चेक पर हस्ताक्षर करने के बाद हंसराज ने चीफ इंजीनियर शिवनारायण को कहा,  ‘‘इसे ले कर फौरन नई मशीनों के आर्डर के लिए तुम खुद सप्लायर के पास जाओ. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि जितनी जल्दी हो सके, नई मशीनें फैक्टरी में लग जानी चाहिए और उस समय तक पुरानी मशीनों को ठीक कर के काम कीजिए. इस बात का खयाल रहे कि प्रोडक्शन और क्वालिटी पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए. अभी मैं जा रहा हूं लेकिन यह मत समझना कि मैं रिटायर हो गया हूं. कल सुबह से मैं रोज फैक्टरी आ रहा हूं और उसी पुराने तरीके से काम होगा. कुछ दिनों के लिए मैं ने आराम क्या कर लिया, तुम ने तो मुझे रिटायर कर दिया.’’

एक जोर की डांट लगा कर हंसराज कार में बैठ गए. इंजीनियर महोदय केवल जी…जी कर के रह गए. कार में बैठ कर हंसराज मन ही मन मुसकरा कर खुद से वार्तालाप करने लगे. हालांकि इस में इंजीनियर का कोई दोष नहीं है, लेकिन यही दुनिया का दस्तूर है, करे कोई और भरे कोई. किसी को तो बलि का बकरा बनना ही पड़ता है. अपने दोनों बेटों को तो कुछ नहीं कह सके, पर इंजीनियर शिवनारायण पर बुरी तरह बरस पडे़.

हंसराज ने अपना चश्मा आंखों से उतार कर कोट की जेब में रख लिया और आंखें मूंद कर अतीत में खो गए. 20 साल पहले की बातें चलचित्र की तरह एक के बाद एक कर के स्पष्ट होती चली गईं.

पत्नी और 2 छोटेछोटे बेटों के साथ नवयुग सिटी में रोजगार की तलाश में वह चंद पूंजी लेकिन मजबूत इरादों के साथ आए थे. एक छोटे से कारखाने में केवल एक छोटी सी मशीन के साथ काम शुरू किया. मेहनत के बलबूते पर आज वह 4 कारखानों के मालिक बन चुके थे. इस तरह हंसराज मलिक ने मलिक इंडस्ट्रीज की शुरुआत की.

मलिक इंडस्ट्रीज ने अपने उत्पाद की गुणवत्ता के चलते बाजार में लगभग एकाधिकार कर लिया था. बाजार में सामान का रेट और मानक हंसराज मलिक ही तय करते थे. बाकी सब केवल उन के अनुयायी बन कर रह गए थे. इतना सब होते हुए भी हंसराज मलिक घमंड से कोसों दूर थे. बेहद नम्र स्वभाव के, एक साधारण व्यक्तित्व और मध्यम कदकाठी के हंसराज सब की सहायता को हमेशा तत्पर रहते थे, अपने स्टाफ और कर्मचारियों की हमेशा जरूरत पर मदद के लिए तत्पर रहते थे. कभी एडवांस दे कर और कभी इनाम दे कर कोई भी स्टाफ, कर्मचारी या डीलर कभी भी उन के आफिस में उन से मिल सकता था.

हंसराज मलिक के बेटे पढ़लिख कर बडे़ हो गए तो धीरेधीरे उन्होंने व्यापार की बागडोर अपने बेटों को सौंप दी और खुद सामाजिक कार्यों में समय बिताने लगे. महीने में एकदो बार ही फैक्टरी या आफिस में जाते थे.

हंसराज मलिक के दोनों बेटों सौरभ और वैभव का स्वभाव अपने पिता से एकदम विपरीत था. उग्र स्वभाव और पैसे का घमंड. इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की डिगरियों से लैस दोनों बेटे अपने स्टाफ को नौकर समझते और तू तड़ाक और गाली दे कर उन से बात करते थे.

हंसराज मलिक का एक उसूल था कि अपनी कंपनी के बने सामान की क्वालिटी दूसरी कंपनियों से बेहतर रखनी है, लेकिन बच्चों ने गुणवत्ता से समझौता करना शुरू किया. उन्होंने सोचा, जब कंपनी का प्रोडक्ट अपने नाम से बिक रहा है, तब गुणवत्ता को उन्नीस कर के उत्पाद को बढ़ाने में ही फायदा है. धीरेधीरे कंपनी की साख पर सवालिया निशान उठने लगे. डीलर खराब सामान का हर्जाना मांगने लगे लेकिन बच्चों ने झुकना सीखा ही नहीं था, इसलिए हर्जाना देने से साफ मना कर दिया.

