Hindi Story : पढ़ेलिखे व भोलेभाले सुभाष चंद एक सिपाही के कहने मात्र पर उस के साथ थाने चले गए, जहां उन्हें हवालात में बंद कर दिया गया. कानून से अनभिज्ञ सुभाष की पत्नी अपने पति की जमानत लेने के लिए थाने गई, फिर वकील की शरण में पहुंची, और तब अदालत…

‘‘बाबूजी, अपना स्कूटर इधर खड़ा कर दो,’’ स्कूटर से उतरते सुभाष चंद को इशारा करते हुए एक सिपाही ने कहा.

स्कूटर खड़ा कर हकबकाया सा सुभाष चंद सदर थाने की बड़ी और आधुनिक शैली में बनी इमारत में सिपाही के साथ प्रविष्ट हुआ. सुभाष का सामना कभी पुलिस से नहीं पड़ा था. वह थाने कभी नहीं आया था. 2-3 दफा स्कूटर का चालान होने पर ट्रैफिक पुलिस से उस का वास्ता पड़ा था और कोई अनुभव नहीं था.

‘थानाध्यक्ष कक्ष’ लिखे कमरे के अंदर प्रविष्ट होते ही सुभाष का सामना विशाल मेज के पीछे बैठे लाललाल आंखों और लालभभूका चेहरे वाले भारी शरीर के एक पुलिस अधिकारी से हुआ जो देखते ही बोला, ‘‘ले आए.’’

‘‘जी, जनाब.’’

‘‘आप सुभाष चंद वल्द कलीराम, हैड क्लर्क, सांख्यिकी विभाग, निवासी बड़ा महल्ला हो?’’

‘‘जी हां,’’ सकपकाए से सुभाष ने कहा.

‘‘आप ने कल शाम शहर की सीमा पर स्थित देशी शराब के ठेके पर शराब पीने के बाद किसी सुमेर सिंह निवासी रसूलपुर से झगड़ा किया और उस को जान से मारने की धमकी दी थी?’’

इस पर सुभाष चंद ने हैरानी से थानेदार की तरफ देखा और कहा, ‘‘जनाब, मैं न तो शराब पीता हूं, न कभी किसी ठेके पर गया हूं, न ही किसी सुमेर सिंह नाम के आदमी को जानता हूं और न ही कभी रसूलपुर गांव का नाम सुना है.’’

‘‘फिर आप के खिलाफ दरख्वास्त कैसे लग गई?’’ थानेदार ने कुटिलता से मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे क्या पता? शायद आप को गलत सूचना मिली हो?’’

‘‘हमें गलत सूचना नहीं मिली. आप अपने खिलाफ लगी दरख्वास्त खुद देख लो,’’ थानेदार के इशारे पर एक हवलदार ने फाइल खोल कर कुछ कागज सुभाष चंद को थमा दिए.

चश्मा साफ कर सुभाष ने तहरीर पढ़ी और वह हैरानी और रोष से भर उठा. जो कुछ थानेदार ने कहा वही लिखा था.

‘‘साहब, यह झूठा आरोप है. सरासर किसी की बदमाशी है.’’

‘‘ऐसा सब कहते हैं. आप ऐसा करें, साथ के कमरे में बैठ जाएं. थोड़ी देर में आप के खिलाफ शिकायत करने वाला अपने गवाहों के साथ आएगा तब आप का सामना करवा देंगे.’’

मनोरंजन कक्ष लिखे एक बड़े कमरे में 3-4 सादे कपड़ों में पुलिस वाले टीवी पर कोई फिल्म देख रहे थे और बीचबीच में ठहाके लगा रहे थे. सुभाष चंद को एक कुरसी पर बैठा कर उस को थाने लाया सिपाही बाहर चला गया.

थोड़ी देर बाद सुभाष के मोबाइल पर घंटी बजी. एक कोने में जा कर फोन सुना. उस की पत्नी का फोन था. सिपाही उस को एकदम से ‘आप को थाने में साहब ने बुलाया है’ कह कर ले आया था.

‘‘क्या बात है?’’

‘‘किसी सुमेर सिंह नाम के आदमी ने मेरे खिलाफ शिकायत की है कि मैं ने कल रात शराब पी कर उसे जान से मारने की धमकी दी थी. थानेदार कहता है कि अभी थोड़ी देर के बाद उस से मेरा सामना करवाएगा.’’

‘‘अरे, यह कौन है?’’

‘‘पता नहीं. तुम ऐसा करना अगर 1 घंटे तक मैं न आऊं तो रमेश को साथ ले कर थाने आ जाना.’’

‘‘थाने में?’’ पत्नी के स्वर में घबराहट थी.

‘‘हांहां, थाने में. थाना है कोई फांसीघर नहीं.’’

