Hindi Story: सुबह के सूरज की लाली आसमान पर फैल रही थी और हमेशा की तरह अदरक वाली चाय की चुस्कियों का आनंद लिया जा रहा था कि एक वाक्य गूंजा- “सुनो मीनू, आज नाश्ता कर के मुझे मोहन के साथ उन के लिए नया मकान देखने जाना है.”
वरुण ने यह कहा ही था कि मीनू उस का चेहरा देखती ही रह गई. “मतलब, मकान देखने, क्यों, उन के पास है न घर जहां वे 10 वर्षों से रह रहे हैं?” मीनू ने आश्चर्य प्रकट करते पूछ लिया.
“हां मीनू, वह मकान पुराने समय का है. तब वे एक साधारण बीमा दलाल थे. पर अब तो वे एक सफल कारोबारी हो गए हैं. खूब रुपया बरस रहा है. अब उन के परिचय में नएनए लोग जुड़ रहे हैं. अपने जैसे ऊंचेऊंचे लोगों के साथ ठाठ से रोब जमाना है तो अब उन को घर भी बड़ा चाहिए. मीनू, आर्थिक सबलता आज एक जादुई ताकत बन गई है. यह हमारे जीवन को उस के सभी सिद्धांतों से परे ले जाती है जहां हम मन के भावों में बेपरवाह भिगोना चाहते हैं और उन में अपने मन जैसे ही किसी साथी को भागीदार बनाना चाहते हैं.”
“हूं, सही कहा. बिलकुल सही.”
वरुण ने आगे बताया कि वह जाना नहीं चाहता था पर फोन कर के उन्होंने निवेदन किया है.
“अच्छा, फिर तो जाना चाहिए,” मीनू यह जवाब दे कर मन ही मन सोचने लगी कि वह मोहन के परिवार को 10 वर्षों से बखूबी जानती थी. एक छोटा सा घर और साधारण जीवन, मगर कितना आनंद था उस जीवन में. वे सब हर रविवार को पिकनिक के लिए जाते, ‘अपना बाजार’ से खरीदारी कर के खुशीखुशी लौट आते. लेकिन पिछले 2 वर्ष ऐसे निकले कि मोहन के दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे.
वे और उन की पत्नी दोनों ने मिल कर टैंट एंड डैकोरेटर्स का काम शुरू कर दिया था. अब दोनों हर समय रूपया जमा कर रहे थे, भड़कीली, शानदार दावतों में शामिल हो रहे थे और मंहगी दावतें दे भी रहे थे कभी शहर के मेयर को कभी कमिश्नर को तो कभी रेलवे और नगर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन को.
मीनू देख रही थी कि वे दोनों किस तरह इस कुटिल बाजार की धूर्तता का शिकार हो रहे थे. वे एक जाल में फंस रहे थे. उन का हर काम अब रुपएपैसे से जुड़ा था. उन की यही मजबूरी हो गई थी, इसीलिए अब उन के संपर्क में न तो सीधेसादे दोस्त थे न ही उन की दिनचर्या सहज व सरल थी.
वापस लौट कर वरुण ने मीनू को बताया, “बहुत ही पौश इलाके में घर फाइनल कर दिया है.” मीनू चकित थी कि वरुण का तो ऐसा रुझान ही नहीं है, तब भी उन्होंने वरुण को बुलाया. उसे और वरुण को तो महंगे घरों की जानकारी है ही नहीं. उस ने अपने मन में उठ रहा यह सवाल पूछ लिया तो वरुण ने जवाब दिया, “अरे, मुझे वे अपना लकी चार्म मानते हैं, इसलिए बुलाया. वहां पर दोचार नामचीन कारोबारी उन के साथ थे.”
“अच्छा,” मीनू को यह बात सही लगी. ऐसा पहले भी हुआ था जब मोहन ने अपना दफ्तर शुरू किया था.