रामदीन मलिक कंपनी का सब से पुराना व खास डीलर था. जब वैभव और सौरभ से इस समस्या का कोई समाधान उसे नहीं मिला तो उस ने हंसराज मलिक से बात करने की सोची. वैसे भी रामदीन और हंसराज एकदूसरे से बहुत बेतकल्लुफ थे. हमउम्र और एकदूसरे के साथ शुरू से काम करने के कारण काफी खुल कर दोनों के बीच बातचीत हुआ करती थी.

हंसराज मलिक अपनी कोठी के लान में बैठे पकौड़ों के साथ चाय की चुस्कियां ले कर सर्दी के मौसम का भरपूर आनंद उठा रहे थे, तभी नौकर कोर्डलैस फोन के साथ आया.

‘साबजी, रामदीन साब का फोन है.’

हंसराज ने नौकर से फोन लिया और बोले, ‘राम के बच्चे, कैसा है तू, बडे़ दिन बाद तेरी आवाज सुन रहा हूं. कहां मर गया था.’

‘तेरी नगरी में शहीद हो गया हूं, मलिक, अफसोस, मेरे जनाजे पर भी तू नहीं आया.’

‘आजा यहां पर, पकौडे़ खा कर शहीद होने में ज्यादा मजा है,’ हंसराज ने चुटकी ली.

रामदीन के स्वर में उदासी थी, ‘चल, तेरी यह तमन्ना भी पूरी कर देता हूं. बोल, कहां मिलेगा.’

‘आजा घर पर, एकसाथ लंच करते हैं.’

1 बजे रामदीन हंसराज मलिक की कोठी पर पहुंच गया. हंसराज खिली हुई धूप का भरपूर आनंद लेते हुए अभी भी लान में बैठे थे.

‘तू मूर्ख ही रहेगा, रामदीन. अकेला भागता हुआ चला आया, छुट्टा सांड की तरह,’ कहते हुए हंसराज फोन रामदीन को थमा कर बोले, ‘तू फटाफट भाभी को फोन कर, मैं ड्राइवर को भेजता हूं.’

रामदीन ने कुरसी खींची और बैठते हुए कहा, ‘रहने दे मलिक, आज अकेले में तेरे से बात करनी है, परिवार के साथ फुरसत में बैठ कर बात करेंगे.’

‘मुझे तो फुरसत ही फुरसत है, अब तू भी रिटायरमेंट ले ले फिर दोनों यारों को फुरसत ही फुरसत.’

‘हंस, आज मैं मजाक के मूड में नहीं हूं. तुम से गंभीर विषय पर बात करनी है,’ और उस ने अपनी सारी समस्या हंसराज के सामने खोल कर रख दी.

रामदीन की बात सुन कर हंसराज गंभीर हो गए, ‘तुझे यह बात पहले बतानी चाहिए थी तो यह नौबत ही नहीं आती,’ इतना कह कर हंसराज ने फौरन वैभव को फोन किया.

‘बेटे, बिना किसी सवालजवाब के तुम अभी, फौरन रामदीन अंकल को खराब माल का हर्जाना दो,’ इस के बाद उन्होंने चीफ अकाउंटेंट वर्मा को फोन पर कहा कि आधे घंटे में रामदीन का पूरा हिसाबकिताब ले कर कोठी पर चले आओ. तीसरा फोन चीफ इंजीनियर शिवनारायण को लगाया और डांटते हुए कहा, ‘शिव, सामान की क्वालिटी खराब किस से पूछ कर की है और क्वालिटी कंट्रोल पर ध्यान क्यों नहीं दे रहे हो, तुम फौरन क्वालिटी सुपरवाइजर चंदरपाल के साथ कोठी पर आओ.’

हंसराज मलिक के फोन से पूरी मलिक कंपनी में भूचाल आ गया. सभी 1 घंटे के अंदर मलिक साहब के आगे उपस्थित थे. वैभव और सौरभ भी बात की गंभीरता को भांप कर शीघ्र आ गए. हंसराज मलिक शिवनारायण और चंदरपाल पर बरस पडे़ कि इतने पुराने आदमी हो, खराब क्वालिटी का सामान बनाने से पहले मुझे बताने की कोई जरूरत भी नहीं समझी. मेरे बनाए हुए नियमों को तुम ने कैसे तोड़ा?

