. रघु के हाथ देने पर कार रुक गई. रघु ने हांफते हुए अंदर झांक कर देखा तो उस में एक बड़ीबड़ी मूंछों वाला आदमी बैठा हुआ था, जो देखने में ही गुंडाटाइप का लग रहा था.
रघु ने उस आदमी से शहर तक ले चलने की गुहार, की तो कार चालक ने अपनी चुभती नजर शीबा के चेहरे पर डाली और मुसकराते हुए उन्हें कार में बिठा लिया.
कार में बैठते ही रघु और शीबा की जान में जान आ गई कि अब वे महफूज हो कर शहर पहुंच जाएंगे, पर बीचबीच में उस मूंछ वाले का शीबा को यों घूरना रघु को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था.
‘कहीं यह कोई गुंडा तो नहीं, जो रास्ते में शीबा के साथ गलत काम करने पर आमादा हो जाए…’ बैग में पड़े एक छोटे से चाकू को बाहर निकाल कर सोचते हुए रघु ने अपने हाथ की पकड़ को मजबूत कर लिया था. उस ने शीबा को तकरीबन अपने सीने में भींच रखा था.
‘‘तो तुम दोनों घर से भाग कर जा रहे हो?’’ मूंछ वाले ने पूछा.
‘‘जी…’’ रघु सिर्फ इतना ही बोला.
‘‘प्यार करते हो एकदूसरे से?’’ मूंछ वाले ने सवाल दागा.
‘‘बहुत ज्यादा,’’ रघु बोला.
‘‘तो फिर गांव में क्या दिक्कत थी?’’ मूंछ वाले ने शीबा को घूरते हुए पूछा, तो रघु का गुस्सा भड़कने लगा, पर उस ने मामले की नजाकत को समझते हुए नरमी से जवाब देना ही ठीक समझा.
‘‘हम दोनों अलगअलग जाति के हैं, इसलिए गांव वाले हमें एक नहीं होने देना चाहते, पर हम एकदूसरे के बिना जी
नहीं पाएंगे,’’ रघु ने एक सांस में ही कह दिया था.
‘‘घबराओ नहीं…’’ अब मूंछ वाले की आवाज में मिठास थी, ‘‘मैं ने तुम लोगों से पूछताछ इसलिए की है कि कहीं तुम धोखे से तो नहीं इस लड़की को शहर ले जा रहे हो… मैं शहर के हाईकोर्ट में एक वकील हूं और लोग मुझे
घोष बाबू के नाम से जानते हैं. मेरे होते हुए तुम्हें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’
घोष बाबू की बातें सुन कर रघु और शीबा की आंखें छलछला आईं.
घोष बाबू एक ऐसे वकील थे, जो अपने काम को सोशल मीडिया द्वारा प्रचारित करने में पीछे नहीं हटते थे और वे ऐसे मामले ढूंढ़ते थे, जिन से समाज की सेवा भी हो सके.
रघु और शीबा का मामला भी ऐसा ही था. घोष बाबू उन दोनों को ले कर अपने घर पहुंचे और शीबा और रघु को खाना खिलाया और उन्हें भरोसा दिलाया कि वे उन दोनों की शादी इस तरह से करवाएंगे, जो धर्म की दीवारों के पार होगी और कोई भी उन की इस शादी को तोड़ नहीं पाएगा.
अगले दिन रघु और शीबा नहाधो कर बाहर आए, तो उन के बदन पर शादी के कपड़े थे और वे दोनों घोष बाबू के साथ हाईकोर्ट पहुंचे, जहां पर घोष बाबू ने एक छोटे से स्टेज पर सारा इंतजाम किया हुआ था.
शीबा और रघु की शादी को कानूनी मंजूरी देने की कार्यवाही की शुरुआत कर दी गई थी. घोष बाबू ने स्टेज पर रघु और शीबा को खड़ा कर के उन दोनों के हाथों में वह किताब दी जिसे हम ‘भारत का संविधान’ कहते हैं.
रघु और शीबा ने आज मजहब की दीवारें तोड़ कर भारत के संविधान की शपथ ले कर साथ जीनेमरने की कसम खा ली थी.
इस के बाद घोष बाबू ने स्टेज पर बोलना शुरू किया, ‘‘दोस्तो, यह शादी इसलिए भी खास है, क्योंकि ऐसी शादियों से दहेज की कुरीति दूर होगी और फालतू के आडंबरों की भी कोई जरूरत नहीं होगी, इसलिए आज समाज को संविधान की शपथ ले कर इस तरह की शादियों को बढ़ावा देना चाहिए,’’ यह कहते हुए घोष बाबू के हाथ रघु और शीबा की तरफ आशीर्वाद की मुद्रा में उठ गए थे.