“मीनू, उन का घर बिलकुल फिल्मी स्टाइल में तैयार किया गया है. एक चर्चित अभिनेत्री है न, बिलकुल उसी के घर की फोटोकौपी है.”
“अच्छा,” कह कर मीनू ने प्रतिक्रिया दी पर वह आगे और कुछ भी न बोली. बस, मन में सोचती रही कि हर इंसान की संरचना अलग है, दिमागी रसायन भी एकदूसरे से बिलकुल जुदा. ऐसे में लोकप्रिय अभिनेता का बाथरूम और बाथटब किसी अन्य के लिए कैसे मुफीद हो सकता है? अगर अभिनेत्री जैसा वार्डरोब नहीं होगा तो बाजार यह कहेगा कि आप को तो पहननेओढ़ने तक का सलीका नहीं मालूम.
वह अपनेआप से कहती रही कि घर तो हमारे सिर पर एक आशीष होता है. थके तनमन को एक कोमल सी थपकी कब पसंद नहीं. हम को बहुत सुकून देने वाले इस घर के साथ हमारी चुस्ती, खुमारी, गपशप, उपलब्धि, चहलपहल, बेचैनी, नींद, करवट, सपने आदि के खट्टेमीठे सारे ही अनुभव गूंजा करते हैं. हमारे मुंदे हुए 2 नैना और उन के सपनों का अथाह संसार हमेशा गहरी नींद में कहे गए कुछ साफ व धुंधले शब्द सब एक घर की स्मृतियों में हमेशाहमेशा सहेजे हुए रहते हैं. वहां नकल का क्या काम भला? खैर, सब की अपनी सोच है.
“तो फिर, हम भी एक नया घर बुक करा लें?” वरुण ने उस की तरफ देख कर पूछा तो मीनू ने कहा, “वरुण, मेरे लिए तो यह घर पर्याप्त है. मुझे किसी भी तरह का कोई दिखावा या आडंबर नहीं करना है. हां, अगर तुम को यह घर असहज लगता हो तो वह अलग बात है.”
यह सुन कर वरुण जोर से हंस पड़ा और मुसकराते हुए बोला, “मीनू, इस का मतलब यह हुआ कि हम दोनों एक सी सोच रखते हैं. देखो न, तमाम कोशिश कर के, लोन जुटा कर और अपने
गाढे़पसीने की कमाई से हासिल यह घरौंदा हमारी हर रुचि को दिखाता है. तुम ने छत पर इतनी सुंदर नर्सरी बना रखी है कि बड़ेबड़े बंगले वाले तुम से प्रेरणा लेते हैं कि घर को कम जगह में भी शानदार कैसे बनाया जा सकता है. यही घर हम दोनों की वास्तविकता है.”
मीनू को यह सुन कर बहुत तसल्ली मिली और वह सीढ़ियां चढ़ कर छत पर चली गई. शाम को महाविद्यालय के कुछ शोध छात्र आ कर उस के पौधे देख अपनी रिपोर्ट तैयार करना चाहते थे.
मीनू इस तरह खूब व्यस्त रहती थी. रोजाना 4 घंटे का समय वह छत पर इन पौधों को दिया करती थी. पौधे भी ऐसे सुंदर और स्वस्थ थे कि देखते ही मन मोह लेते थे. उन्हें बारबार देख कर भी मन नहीं भरता था.
दिन यों ही सार्थक ढंग से गुजर रहे थे कि कुछ दिनों बाद मोहन ने फोन किया. उन के बेहद आग्रह पर मीनू और वरुण उन का आशियाना देखने गए. बहुत दुख हुआ कि उन के इतने अच्छे दोस्त अब एक अजीबोगरीब बनावटी घर में रहने लगे थे जो उन दोनों पर थोपा हुआ सा लगता था, उस पर तुर्रा यह कि वे दोनों, उस को मेरा आशियाना, मेरे सपनों का घर कहते हुए जरा सा भी न हिचक रहे, न अटक रहे थे.