वैभव और सौरभ को सामने खड़ा देख कर उन दोनों की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कैसे बताएं कि उन के दोनों बेटों के कहने पर ही अधिक प्रोडक्शन के लिए क्वालिटी को हलका किया था. हंसराज के उग्र तेवर को देख कर वैभव बोला, ‘पापा, आप तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रहे हो. ऊपर से सब की पेशी भी कर दी.’

‘देखो, यह छोटी बात नहीं है, बल्कि हमारी कंपनी की साख का प्रश्न है, जो एकदम गलत है. उत्पादन अधिक करने के लिए हमें सोचना पड़ेगा, लेकिन रामदीन को पूरा हर्जाना दे दो.’

हंसराज ने वर्मा को हिदायत दी और शिवनारायण और चंदरपाल को क्वालिटी बेहतर करने का आदेश दे कर रवाना किया.

‘अच्छा हंस, अब मैं भी चलता हूं,’ रामदीन ने हंसराज को गंभीर देख कर जाने की इजाजत ली.

‘ठीक है राम, इस संडे को एक- साथ लंच पक्का. भाभी के साथ आना.’

‘मंजूर, मेरे आका,’ रामदीन के इस कथन के साथ दोनों गले मिल कर जुदा हुए.

रामदीन के जाने के बाद वैभव हंसराज पर बिगड़ पड़ा, ‘पापा, आप ने पूरे स्टाफ के आगे हमारी एक बात नहीं सुनी. क्या जरूरत थी रामदीन को हर्जाना देने की, वह सारी मार्किट में बताता फिरेगा कि हमारा माल खराब था. कम से कम मुझ से पूछ तो लिया होता.’

हंसराज ने बेटे को घूरती आंखों से देखते हुए कहा, ‘जैसा तुम समझते हो, रामदीन वैसा नहीं है. हम दोनों ने एकसाथ काम शुरू किया था. मार्किट में किसी को भनक भी नहीं होगी कि वह मुझ से खराब माल का हर्जाना ले गया है. लेकिन तुम मुझे यह बताओ कि क्या खराब माल सिर्फ रामदीन को बेचा था या किसी और को भी बेचा है.’

‘आप को रामदीन ने भड़का दिया है. माल में कोई खराबी नहीं है. अगले 2 साल के लिए आर्डर बुक हैं, हमें अपना उत्पादन बढ़ाना है.’

‘यह अच्छी खबर है कि 2 साल के आर्डर बुक हैं, यही मौका है जब हमें और मशीनें लगानी चाहिए. सोमवार को मैनेजर मीटिंग रखो, उस में सब के साथ विचारविमर्श करना है.’

‘पापा, इस के लिए मीटिंग की क्या जरूरत है. वैसे भी अभी मशीनों में निवेश कर रकम फंसाने की कोई जरूरत नहीं. समय आने पर इस विषय पर बात करेंगे. अभी तो मुझे क्लब जाना है,’ कह कर हंसराज के दोनों बेटे वैभव और सौरभ गाड़ी में बैठ कर क्लब के लिए रवाना हो गए.

बेटों के क्लब जाने के बाद हंसराज पूरे हालात का अवलोकन करने लगे कि बेटे उस की बात नहीं मान रहे हैं और जो रामदीन ने बताया वह गंभीर मसला है. आखिर कंपनी में क्या चल रहा है, उन्हें खुद ही पता करना पडे़गा.

अगले दिन सुबह नाश्ता करने के फौरन बाद हंसराज ने ड्राइवर को फैक्टरी नंबर 1 चलने को कहा. उन्होंने अपनी पुरानी मारुति निकलवाई. उस में बैठे और ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर चल दिया. उन की गाड़ी जैसे ही फैक्टरी नंबर 1 के गेट पर पहुंची, आराम से बैठे गार्ड हरकत में आ गए. क्योंकि वैभव और सौरभ ने अपना आफिस फैक्टरी नंबर 4 में बना रखा था, यहां कम ही आते थे और जहां मालिक कम आते हैं, कर्मचारी बेखौफ रहते हैं.

