Hindi Story: तकरीबन 2 साल पहले कमल बंगलादेश से भारत रोजगार के सिलसिले में आया था. भारत आ कर किराए का कमरा लेने में ज्यादा दिक्कत तो नहीं आई, पर फिर भी कुछ मकान मालिकों ने आधारकार्ड की मांग की थी, इसलिए बहुत जल्दी ही कमल की समझ में आ गया था कि भारत में आधारकार्ड का होना बहुत जरूरी है.

कमल के एक दूसरे बंगलादेशी साथी इरफान ने उस की मदद की और सायन इलाके में उसे किराए पर एक कमरा दिला दिया और उसे बताया कि उसे अपना फर्जी आधारकार्ड बनवाना पड़ेगा, नहीं तो कोई भी नौकरी पर नहीं रखेगा.

फर्जी कागजात बनवाने की बात सुन कर कमल पहले तो घबराया, पर जब इरफान ने उसे भरोसा दिलाया कि यहां पर सब काम पैसे लेदे कर हो जाते हैं, तो कमल बेफिक्र हो गया.

5,000 रुपए खर्च कर के कमल के हाथ में आधारकार्ड आ गया था और अब वह भारत का निवासी बन चुका था.

आधारकार्ड बनने के बाद इरफान ने कमल की फीनिक्स नाम की ईकौम कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी लगवा दी.

काम तो काफी भागदौड़ और मेहनत वाला था, मगर कमल महीने के तकरीबन 20,000 रुपए तक कमा लेता था. इन 20,000 रुपयों में से 15,000 रुपए कमल अपनी मां को भेजता था, जो अब भी बंगलादेश के नाटोर नामक एक गांव में रहती थी, जो चिटगांव से तकरीबन 200 किलोमीटर की दूरी पर था.

कमल की मां के साथ उस का एक छोटा भाई भी था. अपने भाई और मां की चिंता कमल को सताती रहती थी और इसीलिए वह खूब मेहनत कर के और ज्यादा पैसे कमाना चाहता था. इसलिए कभीकभी मेहनत भरी जिंदगी के बजाय कमल कोई ऐसा काम करना चाहता था, जिस से एक झटके में ढेर सारे पैसे कमाए जा सकें.

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