Hindi Story : पसीने में लथपथ शंकर खेतों में काम कर रहा था कि अचानक उस का 12 साल का बेटा अनबू भागता हुआ आया.
सांस फूलने की वजह से अनबू की आवाज ठीक से नहीं निकल रही थी, फिर भी वह जैसेतैसे बोला, ‘‘बापू, उधर बड़ी सड़क से बहुत सारे शहरी लोग आ रहे हैं. उन के साथ एक जीप में कुछ नेता भी बैठे हैं.’’
शंकर ने पसीना पोंछते हुए कहा, ‘‘फिर से चुनाव आ गए क्या? अभी पिछले साल ही तो ये लोग पूरे गांव में चक्कर काट कर गए थे. इतनी जल्दी सरकार बनी भी और गिर भी गई?’’
अनबू ने कहा, ‘‘बापू, मंदिर के पास बड़ा सा पंडाल भी लगा है. वहां लोग जमा हो रहे हैं. लगता है कि इस बार पहले से भी बड़ा जलसा होने वाला है.’’
‘‘ठीक है, तू जल्दी जा और अपने पांचों भाईबहनों को खबर कर दे और अपनी अम्मां को बोल दे कि रात का खाना न बनाए. पिछली बार भाषण के बाद पूरियां मिली थीं तो रात का खाना बरबाद हो गया था. तुम सब भाषण वाली जगह पर मत रहना, वहीं खड़े रहना जहां पूरियां बन रही हों.’’
अनबू के जाने के बाद शंकर ने सामान समेटा और पिछले चुनाव में मिली विलायती शराब की खुशबू को महसूस करता हुआ घर की ओर तेजी से चल पड़ा. इस बार उस ने तगड़ा हाथ मारने की सोच ली थी, क्योंकि पिछली बार वह थोड़ा पीछे रह गया था.
शाम को पूरी तैयारी कर के शंकर अपने बच्चों के साथ मंदिर के पास जा पहुंचा, लेकिन हलवाइयों के लिए बनवाई गई जगह सूनी पड़ी थी. पान की दुकान की वह अधखुली खिड़की, जिस से पिछली बार मुफ्त में विलायती शराब बंटी थी, इस बार पूरी तरह बंद थी. अपनी उम्मीदों पर यों पानी फिरता देख कर शंकर जलभुन उठा.
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