कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- संदीप पांडे

मद्धम गति से गुजरती जिंदगी एकदम जैसे फास्ट फौरवर्ड हो गई. 3 घंटे बाद वे दोनों लगभग 8 किलोमीटर ऊंचेनीचे रास्तों पर पैदल अवलोकन करते थक के चूर हो चुके थे. उन का मार्गदर्शक सोजी भाई अभी उन को और भी घुमाने के लिए तैयार था पर अब  झाडि़यों व पहाडि़यों से पार पाना उन के बस से बाहर की बात लग रही थी. सोजी उन को पास ही एक  झोंपड़ी में ले गया. फर्श पर पसरी बकरी की मींगडियों और उन के लिए नई सी दुर्गंध के बावजूद वे वहीं लेट गए और लेटते ही  झपकी आ गई.

आधे घंटे गहरी नींद के बाद दोनों लगभग साथ उठे तो देखा सोजी नदारद था.  झोंपड़ी के आसपास तलाशने के बाद अब क्या करें, सोच ही रहे थे कि सोजी हाथ और कंधे पर कुछ लादे चला आता नजर आ गया. पास आ कर सामान उतार पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘आप को भूख लग गई होगी. खाने का सामान ले आया हूं. पहले ठंडा पानी पी लो.’’

अचरज से दोनों ने छक कर पानी पिया. अब वे फिर ताजा दम थे. तब तक सोजी ने पत्थर जोड़ कर चूल्हा बना दिया था और सूखी लकडि़यों को उस में डाल कर सुलगाने की तैयारी में था.

‘‘देशी अंडे की सब्जी और मक्की की रोटी बस थोड़ी देर में तैयार हो जाएगी. आप लोग तब तक सामने सौ कदम दूर बहते  झरने से यह चरी और मश्क भर कर ले आओ,’’ बोरे से चरी निकाल थमाते सोजी ने कहा. दोनों पगडंडी से  झरने तक पहुंच गए. गिरते पानी की मद्धिम आवाज कर्णप्रिय संगीत सी आनंदित कर रही थी. अंजुरी में  झरने का पानी भर कर छपाक से मुंह पर मारते ही जैसे नवस्फूर्ति से मन आलोकित हो गया. अभिजीत इस नए संसार में सबकुछ पुराना भूल बैठा था. पानी भर कर मद्धम गति से वे लौटे तो मिट्टी के उलटे तवे पर मक्की की मोटी रोटी सिंक रही थी.

ये भी पढ़ें- वह लड़का: जाने-अनजाने जब सपने देख बैठा जतिन

‘‘आप लोग जीमने बैठो,’’ सोजी ने  2 पत्तल बिछाते हुए कहा.

प्रबल जठराग्नि ने उन्हें बिना विलंब के बैठने पर मजबूर कर दिया. पत्तल के ऊपर रोटी, रोटी के ऊपर गाढ़ी अंडे की सब्जी. अभिजीत के लिए ऐसा भोजन पहली बार ही परोसा गया था. तब तक कुनाल रोटी को सब्जी में मसल कर खाना शुरू कर चुके थे. देखादेखी उस ने भी शुरू किया. मसाला तेज था पर बेहद स्वाद. वैसे भी भूखे पेट जो खाने को मिल जाए, स्वादिष्ठ ही लगता है. भरपेट भोजन के बाद नीम के पेड़ के नीचे अधलेटे उन्हें फिर गहरी नींद आ गई.

कुनाल ने उसे जब उठाया तब तक वह 2 घंटे और सो चुका था. दोपहर में ऐसी नींद शायद ही पहले कभी आई हो.  झोंपड़ी के सामने सोए सोजी को दोनों ने उठाया. तीनों के पूरी तरह जागृत अवस्था में आने के बाद कुनाल ने प्रस्ताव रखा, ‘‘क्यों न हम इस  झोंपड़ी को ही ठिकाना बना लें. अपने सर्वे एरिया के बीचोंबीच है. खाट बिस्तर की व्यवस्था कर लेते हैं. सोजी, यहां जंगली जानवर तो नहीं आते?’’

‘‘लोमड़ीगीदड तो आ जाते हैं, पर ज्यादा खतरे की बात नहीं है. खाट, गद्दे, रजाई की व्यवस्था हो जाएगी.’’