घोष बाबू ने इस शादी को सोशल मीडिया पर भी खूब प्रचारित करवाया. लोकल अखबार वालों ने भी इस खबर को अपनेअपने अखबार में जगह दी और सभी लोगों ने इस तरह की शादी की खूब तारीफ की.
शाम को कुछ टैलीविजन चैनलों पर भी रघु और शीबा के इंटरव्यू लाइव हो रहे थे. शीबा के दाग वाले चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, पर उस के चेहरे पर जीवनसाथी मिलने की खुशी साफ देखी जा सकती थी.
रघु ने अपनी जीविका चलाने के लिए शहर में काम भी ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. उसे काम की तलाश में लगा देख कर घोष बाबू ने उसे अपने साथ ही हाथ बंटाने में लगा लिया.
तकरीबन 3 महीने तक घोष बाबू के घर पर रुकने के बाद शीबा और रघु ने एक बार अपने घर वालों से मिलने के लिए अपने गांव जाना चाहा, तो घोष बाबू ने उन्हें खुले मन से इजाजत दे दी और उन दोनों के हाथों में ‘भारत का संविधान’ दिया और यह भी कहा कि कभी भी उन्हें किसी भी चीज की जरूरत हो, तो वे बेझिझक उन के घर आ सकते हैं.
रघु और शीबा के गांव पहुंचने की खबर तेजी से फैल गई और कई सारे लोग उन के इर्दगिर्द जमा हो गए.
शीबा ने अपने हाथों में मजबूती से भारत का सविधान पकड़ा हुआ था. उन दोनों के एक ओर मुल्लामौलवी थे, तो दूसरी ओर पंडितपुरोहित. एक ओर शहरयार का गैंग भी खड़ा हुआ उन्हें घूर रहा था.
‘‘आखिर तुम दोनों किस धर्म के हो और किस धर्म में रह कर तुम दोनों ने एकदूसरे से शादी रचाई है?’’ भीड़ से एक आवाज आई.
‘‘हम दोनों भारत के नागरिक हैं और जातपांत से ऊपर उठ कर हम ने इस संविधान की कसम ले कर शादी रचाई है,’’ रघु ने भी ऊंची आवाज में कहा.
‘‘ये सब शहरी और फिल्मी बातें मत करो,’’ भीड़ से कोई बोला.
‘‘यह हमारा गांव है और यहां पर हमारे नियमकायदे और हमारे ही कानून चलेंगे… यहां एक ही संविधान है और वह है ताकत का… साथियो, इस गैरजाति की लड़की ने हमारी जाति में शादी कर के हमारे धर्म को नष्ट किया है… इसे सबक सिखाना होगा.’’
पंडितों की भीड़ से कुछ हाथ निकले और शीबा को एक खेत की तरफ खींच कर ले गए, जबकि शहरयार और उस के गैंग ने रघु को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया था.
‘‘इस ने हमारी जाति की लड़की को फुसलाया है… मारो इसे…’’
धर्मांध भीड़ को गैरजाति की लड़की मंजूर नहीं थी, पर उसी लड़की की इज्जत लूट लेने में उन लोगों का धर्म नष्ट नहीं हो रहा था.
शीबा के दाग वाले चेहरे पर अब दांतों के निशान थे. एक लड़की के रेप के रूप में जब भीड़ अपना गुस्सा निकाल चुकी थी, तब शीबा को होश आया कि वह पूरी तरह से नंगी थी. तन ढकने के लिए उस के आसपास कुछ नहीं था. पलकों से आंसू ढुलक रहे थे, शीबा के बदन में कुछ हरकत हुई. उस ने अपने बदन को ढकना चाहा ,पर उस के कपड़े तो तारतार हो चुके थे.
शीबा के पास ही एक किताब पढ़ी थी, जिस पर लिखा था, ‘भारत का संविधान’. शीबा ने कांपते हाथों से संविधान के पेज फाड़े और उनसे अपना जिस्म ढकने की नाकाम कोशिश की.
शीबा की आंखें रघु को ढूंढ़ रही थीं. उस से चला नहीं जा रहा था, पर वह रघु से मिलना चाह रही थी, उस के कंधे पर सिर रख कर रोना चाह रही थी और उसे बताना चाह रही थी कि रघु जल्दी से उसे शहर ले चले, अब शीबा को इस गांव में नहीं आना.
शीबा लंगड़ाते हुए वहां आई, जहां रघु था. पर, अब वहां पर रघु की जगह उस की लाश पड़ी हुई थी.
नीरज कुमार मिश्रा