मीनू और वरुण वहां अधिक देर तक नहीं रुके, जल्द वापस आ गए. जैसे ही घर पहुंचे, तो स्थानीय टीवी चैनल वाले गेट पर ही मिल गए. कालोनी वालों ने नई प्राकृतिक स्टोरी के लिए मीनू का नाम प्रस्तावित किया था. इसलिए वे मिलने आए थे और उस की छत पर जा कर नर्सरी का वीडियो बनाना चाहते थे.
उन की बात सुन कर मीनू दंग रह गई. उस का प्रकृतिप्रेम आज उस को कितनाकुछ दे रहा था. साथ ही, कालोनीवासियों का कितना लाड़प्यार था. वरना, वह तो ब्रेकिंग न्यूज, सनसनी खबर आदि से हमेशा दूर ही भागती थी.
मीनू ने टीवी चैनल की पूरी टीम को कुछ गमले उपहार में दिए. वे सब इतने खुश हो गए जैसे आज उन को सोनाचांदी ही मिल गया. वे जातेजाते यह बोलते गए कि “सच कहा जाए तो यह जीवन कुछ सीमित सांसों का एक खेल ही है जो कभी भी किसी समय भी खत्म हो सकता
है. इस खेल को अपने दिल की तरंगोंउमंगों के अनुसार खेला, तो शानदार है. और यही सही भी है. आप एक बेहतरीन जीवन जी रही हैं मीनू जी.”
यह सुन कर मीनू मन ही मन बहुत शरमा गई.
टीवी पर अपनी मां की स्टोरी देख कर बच्चे बहुत खुश हो गए. मीनू तो उन की नजर में एक हीरोइन हो गई थी.
वैसे भी, दोनों बच्चे अपने स्कूल में मां मीनू के कारण भी जाने जाते थे. एक बार भारी बारिश में पूरे शहर की नर्सरी बंद थीं. तब एक समारोह के लिए मीनू ने ही ताजे फूलों के गुलदस्ते बना कर दिए थे. उस दिन तो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भी बारबार उन फूलों को छू कर देख रहे थे.
फिर तो स्कूल प्रोजैक्ट वगैरह में उन के दोस्त भागभाग कर मीनू आंटी की छत पर आ जाते और वहां पर 200 गमलों से अपने लिए खजाना बटोर कर ले जाते. इसी तरह कुछ और दिन गुजर गए.
एक शाम मोहन सपत्नीक अचानक उन के घर पर आ गए. उन का उतरा हुआ चेहरा व उन की उदास आवाज से मीनू और वरुण चौंक गए कि आखिर माजरा क्या है? पता लगा कि उन को करोड़ों की चपत लग गई थी.
मामला यह था कि 3 अलगअलग विशाल सरकारी समारोह होने थे. उन आयोजनों मे किसी दलाल के भरोसे इन्होंने सप्ताहभर की सजावट का सामान भिजवाया और उस दलाल ने इन से बिल भी बनवा लिया यह कह कर कि भुगतान जल्दी करवा दूंगा. लंबाचौड़ा भुगतान होना था. पर अब भुगतान ले कर वह भूमिगत हो गया और इन की हालत पतली है. इन को करोड़ों की भारी चपत लग गई. उन का पिछला भी उसी दलाल के पास बहुत बकाया पड़ा था.
3 दिनों पहले ही मोहन ने मेयर की दावत में भी 2 लाख रुपए अपनी जेब से खर्च कर दिए थे यह सोच कर कि करोड़ रुपए का भुगतान आ ही रहा है. अब उन दोनों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें.
उस समय वहां मीनू के बडे़ भाई भी शिमला से आए हुए थे. वे भी यह सब कहानी सुन कर भौचक्के रह गए. मीनू ने उन को मन शांत रखने की सलाह दी और पहले ठंडा पानी व फिर कड़क चाय भी पिलाई. उस के बाद मीनू के बडे़ भाई ने उन को विस्तार से बताया कि लगभग 30 वर्षों से वे भी टैंट तथा डैकोरेशन का कारोबार कर रहे हैं पर आज तक कोई गड़बड़ी नहीं हुई.
