Short Story: गुजरात के दूरदराज के इलाके में एक गांव है सोनपुर. गांव क्या है तकरीबन एक हजार लोगों की छोटी सी बस्ती है. बाकी दुनिया से थोड़ा कटा और अपने हाल में रमासिमटा गांव. ज्यादातर खेतीबारी पर आश्रित इस गांव के हर परिवार के पास अपने इस्तेमाल के लिए एक या एक से ज्यादा गिर नस्ल की गाय है.
इसी गांव में 14 साल का एक लड़का जिग्नेश रहता है, जो अपने भविष्य के प्रति बिलकुल बेपरवाह है और गांव के 10वीं जमात तक के स्कूल से पास हो जाए, बस इसी आस में दिन काट रहा है.
शरीर से दुबलापतला जिग्नेश जब लंबी और ढीली कमीज पहन कर सड़क पर चलता है, तो दूर से देखने वाले को हैंगर में लटके कपड़े का हवा में लहराने का सा आभास होता है. उस के हमउम्र लड़के खेतीबारी में अपनेआप को रमा चुके थे, पर जिग्नेश को गपें लड़ाने के बाद खेती करना वगैरह में कोई मजा नहीं आता था.
जिग्नेश हमेशा यही सोचता था, ‘अरे जिग्नेश, रोटी तो दो खानी हैं, तो फिर 50 बीघा खेत में इतना पसीना बहा कर क्या फायदा? जब एक पाव दूध से ही भरभर कर डकारें आने लगती हों, तो 10-20 किलो दूध के लालच में गाय, बकरी, भैंसों की सुबह से रात तक सेवा क्यों करना?’
मगर जिग्नेश के सोचने से दुनिया थोड़े ही चलने वाली थी, इसीलिए उस के चिंतित पिता उसे एक दिन सुबह ही भीमा पहलवान के पास ले गए. अपने छोटे से अखाड़े में पिछले 10 साल से पहलवान तैयार कर रहे भीमा भाई जिग्नेश को देखते ही पहले तो हैरान हुए, फिर मुसकराने लगे. बरबस ही उन के मुंह से निकल गई दिल की बात, “इस तीतर को बाज बनाने की सोच रहे हो हेमेंद्र भाई… अरे, यह कमजोर काया किसी काम की नहीं दिख रही.”
बापबेटा खामोश हो कर भीमा पहलवान की बात सुनते रहे. जिग्नेश ने तो घर पर कभी ऊंची आवाज तक न सुनी थी, शायद उस के कमजोर शरीर के चलते पिता उस से बहुत ही नरम आवाज में बात करते थे. यह उसे अभीअभी महसूस हुआ जब भीमा पहलवान ने उस को 2-3 बार सींक सलाई कहा.
खैर, पिता ने अपनी विनती जारी रखी, “इसीलिए तो यहां लाया हूं. आप इसे अपनी शरण में ले कर दुरुस्त कर दीजिए.”
अपनी बेइज्जती होती देख कर भी जिग्नेश कुछ न बोला, बस नजरें फिरा कर समूचे अखाड़े को देखता रहा.
अगले दिन सुबह 5 बजे जब जिग्नेश बेमन से अखाड़े पहुंचा तो वहां उसे 5-6 पहलवान मुगदर चलाते और दंड पेलते नजर आए. उस सिंगल पसली को देखते ही सब एकाएक रुक कर हंसने लगे.
“अरे, देखो तो यह पतंग की डोरी कट कर गलत जगह आ गई लगती है,” एक चेला चुटकी लेते हुए बोला.
“ऊपर वाला इस की हड्डी पर मांस चढ़ाना भूल गया है शायद,” दूसरा ताना भी तुरंत ही आ गया.
जिग्नेश तो बस अपने पिता के कहने पर यहां आया था. वह गुस्से में वहां से मुड़ कर लौटने ही वाला था कि भीमा पहलवान ने आ कर उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, “बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. जाओ जा कर अपने कपड़े उतार लो और लंगोट पहन कर आ जाओ.”
“पर लंगोट तो मेरे पास नहीं है,” जिग्नेश ने मरी आवाज में कहा.
“आज अंडरवियर में शुरू हो जाओ, पर कल से लंगोट पहन कर आना,” भीमा पहलवान की सख्त आवाज ने जिग्नेश को आज्ञा पालन के लिए मजबूर कर दिया और बाकी सब लोग भी अपनी कसरत में लग गए.