गार्ड ने मुश्तैदी से हंसराज को फौजी सैल्यूट लगाया. फैक्टरी का गेट खुलते ही हंसराज की कार उन के आफिस के आगे रुकी.

हंसराज कार से उतर कर अपने आफिस में जाने के बजाय चीफ क्वालिटी कंट्रोलर चंदरपाल के केबिन की तरफ चल पडे़. चंदरपाल उस समय चीफ इंजीनियर शिवनारायण के केबिन में था. हंसराज, चंदरपाल को न पा कर शिवनारायण के केबिन की तरफ बढे़. केबिन के दरवाजे पर ठिठक गए, क्योंकि अंदर दोनों माल की क्वालिटी के बारे में बात कर रहे थे :

‘इस बार के माल की क्वालिटी तो पहले से भी खराब है, क्वालिटी सुधारो शिवजी, मैं इस माल को कैसे पास कर सकता हूं. आप को मालूम है कि उस दिन सेठजी कोठी पर इस बारे में कितने गरम थे.’

‘चंदरपालजी, जैसे पहले पास करते थे वैसे कर दो.’

‘इस बार बिलकुल नहीं करूंगा. सेठजी से इस बारे में बात करूंगा. उन के सिद्धांतों को अब चकनाचूर नहीं होने दूंगा.’

‘पहले छोेटे सेठों से बात तो कर लो.’

‘क्या कर लेंगे, ज्यादा से ज्यादा नौकरी से निकाल देंगे. कोई चिंता नहीं. 3 साल बाद रिटायर होना है, समझ लूंगा उम्र बड़ी हो गई, लेकिन आप डरपोक हो. किस बात की चिंता करते हो.’

‘तुम्हारे जैसा निडर नहीं हूं,’ शिवनारायण बोले, ‘अभी बच्चे पालने हैं. तुम ने तो लड़की की शादी कर दी, मुझे तो अभी करनी है.’

तभी हंसराज केबिन में दाखिल हुए,  ‘क्या बातें कर रहे हो.’

सेठजी को अचानक देख कर दोनों भौचक्के अपनीअपनी कुरसियों से उठ खडे़ हो कांपती आवाज में बोले, ‘गुडमार्निंग सर.’

‘मार्निंग तो गुड है,’ हंसते हुए हंसराज बोले, ‘केबिन बहुत ठंडा है, चलो, बाहर धूप में बैठते हैं.’

फौरन ही धूप में कुरसियां लगाई गईं और वे आ कर कुरसियों पर बैठ गए.

‘शिव, यह क्वालिटी का क्या चक्कर है और मेरे बनाए सिद्धांतों को तुम लोगों ने कैसे तोड़ा?’

‘सर, हम तो छोटे मालिकों की आज्ञा का पालन कर रहे हैं. एक तो अधिक उत्पादन के लिए माल की क्वालिटी से समझौता किया जा रहा है और ऊपर से मशीनों के रखरखाव का जो बजट होता है उसे टाल दिया गया है, जिस के कारण क्वालिटी खराब हो रही है. कुछ मशीनों के पुर्जे बदलने जरूरी हैं. मशीन नंबर 5 और 8 बहुत खराब हालत में हैं, उन की जगह हमें नई मशीनों को खरीदना चाहिए…’

‘दूसरी फैक्टरियों में क्या हालात हैं?’ हंसराज ने बात को काटते हुए पूछा.

‘फैक्टरी नंबर 2 और 3 में भी कुछकुछ यहां जैसी ही स्थिति है. सिर्फ फैक्टरी नंबर 4 सही चल रही है,’ शिव ने बताया.

‘अच्छा, तुम मशीनों की रिपेयरिंग का कार्यक्रम बनाओ. मैं खुद सबकुछ देखता हूं,’ अभी बातें चल ही रही थीं कि बहुत जोर से आवाज आई और शिव मशीनों की तरफ भागा. जैसा उसे शक था, वही हो गया. मशीन नंबर 5 का मुख्य पुर्जा टूट गया और सभी मशीनों को रोकना पड़ा. पूरा उत्पादन रुक गया.

शिवनारायण अपनी पूरी टीम के साथ बैठ कर मशीनों का निरीक्षण करने लगा. कुछ देर बाद शिव ने आ कर हंसराज को बताया कि मशीन के पुर्जे बदलने पडें़गे. लेकिन जो पुर्जा चाहिए वह हमारे स्टाक में नहीं है.

– क्रमश:

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