कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

ये कहानी भी पढ़ें : मान अभिमान

‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

पढ़ें ये कहानी : नायाब नुसखे रिश्वतबाजी के

कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...