लेखक- अरशद हाशमी
मैं तब 11वीं क्लास में था जब रिजर्वेशन के विरोध में पूरे देश में आंदोलन हो रहा था. उस दिन भी मैं क्लास में बैठा था. यों तो महेश सर फिजिक्स का कोई बोरिंग सा चैप्टर पढ़ा रहे थे लेकिन मेरा पूरा ध्यान अगले दिन होने वाले भारतपाकिस्तान मैच में लगा था.
मैं कपिल देव की घातक गेंदबाजी और नवजोत सिंह सिद्धू की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी के सपने देख रहा था और पता भी नहीं चला कि कब कुछ रिजर्वेशन विरोधी छात्र मेरी क्लास में आ गए और सब से बाहर निकलने को बोलने लगे.
मेरे विचारों में कपिल देव अपनी अगली गेंद पर जावेद मियांदाद को बोल्ड करने ही वाले थे और मैं इस नजारे को मिस नहीं कर सकता था. इसलिए मैं ने उन छात्रों की बात सुनी ही नहीं.
मुझे होश तब आया जब उन में से एक छात्र हाथ में कुरसी उठाए मेरे सामने खड़ा था.
‘‘उठता है या फोड़ दूं तेरा सिर,’’ वह छात्र दहाड़ा तो मैं हकीकत के फर्श पर धड़ाम से आ कर गिरा और किसी तरह गिरतेपड़ते क्लास से बाहर भागा.
समझ नहीं आ रहा था कि स्कूल बंद होने की खुशी मनाऊं या सामने उस छात्र नेता का भाषण सुन कर दुखी होऊं जिस में वह रिजर्वेशन के चलते छात्रों का भविष्य अंधेरे से भरा होने की भविष्यवाणी कर रहा था. सारे छात्र एक जुलूस की शक्ल में स्कूल से बाहर निकले तो मैं भी अपने दोस्तों कलीम, नफीस और हेमेंद्र के साथ जुलूस के साथसाथ चलने लगा.
‘‘भाई, मैं तो रिजर्वेशन का विरोधी नहीं हूं, फिर हम इन के साथ कहां जा रहे हैं?’’ कलीम ने पूछा.
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