पहले दिन की हलकी वर्जिश से ही जिग्नेश का पूरा बदन टूट गया. घर पहुंच कर वह सीधा बिस्तर पर गिरा और बस पड़ गया. मां उस के लिए अजवाइन डाल कर सरसों का गरम तेल ले आईं. तेल मालिश के बाद जिग्नेश को कुछ आराम आया, फिर हलदी मिला गरम दूध भी हाथ में आते ही उस ने गटागट पी लिया. उसे भूख भी तेज लगी थी, लिहाजा जल्दी से स्नान कर रसोईघर में गया और रात की बची रोटी को दूध में डाल कर खा लिया.
मां ने आज बहुत दिनों के बाद जिग्नेश में ऐसी जगी भूख को महसूस किया था. खातेखाते उस ने मां को लंगोट सिलने के लिए कह दिया और पेट की ज्वाला शांत कर 2 घंटे के लिए जो बेसुध हुआ कि फिर घोड़े बेच कर सो गया.
अगली सुबह जिग्नेश को बिस्तर से उठने में ही बड़ी मुश्किल हुई, पर जरा सा लंगड़ाते ही 10-20 कदम चलने के बाद सब कुछ सामान्य लगने लगा. जैसेतैसे ही सही पर वह अखाड़े तक पहुंच ही गया.
भारी कसरत करते पहलवानों को अब जिग्नेश बड़े ध्यान से देखता और अपनी पूरी हिम्मत के साथ कसरत करने की कोशिश करता. हफ्तेभर में उस का शरीर नई तरह से ढलने लगा. अब उस का ध्यान दिनभर शरीर और कसरत पर रहने लगा. प्लास्टिक की 4 बोतलों मे रेत भर कर और उन का मुंह गरम कर के फिर उन को आपस में जोड़ कर 2 डंबल तैयार कर लिए थे, जिन से वह खाली समय में अपने हाथों को मजबूत करने लगा था. लकड़ी के पुराने पाटिए से उस ने खुद ही घर पर अभ्यास के लिए एक कसरती बैंच तैयार कर ली थी. एक मजबूत बांस पर ईंटें बांध कर उसे वेट ट्रेनिंग के लिए तैयार कर लिया और पुरानी साइकिल को एक कोने में जुगाड़ कर स्थायी रूप से जमा दिया. वहां पर कुछ समय पैडल चलाता रहता और अपने पैर मजबूत करता.
इतना ही नहीं, जिग्नेश के घर में रस्सियो की कमी नहीं थी. अपनी ऊंचाई के हिसाब से लकड़ी के 2 हत्थे जोड़ कर उस ने कूदने की मजबूत रस्सी भी तैयार कर दी. कुएं से पानी खींचने वाली पुरानी गिरारी को दालान में नीम के पेड़ की मजबूत टहनी पर बांध कर कसरत करने का एक नया तरीका और खोज लिया.
2 महीने की हाड़तोड़ वर्जिश और बढ़िया खुराक ने जिगनेश की काया में जबरदस्त बदलाव कर दिया. उस की चालढाल, बरताव, बातचीत में अब आत्मविश्वास झलकने लगा था. भीमा भाई और साथी पहलवान भी अब उसे कुश्ती के दांवपेंच समझाने लगे थे. सब उसे ‘तीतर पहलवान’ बुलाते थे. हलके और मजबूत शरीर में फुरती के साथ ने उसे जल्दी ही कुश्ती जीतने वाला पहलवान बना दिया था.
सोनपुर में हर साल एक बड़ा कुश्ती आयोजन होता है. 18 साल से कम उम्र के पहलवान को फाइनल मुकाबला जीतने पर 5,000 रुपए का इनाम मिलना तय है. 4 कुश्तियां शिद्दत से लड़ कर जीतने के बाद आखिरकार ‘तीतर पहलवान’ जिग्नेश को ही बड़ी ट्रॉफी के साथ 5,000 रुपए मिले.
सालभर में ही अब जिग्नेश अपने घर पर अनोखे जिम में दूसरे लड़कों को कसरत करा रहा है. उस के घर के बाहर एक कोने में बोर्ड लगा सब का ध्यान खींचता है, जहां लिखा है, ‘तीतर पहलवान जिम’.