1 घंटा बीत गया. कोई नहीं आया. थोड़ी देर बाद सुभाष को थाने ले कर आया सिपाही अंदर आया और उसे ले कर ‘स्वागत कक्ष’ लिखे एक कमरे में पहुंचा जहां मौजूद एक एएसआई ने सुभाष को गौर से देखा.

‘‘आप का नाम सुभाष चंद वल्द कलीराम है?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘आप के खिलाफ सुमेर सिंह वल्द फतेह सिंह निवासी रसूलपुर ने शिकायत की है कि आप ने कल रात उस को शराब पी कर जान से मारने की धमकी दी थी.’’

‘‘नहीं जनाब, यह सब झूठ है.’’

‘‘अपनी सफाई में जो भी कहना है, कोर्ट में कहना. आप के खिलाफ झगड़ा करने और शांति भंग करने के आरोप में धारा 107 और 151 में मामला दर्ज किया गया है. आप अपनी जामातलाशी दे दें. आप को हवालात में बंद करना पड़ेगा.’’

‘‘हवालात,’’ सुभाष चंद के चेहरे पर मातमी छा गई.

‘470 रुपए नकद, एक घड़ी, एक अंगूठी, एक रुमाल, एक चमड़े की बैल्ट, एक पैन, एक छोटा कंघा’, इस सारे सामान की सूची बना उस पर सुभाष के हस्ताक्षर करवा सामान एक दराज में बंद कर, ‘एएसआई’ ने सिपाही को इशारा किया.

भारी कदमों से सुभाष उस के साथ बाहर आया. ‘बंदी कक्ष’ लिखे एक जंगले वाले दरवाजे के बाहर आ सिपाही ने भारीभरकम ताला खोला. फिर कुंडी खोल कर बोला, ‘‘जाओ, अंदर जाओ.’’

सुभाष दरवाजे के अंदर चला गया.

‘‘ठहरो, अपना चश्मा मुझे दे दो और जब बाहर निकलो, ले लेना,’’ कहते हुए सिपाही ने उस का चश्मा उतार कर ले लिया.

‘‘अरे, भाई बिना चश्मे के मुझे जरा भी नहीं दिखता.’’

मगर सिपाही उस की बात अनसुनी कर ताला लगा, चला गया. निसहाय सुभाष कमरे में आगे बढ़ा. एक छोटा मटमैला कमरा था जिस में कम पावर का एक बल्ब जल रहा था.

कमरे में दरी बिछी थी. दीवार के साथ टेक लगा कर कई चेहरे बैठे थे. कोई बीड़ी पी रहा था तो कोई सिगरेट. कमरे में कसैला धुआं भरा हुआ था. थोड़ी देर तक सुभाष खड़ा रहा फिर वह आगे बढ़ा तो उस की नाक में सड़ांध  घुसी. उस ने बदबू की दिशा में देखा तो उधर शौचालय था. बदबू असहनीय थी. आराम से बैठे उस ने रुमाल के लिए जेब में हाथ डाला तो रुमाल नहीं था. उसे ध्यान आया कि वह भी जामातलाशी में उस से ले लिया गया था.

तभी मोबाइल की घंटी बजी. मुंशी उस की ऊपरी जेब की तलाशी लेना भूल गया था. वह उठा, शौचालय में गया. फोन पत्नी का था, ‘‘क्या पोजीशन है?’’

‘‘मुझ पर शांति भंग करने और झगड़ा करने का केस बना दिया गया है. इस समय हवालात में बंद हूं. ऐसा कर, रमेश को ले कर यहां आ जा. घबरा मत.’’

आधे घंटे बाद बड़े लड़के के साथ पत्नी टिफिन बाक्स लिए आ गई. वही सिपाही दरवाजे पर आया. सुभाष उठ कर दरवाजे के समीप आया. सिपाही ने दरवाजा खोल टिफिन उसे थमा दिया. पत्नी कभी थाने नहीं आई थी. वह रोंआसी सी थी. एकदम से क्या हो गया था? किसी से कभी कोई झगड़ा नहीं था. फिर यह मामला कैसे बन गया.

सुभाष पत्नी की मनोस्थिति समझ रहा था.

‘‘घबराओ मत, गली में कपड़े प्रैस करने वाला रामू है, तू उस से मिल लेना. वह अनुभवी बुजुर्ग है, कोई न कोई रास्ता बता देगा.’’

स्कूटर बाहर खड़ा था. रमेश स्कूटर चलाना जानता था. सो मम्मी को पीछे बैठा कर वह स्कूटर चला कर ले गया.

रामू ने सारी बात ध्यान से सुनी.

‘‘बिटिया, यह या तो साहब के किसी दफ्तर के साथी की करतूत है या फिर मकानमालिक की शरारत. उन्होंने किसी किराए के बदमाश की मदद से यह शरारत की होगी.’’

‘‘अब हम क्या करें?’’

‘‘धीरज रखें. पहले साहब की जमानत करवाते हैं फिर आगे जो होगा साहब ही देखेंगे.’’