“अच्छा,” मोहन उन को अचंभे से देखने लगे.
“जी हां, मैं सरकारी और्डर तब लेता हूं जब सरकारी विभाग से लिखित कागज मिल जाता है. इस तरह सब काम पारदर्शी होता है. दलाल वगैरह के लालच में बंधने को तत्पर हम अपने कारोबार के सिद्धांत का मौलिक रूप मिटा रहे होते हैं. कारोबार में इस तरह साख खराब हो जाती है. लोग भरोसा नहीं करते. और फिर, अपनेअपने विचार हैं. जल्दीजल्दी खूब रुपया कमाना तो मेरा शौक नहीं रहा मगर आप को हंसी आएगी कि 30 लोगों का स्टाफ है, फिर भी 20 लाख रुपए सालाना की आय है. और यह हमारी जरूरत से ज्यादा है. खूब बचत हो जाती है. और मुझे आज तक किसी तिकड़म में नहीं फंसना पडा़.”
“अच्छा,” कह कर वे दोनों चुप सुनते रहे. मीनू को यह दिल से महसूस हुआ कि उन के घर पर कुछ देर रुक कर उन दोनों का मन काफी हलका हो गया था.
कुछ क्षण चुप रहने के बाद “अच्छा, फिर मिलते हैं,” कह कर उन्होंने विदा ली.
मीनू ने साफ देखा कि वे दोनों उस के भाई को कितने आदर व प्रेम से नमस्कार कर रहे थे.
एक महीने बाद एक और खबर मिली. जिस कालोनी में मीनू और वरुण रहते थे वहां एक छोटा सा घर बिकाऊ था. पता लगा कि मोहन वहां रहने लगे थे. मीनू और वरुण दौड़ेदौड़े उन से मिलने गए, तो देख कर दंग रह गए कि वे दोनों खुद ही सारे काम कर रहे थे. इतने सादे और शालीन सजावट वाले घर में वे रहने लगे थे और दोनों के मुखडे़ भी दमक रहे थे.
मीनू और वरुण भी उन की सहायता करने लगे. गपशप भी होती रही. बातोंबातों में उन्होंने बताया कि टैंट वाला पूरा काम उन्होंने अब किसी को बेच दिया है, साथ ही, कीमती मकान भी बेच दिया है. अब उसी पूंजी से कुछ नई शुरुआत होगी. फिर जरा सा रुक कर वे बोले कि कुछ समय तक तो वे दोनों लंबी छुट्टी मनाना चाह रहे हैं.
“ओह, तो आप विदेश जा रहे हैं न,” मीनू ने सहज ही कहा.
“नहीं मीनू, अब वह सब हम को सुकून नहीं देता. फिलहाल तो सिर्फ अच्छी किताबें पढ़ कर और घर पर रह कर चिंतनमनन करना चाहते हैं. जल्द ही कुछ अच्छा होगा, नया काम शुरू करेंगे.”
“हां, हां, बिलकुल होगा,” मीनू उन के सुर में सुर मिला कर बोली.
मीनू मन ही मन उन दोनों के लिए मंगलकामना करने लगी.
एक महीने बाद बड़ा ही सुखद समाचार मिला. वरुण ने बताया कि उन दोनों ने 20 बीघा का खेत खरीद लिया है. उस में वे एक हर्बल बगीचा विकसित कर रहे हैं. जहां गिलोय, तुलसी, नीम आदि की पैदावार होगी.
यह सचमुच एक शानदार काम था प्रकृति की और मानवता की सेवा का. मीनू और वरुण ने मिल कर उन को बधाई दी. अपने उन दोस्तों पर अब उन दोनों को गर्व था.