दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- दिल का तीसरा कोना: भाग 2
आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं है और तुम जो जवाब दोगी, वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ, अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो नहीं करती. पर आज बात कुछ अलग है.’’
और सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था. और कोई भी...
एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू कोई समय घटाने का यंत्र होता तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’
‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो.’’ कुहू ने कहा.
‘‘अरे तुम मेरे पीछे खड़ी हो,’’ आरव ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने देखा ही नहीं. तुम बहुत झूठी हो.’’ इस के बाद उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर...’
कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत गई नहीं. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा?’’
दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है गलत है. फिर उस ने सब कुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सच्चाई उसे बता दी. अंत में कहा, ‘‘इस में सारी मेरी ही गलती है. मैं ने ही आरव को ढूंढा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब जो सोचना हो सोचिए.’’
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पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, उस के बाद बोला, ‘‘कुहू तुम झूठ बोल रही हो, मजाक कर रही हो. सच बोलो, मेरे दिल की धड़कनें थम रही हैं.’’
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