‘‘जमानत?’’ पत्नी को भला कानूनी मामलों की कहां समझ थी?

‘‘जी हां, पहले वकील करना पड़ेगा. पुलिस कल साहब को जब कोर्ट में पेश करेगी तो वह उन की जमानत करवाएगा.’’

‘‘मैं किसी वकील को नहीं जानती,’’ पत्नी सचमुच घबरा गई थी.

‘‘मेरी जानकारी में एक वकील है, अभी उस के पास चलते हैं,’’ पौश कालोनी में वकील साहब की कोठी काफी बड़ी और आलीशान थी.

‘‘आप के पति पढ़ेलिखे हो कर भी भोले हैं. इस तरह सिपाही के साथ थाने नहीं जाना था. सिपाही को 200 रुपए दे देने थे. उस को टाल देना था, बाद में अग्रिम जमानत करवानी थी,’’ सफेद बालोें वाले बुजुर्ग वकील की बात सुभाष की पत्नी को कुछ समझ में आई, कुछ नहीं आई थी.

‘‘आप की फीस क्या है?’’

‘‘5 हजार रुपए और अन्य खर्चे.’’

‘‘ठीक है,’’ पत्नी ने 2 हजार रुपए वकील साहब को थमा दिए.

अगली सुबह पत्नी और बड़ा बेटा नाश्ता लाए थे. सिपाही ने 50 का नोट ले दरवाजा खोल उसे बरामदे में एक स्टूल पर बैठा दिया था. सारी रात विपरीत माहौल और शौचालय की बदबू के चलते सुभाष टिफिन नहीं खोल पाया था. भूखे सुभाष ने बिना नहाए, बिना पेस्ट किए ही मजबूरी में नाश्ता किया.

दोपहर बाद एक जिप्सी में अन्य बंदियों के साथ सुभाष को उपमंडल अधिकारी के कोर्ट में ले जाया गया.

कोर्ट नए सचिवालय में था. एसडीएम साहब 3 बजे आते थे.

सुभाष को दूसरे कैदियों के हाथ के पंजे में पंजा फंसा कर अदालत लाया गया था और अब साहब का इंतजार था.

साढ़े 3 बजे साहब आए. 30-32 साल का चश्माधारी नौजवान एसडीएम था.

‘‘आप का जमानती कौन है?’’ सुभाष को पेश करते ही साहब ने पूछा.

इस पर वकील ने सुभाष की पत्नी को आगे कर दिया. एक सरसरी नजर फाइल में लगे कागजों पर डाल साहब ने सुभाष को कहा, ‘‘ठीक है, जाइए,’’ और चंद मिनटों में जमानत हो गई थी.

अगली पेशी 15 दिन बाद थी. सुभाष, उस की पत्नी, बेटा भी आए थे. साहब शाम को 4 बजे आए. चंटचालाक 100-50 रुपए का नोट थमा अपनी तारीख ले चले गए.

अगली पेशी पर सुभाष अकेला आया. थोड़ी देर इंतजार किया फिर उस ने भी 50 रुपए का नोट थमा पेशी ली और वापस हो लिया.

इस के बाद जैसे यह सिलसिला ही बन गया. 15-20 दिन बाद की पेशी पड़ती. 50 रुपए थमा सुभाष चला जाता.

‘‘ऐसा कब तक चलेगा?’’ पत्नी का सीधा सवाल था.

‘‘पता नहीं.’’

‘‘यह सुमेर सिंह आखिर है कौन?’’

‘‘पता नहीं. वकील का मुंशी बताता है कि इस तरह के आदमी या पार्टी किसी को फंसाने के लिए पुलिस पहले तैयार रखती है.’’

‘‘यह किस की शरारत हो सकती है?’’

‘‘कई जने कहते हैं कि मकान मालिक हम से यह मकान खाली करवाना चाहता है इसलिए उस की शरारत है.’’

‘‘हम मकान खाली कर देते हैं.’’

‘‘जिस ने हम पर यह झूठा मुकदमा बनवाया है क्या उस पर हम कोई मुकदमा नहीं कर सकते?’’

‘‘वकील साहब कहते हैं कि विपरीत मुकदमा करने के लिए आप के पास अपने गवाह होने चाहिए. आप को साबित करना पड़ेगा कि आप शराब नहीं पीते, झगड़ा नहीं करते. फीस और जमाखर्च अलग है.’’

‘‘अब हम क्या करें?’’ पत्नी ने हैरानी से पूछा.

‘‘कुछ नहीं. 6 महीने तक इंतजार करेेंगे. मुकदमे की मियाद पूरी हो जाने पर मुकदमा अपनेआप समाप्त हो जाएगा. विपरीत केस करना संभव है पर ठीक नहीं तो इसे ही नियति मान सब्र कर लेना होगा.’’

6 महीने बाद मुकदमा समाप्त हो गया. सुभाष चंद अपना तबादला करवा कर दूसरे शहर चला गया.

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