सहमति से निर्णय हो गया कि यहीं डेरा जमा लिया जाए. अगली सुबह साजोसामान और दलबल सहित आने के साथ यह तय हो गया कि रात ठाकुर साहब के यहां गुजार ली जाएगी. ठाकुर साहब की अनुभवी आंखों ने उन के अंदर संस्कारवान इंसान की पहचान कर ली थी, इसलिए घर में जवां बेटी और भतीजी होने के बावजूद 2 शहरी नवयुवकों के घर में रात्रिविश्राम से उन्हें आपत्ति न थी.

अभिजीत को अगली सुबह जल्दी उठने में कोई परेशानी नहीं हुई. समय पर वह कुनाल के साथ सोजी और गांव से तय किए गए 4 मजदूरों के साथ गंतव्य की ओर चल दिए. वहां पहुंचते ही काम शुरू कर दिया गया. डमपी लैवल सैट करने में ही पसीने छूट गए. जैसेतैसे ग्रिड बना, स्टाफ से रीडिंग लेते गणना की तो सबकुछ गलत ही हो रहा था. पहली बार काम करने में सारा तकनीकी ज्ञान समेटने के बावजूद कहां गलती हो रही है, पकड़ से बाहर थी. कुनाल इस सारे प्रकरण में अपनी राय और सहयोग से बचते नजर आ रहे थे.

सुबह से शाम होने को आई थी, पर कहीं से कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा था. इस बीच गूंदे के अचार और कच्चे प्याज के साथ रोटी, जो लेबर अपने साथ लाए थे, से क्षुधापूर्ति कर ली थी. थकहार कर आखिर अभिजीत बोला, ‘‘बौस, ऐसे नहीं हो पाएगा, जयपुर चलते हैं. पापा के औफिस में एक ड्राफ्ट्समैन है, उस से पहले ठीक से सीख कर आते हैं,’’ कुनाल के पास हां बोलने के अलावा चारा न था. लावलश्कर वापस गांव लौट आया. सभी उपकरण ठीक से सोजी को संभलवा कर अब दोनों बुद्धू लौट के घर को चल दिए.

पूरे 5 दिनों तक जयपुर के एक खुले मैदान में रीडिंग लेने से मैप की प्लौटिंग तक कार्य को मनोयोग से सीखा गया. और अब वापस कार्यक्षेत्र की ओर लौटते हुए उन के चेहरे पूरी तरह खिले हुए थे.

ये भी पढ़ें- संजोग: मां-बाप के वैचारिक मतभेद के कारण विवेक ने क्या लिया फैसला?

3 दिन में ही उन की फील्ड रीडिंग लेने की गति 3 गुना हो चुकी थी. उन को अब काम समय पर पूरा होता नजर आ रहा था. आज सोजी सब के लिए देशी मुरगा पका रहा था. 4 बजे तक सब काम समेट कर खाना खत्म कर चुके थे. अभिजीत को खाने के बाद ही नसों में रक्त का प्रवाह तेज होता प्रतीत होने लगा.

उधर, चारों सहयोगी श्रमिक भी तरंग मस्ती में आ चुके थे. एक ने देशी गीत की ऐसी तान छेड़ी कि अभिजीत ने अपनी कमीज उतार कर नाचना शुरू कर दिया. कुनाल को भी सुरूर ने अपनी आगोश में ले लिया था. उन को एक ही गाना आता था ‘ऐ मेरी जोहरा जबीं…’ जो पूरे गले के जोर से गाने लगे. मस्तीमजाक का माहौल 3 घंटे तक चलता रहा. कबाब के सेवन के बाद जिस को जहां जगह मिली, बेसुध हो कर पड़ गया.

वहां के माहौल में अब अभिजीत को पूरा रस आने लग गया था. काम को और गति देने के लिए 4 लेबर और बुला लिए गए थे. चारों में एक महिला बिदाम का रूप लावण्य से अभिजीत मोहित हुए बिना नहीं रह सका. सांचे में ढला बदन और खिलखिलाता चेहरा सब को अपनी ओर खींच ही लेता था. उसे पानी पिलाने जैसे कम श्रम वाला काम कराने के लिए लगभग सभी एकमत थे. बिदाम को भी इस का भान था, इसलिए पानी पिलाने और हंसीमजाक करते माहौल को खुशनुमा रखने के काम भली प्रकार से करने को भली प्रकार अंजाम दे रही थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...