लेखक- मधुप चौधरी
अंतिम भाग
पूर्व कथा
इस बीच विवेक की पुरानी फाइल में सीमा को एक लड़की की तस्वीर और कुछ चिट्ठियां हाथ लगती हैं जिन में ‘मेरे प्यारे पतिदेव’ के संबोधन के साथ उस लड़की ने विवेक को प्रेम संबंधी बातें लिखी थीं. मौका देखते ही इस बात को ले कर सीमा विवेक से झगड़ती है. और गुस्से में हाथ की नस भी काट लेती है. फिलहाल इलाज करवा कर ससुराल वाले घबरा कर उसे मायके भेज देते हैं.
मायके आ कर सीमा ननिहाल जा कर राहुल से मिलती है. लेकिन राहुल उसे यही एहसास दिलाता है कि अब वह एक
विवाहिता है.
सीमा ससुराल वापस आ जाती है लेकिन उसे अब भी विवेक पर भरोसा नहीं होता. विवेक सीमा को समझाता है कि प्रतिमा से वह प्यार जरूर करता था लेकिन उस के साथ विवाह नहीं हुआ था क्योंकि पता चल गया था कि वह पहले से शादीशुदा है. अब आगे...
गतांक से आगे
विवेक ने फिर ठहर कर कहा, ‘‘मैं जानता था इस बारे में तुम्हें किसी भी सूत्र से जानकारी मिलेगी तो तुम्हें आघात पहुंचेगा और मुझे गलत समझने लगोगी. अच्छा हुआ, आज तुम ने मुझे बताने का मौका दे दिया. वह मेरा अतीत था सीमा, जिस से अब मेरा कोई वास्ता नहीं. मेरा वर्तमान तुम हो. मां, पापा, घर के सभी लोग तुम से प्यार करते हैं, यही चाहते हैं कि तुम भी इस घर को अपना घर समझो. यह तुम्हारा घर है.’’
मन के भीतर महीनों से छिपे गुबार को निकाल कर विवेक को बड़ा हलका महसूस हुआ. उसे लगा, सीमा के सामने अपना दिल खोल कर उस ने बहुत अच्छा किया. सीमा निर्णय और अनिर्णय के दोराहे पर खड़ी थी. इसी उधेड़बुन और अनिर्णय की स्थिति में ढाई साल का वक्त गुजर गया. इस बीच एक पुत्र को जन्म दे कर सीमा ने मातृत्व का सुख भी प्राप्त कर लिया.
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