लेखक- संदीप पांडे
अभिजीत को आज तेज जुकाम लग गया था. बड़ी मुश्किल से काम हो पा रहा था. दिन में काम से जल्दी थक कर बैठ गया. लेबर में से एक कड़वा उस के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप बोलो तो इस जुकाम से आप को अभी मुक्ति दिला दूं? बस, आप को मैं जो खिलाऊं उसे हिम्मत कर के खा लेना,’’ तैयार हो रहे खाने में आज मटन पक रहा था. कड़वा दोने में उस के लिए मटन को अलग से पका कर लाया और हाथ में थमा दिया. एक टुकड़ा चबाते ही उस की आह निकल गई. मुंह जैसे जल कर आग बन गया. पानी का लोटा पूरा गटकने के बाद कुछ सांस आई.
‘‘यह क्या बना लाया?’’ अपनी आंखनाक से बहते पानी को पोंछते व हकलाते हुए अभिजीत बोला.
‘‘धीरेधीरे यह पूरा खा जाओ. अभी एक घंटे में जुकाम का नामोनिशान न रहेगा,’’ कड़वा ने अटकते हुए कहा. उसे डर था कहीं साहब के कोप का भाजन न बनना पड़े. पर साहब भी हिम्मत वाले निकले. सिसकियां भरते दोना पूरा खाली कर दिया. और उस का परिणाम भी मिला. पेट, आंख, मुंह में जलन तो थी पर नाक एक घंटे में पूरी साफ हो गई.
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15 दिनों में आधे से ज्यादा काम हंसतेखेलते निबट गया था. दिनभर सब जम के हंसीठिठोली करते, काम निबटाते और शाम को मदिरा के साथ मांसाहार पकाते, खाते और थक के चूर हो कर गहरी नींद का आनंद लेते. ऊंचेनीचे, पथरीले रास्तों पर रोज 10-12 किलोमीटर पैदल चलते शरीर हलका हो गया था. अभिजीत और कुनाल को अपना वजन दोतीन किलो कम हुआ प्रतीत हो रहा था.
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